मोदी के छोटे से छोटे कदम पर निगाह रखने वाले जानकारों का कहना है कि रविवार को भुवनेश्वर में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी की डिनर टेबल पर न केवल चर्चा रही, वरन मोदी के साथ डिनर करने बालों को लेकर कुछ संदेश भी पाने की कोशिश की जा रही है। डिनर टेबल पर मौजूद रहने वाले लोगों में पार्टी प्रमुख अमित शाह, मुरली मनहोर जोशी, संगठन महासचिव रामलाल, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौजूद थे।
इस डिनर में मौजूद लोगों को लेकर मौजूद लोगों के कार्य और प्रभावक्षेत्र का भी आकलन किया गया क्योंकि डिनर पर चर्चा सबसे ज्यादा मुरली मनोहर जोशी को लेकर हो रही है। सूत्रों का कहना है कि जोशी को प्रधानमंत्री के साथ डिनर करने के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। उन्हें भाजपा प्रमुख अमित शाह ने न्योता दिया था। जिन लोगों को योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने से पहले प्रधानमंत्री के संकेतों को पढ़ा है, उनका कहना है कि जोशी को बुलाने का भी कोई विशेष अर्थ हो सकता है वरना उन्हें यूं अकारण नहीं बुलाया जाता।
जानकारों का कहना है कि पिछले वर्ष जून में इलाहाबाद में आयोजित हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी पीएम मोदी और जोशी की गर्मजोशी देखने को मिली थी। उस समय भी दोनों नेताओं को एक ही प्लेट से खाते हुए देखा गया था। उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष जुलाई में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होना है। संघ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि आरएसएस भी राष्ट्रपति पद के लिए उनके नाम पर विचार कर रहा है। जोशी को संघ परिवार और पार्टी में मिल रहे महत्व को इस संकेत से भी जाना जा सकता है कि मोदी सरकार ने इसी वर्ष जोशी को पद्मविभूषण सम्मान से विभूषित किया है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि सरकार में शामिल न किए जाने से नाराज मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण आडवाणी पार्टी की मार्गदर्शक मंडल के सदस्य हैं और समय-समय पर मोदी सरकार के कुछ कदमों की आलोचना भी करते रहे हैं। दोनों ही संघ से करीबी हैं और कुछ समय पहले आडवाणी ने भी संघ मुख्यालय में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। इस बात को भी उनकी राष्ट्रपति पद की संभावित दावेदारी से जोड़कर देखा गया था, लेकिन बाद में दोनों ने मोदी से अपने रिश्तों में पर्याप्त सुधार किया था।
पूर्व में जब मोदी, गुजरात के मुख्यमंत्री थी तो उनकी आडवाणी के साथ निकटता किसी से छिपी नहीं थी। इतना ही नहीं, जब कभी-कभी मोदी की आलोचना हुई तो आडवाणी ने ही उनका बचाव किया था और मोदी ने भी आडवाणी को गुजरात से लोकसभा पहुंचाने का काम किया था, लेकिन अब लगता है कि दोनों की जुगलबंदी कमजोर पड़ गई है।
हालांकि मोदी, जोशी के भी करीबी रहे हैं। वर्ष 1991 में मुरली मनोहर जोशी पार्टी प्रमुख थे तब कन्याकुमारी से कश्मीर तक की एकता यात्रा में उनके सारथी मोदी ही थे। लगता है कि जोशी को बार-बार महत्व देकर मोदी, जोशी को राष्ट्रपति पद को संभालने के लिए तैयार रहने का संकेत दे रहे हैं और इसमें अगर संघ परिवार की भी सहमति है तो जोशी जी को राष्ट्रपति पद पर पहुंचने से कौन रोक सकता है?