नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को गुजरात में होने वाले राज्यसभा चुनाव के दौरान नोटा के प्रयोग को अनुमति देने वाली निर्वाचिन आयोग की अधिसूचना पर स्थगन लगाने से इनकार किया। इस खबर से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए एम खानिवलकर की पीठ हालांकि इस चुनाव में नोटा का विकल्प प्रदान करने की निर्वाचन आयोग की एक अगस्त की अधिसूचना की संवैधानिक वैधता पर विचार के लिए सहमत हो गई।
गुजरात कांग्रेस के मुख्य सचेतक शैलेश मनुभाई परमार की ओर से जब वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और हरीन रावल ने निर्वाचन आयोग की अधिसूचना के अमल पर अंतिरम रोक लगाने का अनुरोध किया तो पीठ ने कहा, 'नोटिस जारी किया जाए। हम इसकी विवेचना करेंगे। हम कार्यवाही पर रोक नहीं लगा रहे हैं।'
शीर्ष अदालत के एक फैसले के बाद से निर्वाचन आयोग चुनावों में नोटा का प्रावधान मतदाताओं को उपलब्ध करा रहा है। न्यायालय ने आयोग से कहा था कि चुनाव में नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने पर विचार किया जाए।
न्यायालय सिब्बल की इस दलील से सहमत नहीं था कि नोटा का प्रावधान भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगा। इस समय गुजरात में राज्यसभा से तीन स्थान रिक्त हैं और चुनाव मैदान में कांग्रेस के कद्दावर नेता अहमद पटेल सहित चार प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं।
नोटा के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका में विधानसभा सचिव द्वारा एक अगस्त को जारी परिपत्र निरस्त करने का अनुरोध किया गया है।इस परिपत्र में कहा गया है कि राज्य सभा के चुनाव में नोटा का प्रावधान भी उपलब्ध रहेगा।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस विकल्प के इस्तेमाल से जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 और चुनाव कराने संबंधी नियम, 1961 का उल्लंघन होता है।
याचिका में नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने संबंधी निर्वाचन आयोग द्वारा 24 जनवरी, 2014 और 12 नवंबर, 2015 के परिपत्र को शून्य घोषित करते हुए इन्हें निरस्त करने का अनुरोध भी किया गया है। शीर्ष अदालत द्वारा 2013 में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों में नोटा का विकल्प अनिवार्य करने संबंधी फैसले के बाद जनवरी 2014 से नोटा का प्रावधान रखने संबंधी अधिसूचना लागू की गई है। (भाषा)