Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

महाराष्ट्र से पहले कब - कब अपने फैसलों के चलते विवादों में रहे राज्यपाल

राज्यपाल के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में उठे सवाल

हमें फॉलो करें महाराष्ट्र से पहले कब - कब अपने फैसलों के चलते विवादों में रहे राज्यपाल
webdunia

विकास सिंह

, रविवार, 24 नवंबर 2019 (13:11 IST)
महाराष्ट्र में भाजपा के सरकार को आनन-फानन में शपथ दिलाने वाले महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका को लेकर कई सवाल उठ रहे है। राज्यपाल के निर्णय के खिलाफ विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए है और आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान विपक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि राज्यपाल ने केंद्र के एजेंट के तौर पर काम किया।

विपक्ष की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील पेश करते हुए कहा कि बिना किसी आधार के राज्यपाल ने दो लोगों को सीएम और डिप्टी सीएम पद की शपथ दिला दी और साफ तौर पर  राज्यपाल केंद्र के निर्देश पर काम रहे है। सुप्रीम कोर्ट में विपक्ष के वकीलों ने राज्यपाल के शपथ दिलाने के आधार पर ही सवाल उठा दिया है। सिंघवी ने आरोप लगाया कि राज्यपाल ने भाजपा के साथ मिलकर लोकतंत्र की हत्या की है। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, राज्य सरकार, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, डिप्टी सीएम अजित पवार को नोटिस जारी किया है। इसके साथ कोर्ट ने राज्यपाल का आदेश, फडणवीस के तरफ से दिया गया समर्थन पत्र भी मांगा है। अब सुप्रीम कोर्ट सोमवार सुबह 10.30 बजे सुनवाई करेगी।    
 
देश के संसदीय इतिहास में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि किसी प्रदेश के राज्यपाल के फैसले पर सवाल उठाए जा रहे है, इससे पहले भी कई राज्यों में राज्यपाल के फैसले पर सवाल उठे है और उन्हें सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
 
कर्नाटक में राज्यपाल के फैसले पर उठे सवाल – पिछले साल (2018) कर्नाटक के सियासी नाटक में राज्यपाल वजुभाई वाला अपने फैसले के चलते काफी चर्चा में रहे। विधानसभा चुनाव के बाद राज्यपाल ने  सबसे बड़े दल के रुप में भाजपा को सरकार बनाने के लिए न्यौता दे दिया और बहुमत हासिल करने के लिए 15 दिन का समय दिया था लेकिन राज्यपाल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा सरकार को 48 घंटे में बहुमत साबित करने का वक्त दिया था लेकिन विधानसभा के फ्लोर पर भाजपा बहुमत साबित नहीं कर सकी और येदियुरप्पा सरकार गिर गई थी। इसके बाद मुख्यमंत्री कुमारस्वामी की सरकार जब विधायकों की बगावत के बाद फ्लोर पर बहुमत साबित कर रही थी तब भी राज्यपाल की भूमिक पर सवाल उठे थे।   

यूपी में राज्यपाल रोमेश भंडारी का फैसला पलटा –  राजभवन की भूमिका का सबसे अधिक चर्चित मामला 1998 में सामने आया था जब राज्यपाल रोमेश भंडारी ने अचानक से मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के नेतृव्य वाली सरकार को उस समय बर्खास्त कर दिया था जब वह एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे।

राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करते हुए नाटकीय तरीके से जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी। कल्याण सिंह ने इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी थी उसके बाद कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को असंवैधानिक करार कर दिया था। इसके बाद कल्याण सिंह फिर से मुख्यमंत्री बने थे। 
 
बिहार में राज्यपाल बूटा सिंह का फैसला विवादों में – सियासी उठापटक का कई बार गवाह बनने वाले बिहार में 2005 में राज्यपाल बूटा सिंह ने अचानक से बिहार विधानसभा भंग कर दी थी। राज्यपाल ने यह फैसला चुनाव में किसी भी पार्टी के स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था।

राज्यपाल ने उस समय विधानसभा भंग करने का निर्णय लिया था जब राज्य में एनडीए गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश में लगी हुई थी और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। राज्यपाल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी जिसके बाद कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को असंवैधानिक ठहरा दिया था। इसके बाद हुए चुनाव में एनडीए को बहुमत मिला था। 
 
झारखंड में राज्यपाल के फैसले पर फ्लोर की मुहर नहीं – झारखंड में साल 2005 में राज्यपाल सैयद सिब्ते राजी ने विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुतम नहीं मिलने पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी, लेकिन जब फ्लोर पर बहुमत का फैसला हुआ शिबू सोरेन अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए थे और उनको इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

फडणवीस के पास 170 से अधिक विधायकों का समर्थन, साबित करेंगे बहुमत : भाजपा