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मोदी सरकार का बड़ा फैसला, इस तरह कसेंगे भ्रष्टाचार पर लगाम...

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नई दिल्ली , मंगलवार, 6 जून 2017 (10:41 IST)
नई दिल्ली। मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार पर लगाम कसने की दिशा में एक और बड़ा कदम उठाते हुए भ्रष्ट अधिकारियों से सख्ती से निपटने के लिए 50 साल पुराने कानून में बदलाव किया है। अब कर्मचारियों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों की जांच पूरी करने के लिए छह महीने की समयसीमा तय कर दी है। 
 
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने केंद्रीय लोक सेवाएं (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1965 में संशोधन किया है और जांच के महत्वपूर्ण चरणों और जांच प्रक्रियाओं के लिए समय सीमा का फैसला लिया है।
 
संशोधित नियम के अनुसार, जांच प्राधिकरण को छह महीने के अंदर जांच पूरी कर अपनी रिपोर्ट सौंप देनी चाहिए। इसमें कहा गया कि हालांकि अनुशासनात्मक प्राधिकरण द्वारा लिखित में अच्छा और पर्याप्त कारण बताए जाने पर छह माह का जांच विस्तार दिया जा सकता है। इससे पहले जांच पूरी करने के लिए कोई समय-सीमा नहीं होती थी।
 
संशोधित नियमों के मुताबिक अनुशासनिक प्राधिकारी को भ्रष्टाचार और अनियमितता के आरोपी सरकारी कर्मचारी को आरोपों के लेखों की एक प्रति, दुर्व्यवहार या दुर्व्यवहार के आरोपों की एक प्रति और दस्तावेजों और गवाहों की एक सूची देगा, जिसके आधार पर प्रत्येक आरोप को बनाए जाने का प्रस्ताव है।
 
एक बार सरकारी कर्मचारी को आरोपों की प्रति मिल जाती है, तो उसे 15 दिनों के भीतर स्वयं के बचाव में लिखित बयान देना होगा। इसके साथ ही वह यह भी इच्छा जाहिर कर सकता है कि उसे व्यक्तिगत रूप से सुना जाए। इसके लिए भी समय सीमा 15 दिन बढ़ाई जा सकती है, लेकिन किसी भी परिस्थिति में जवाब दाखिल करने की अवधि 45 दिन से ज्यादा नहीं हो सकती।
 
नया नियम आईएएस, आईपीएस, आईएफओएस और कुछ अन्य श्रेणियों के अधिकारियों को छोड़कर सभी श्रेणी के कर्मचारियों पर लागू होगा।

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