बाबरी विध्वंस केस : अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को आखिर हुआ क्या था ?

बीबीसी के पूर्व पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी की आंखों देखी बाबरी विध्वंस की पूरी कहानी

विकास सिंह
बुधवार, 30 सितम्बर 2020 (09:20 IST)
अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचा गिराए जाने जाने के 28 साल बाद आज लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत अपना फैसला सुनाने जा रही है। 28 साल बाद आने वाले इस फैसले में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी,मुरली मनोहर जोशी,उमा भारती,विनय कटियार,जयभान सिंह पवैया और नृत्यगोपाल दास समेत 32 आरोपियों को कोर्ट में पेश होने को कहा गया है।
 
सीबीआई कोर्ट के इस फैसले पर आज देश भर की निगाहें लगी हुई है। अयोध्या मामले को 40 साल से अधिक समय से लगातार कवर रहे बीबीसी की पूर्व पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि पिछले दिनों जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर अपना फैसला सुनाया था तो इसे ढांचा गिरने को क्रिमिनल एक्ट बताया था,ऐसे में आज सबकी निगाहें कोर्ट के फैसले पर टिकी हुई है। 
 
सीबीआई कोर्ट आज जिस मामले में फैसला सुनाने जा रही है आखिरी वह पूरा मामला क्या है और आखिर 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में क्या हुआ था,उस दिन अयोध्या में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी की आंखों देखी बाबरी विध्वंस केस की पूरी कहानी
अयोध्या में पांच दिसंबर से ही तनाव बढ़ गया था। छह दिसंबर से एक दिन पहले यानी पाँच दिसम्बर की दोपहर विश्व हिंदू परिषद मार्गदर्शक मंडल ने औपचारिक निर्णय लिया कि केवल सांकेतिक कारसेवा होगी,निर्णय के अनुसार कारसेवक सरयू से जल और रेत लेकर आएँगे और मस्जिद से कुछ दूर शिलान्यास स्थल पर समर्पित कर वापस चले जाएँगे।

जैसे ही इस निर्णय की घोषणा हुई कारसेवकों में रोष फैल गया। विश्व हिंदू परिषद के सर्वोच्च नेता जब कारसेवकपुरम पहुँचे तो उत्तेजित कारसेवकों ने उन्हें घेर कर काफ़ी बुरा भला कहा। कार सेवकों का कहना था कि नेता लोग कुछ भी कहें हम तो असली कारसेवा करके यानी मस्जिद को ध्वस्त करके ही जाएँगे।
 
पांच दिसंबर की शाम को अचानक अयोध्या फैजाबाद में तनाव बढ़ गया था। विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल ने कारसेवकों की सभा में जो  भाषण दिया उसके बाद कारसेवकों ने पत्रकारों पर हमला शुरु कर दिया था।
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छह दिसम्बर की सुबह से अयोध्या में जय श्रीराम के नारे चारों ओर गूँज रहे थे। मैं अपने साथी पत्रकार मार्क टुली के साथ सुबह करीब दस बजे मानस भवन की छत पर पहुँच गए थे सामने करीब दो सौ फुट की दूरी पर बाबरी मस्जिद थी, जिसे लोहे की मजबूत बैरीकेडिंग से घेरा गया था, राइफल लिए पुलिस और अर्धसैनिक बल तैनात थे।

दाएं हाथ की तरफ सीता रसोई की छत पर पुलिस और प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी थे.हमारे बाएं हाथ की तरफ राम कथा कुंज के मंच पर भाजपा, विहिप और बजरंग दल के नेता भाषण दे रहे थे. करीब डेढ़ लाख से अधिक कारसेवक चारों तरफ पूरे परिसर में थे।
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मानस भवन से बाएँ राम कथा कुंज में एक सभा रखी गयी थी, जहां अशोक सिंघल, लालकृष्ण आडवाणी,मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती आदि नेता जमा थे। मस्जिद और मानस भवन के बीच शिलान्यास स्थल को यज्ञ स्थल जैसा बनाया गया था जहां महंत राम चंद्र परमहंस और दीगर साधु संन्यासी जमा थे. इसी स्थान पर ग्यारह बजे से सांकेतिक कारसेवा होनी थी। माथे पर केसरिया पट्टी बांधे आरएसएस कार्यकर्ता सुरक्षा के लिए तैनात थे. उनके पीछे रस्सा लगाकर पुलिस थी ताकि यज्ञ स्थल तक विशिष्ट लोग ही जा सकें।

दिन में 10:30 बजे के आसपास डॉ. मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण आडवाणी यज्ञ स्थल की तरफ आए। उनके पीछे और बहुत से कारसेवक घुसने लगे. पुलिस ने रोका, पर वो नहीं माने,तब केसरिया पट्टी बांधे वॉलंटियर्स ने उन पर लाठियाँ भांजनी शुरू की जिस पर पूरे कैंपस में तीखी प्रतिक्रिया हुई।
 
साढ़े ग्यारह बजे तक लगभग सब कुछ सामान्य था. अचानक कारसेवकों के जत्थे नारे लगाते हुए, मस्जिद की तरफ दौड़े. शुरू में पुलिस ने रोकने की कोशिश की. मगर चंद मिनटों में कई कारसेवक मस्जिद की गुम्बद पर पहुंच गए. झंडा फहराया. कैम्पस में नारों की आवाज तेज हो गई. मस्जिद के ऊपर पहुंचे कार सेवकों ने गैंती-कुदाल से गुम्बद तोड़ना शुरू कर दिया।
 
सभास्थल से अशोक सिंघल और कुछ अन्य नेताओं ने कारसेवकों से नीचे उतरने की अपीलें कीं, लेकिन कोई असर नहीं हुआ।कुदाल, फावड़ा जिसके पास जो औज़ार था उससे गुंबद तोड़ने लगा। कुछ लोग चूने सुर्खी की इस इमारत को हाथों से ही तोड़ने लगे। अब तक मस्जिद की सुरक्षा में लगे राइफलधारी पुलिस वाले बाहर आ चुके थे. सारे अफसर मूकदर्शक थे.
 
अचानक से कारसेवकों ने फोटो खींच रहे पत्रकारों पर भी हमले शुरू कर दिए और टेलीफोन के तार तोड़ दिए। इसी बीच विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता मानस भवन की छत पर आकर पत्रकारों को वहां से भगाने लगे।
 
इस बीच,कुछ साधु संत भगवान राम लक्ष्मण की मूर्तियों को बाहर निकाल लाए। देखते ही देखते पाँच बजे तक तीनों गुंबद धराशायी हो गए। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया और शाम तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया।
 
राष्ट्रपति शासन लगने के बाद कार्यवाही के डर से कारसेवक अयोध्या से खिसकने लगे. कुछ लोग निशानी के तौर पर मस्जिद की ईंटें साथ ले गए। आडवाणी,जोशी और वाजपेयी जैसे बड़े नेताओं ने घटना पर खेद प्रकट किया।
 
पुलिस ने मस्जिद गिराने के लिए लाखों अज्ञात कारसेवकों पर मुक़दमा दर्ज किया. कुछ ही मिनट बाद भाजपा और विहिप के आठ बड़े नेताओं के ख़िलाफ़ भड़काऊ भाषण देने का एक और नामज़द मुक़दमा क़ायम किया गया।
 
प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव दिन भर तो ख़ामोश थे,पर शाम को अपने प्रसारण में न केवल घटना की भर्त्सना की, बल्कि मस्जिद के पुनर्निर्माण की बात कही।केंद्र सरकार के निर्देश पर स्पेशल ट्रेनें और बसें चलाई गईं, जिससे कारसेवक वापस अपने घरों को जा सकें और प्रशासन बिना बल प्रयोग किए विवादित स्थल पर क़ब्ज़ा वापस ले।उधर, कारसेवकों का एक ग्रुप ध्वस्त हुई मस्जिद के मलवे पर एक अस्थायी मंदिर बनाने में जुट गया. मूर्तियाँ वापस प्रतिष्ठित कर दी गईं।
 

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