प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत-बांग्लादेश संबंधों पर बोलते हुए रविवार को पड़ोसी देश पाकिस्तान पर बिना नाम लिए निशाना साधा। प्रधानमंत्री मोदी ने दक्षिणी एशिया में आतंकवाद फैलाने के लिए पाकिस्तान पर हमला बोलते हुए कहा कि कुछ देशों को मानवतावाद से बड़ा आतंकवाद लगता है। इस तरह की विचारधारा इस क्षेत्र के विकास में रुकावट है।
मोदी के बाद सोमवार को देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इशारों-इशारों में संबंध सुधारने की नसीहत दी। आडवाणी ने कहा कि मेरी इच्छा है कि दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच संबंध सुधरें। कराची का नाम लेते हुए उन्होंने कहा कि जहां मेरा जन्म हुआ था, अब वह भारत का हिस्सा नहीं है। यह पहली बार नहीं है जब आडवाणी ने इस तरह का बयान दिया हो।
दिल्ली में आयोजित इंडिया फाउंडेशन अवेयरनेस प्रोग्राम में बोलते हुए आडवाणी ने कहा कि बांग्लादेश के अतिरिक्त भी कई पड़ोसी देश हैं, जिनसे संबंध सुधारने की जरूरत है। अगर हमारे रिश्ते उन पड़ोसी देशों से सुधरते हैं तो मुझे खुशी होगी। उन्होंने कहा, 'सिंध कभी भारत का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन स्वतंत्रता के बाद हमने देश के उस हिस्से को खो दिया। मैं इससे दुखी हूं। मैं चाहता हूं कि उस देश के साथ भी वैसे ही रिश्ते बनें जैसे कि भारत और बांग्लादेश के बीच है।
जनवरी महीने में आडवाणी ने कुछ इसी तरह का बयान दिया था। आडवाणी ने अपने बयान में कहा था कि पाकिस्तान के सिंध के बिना भारत 'अधूरा' है। कई बार मैं महसूस करता हूं कि कराची और सिंध भारत का हिस्सा नहीं रहे। मैं बचपन के दिनों में सिंध में आरएसएस में काफी सक्रिय था। मेरा मानना है कि भारत सिंध के बिना अपूर्ण प्रतीत होता है।
आडवाणी ने यह बात प्रजापति ब्रह्म कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के संस्थापक आध्यात्मिक गुरू पिताश्री ब्रह्मा के 48वें अधिरोहण समारोह को संबोधित करते हुए कही थी। बता दें कि साल 2005 में पाकिस्तान दौरे के दौरान पाक के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को धर्मनिरेपेक्ष बताने पर आडवाणी को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
गौरतलब है कि लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवम्बर 1927 को कराची में एक सिंधी परिवार में हुआ था। यही कारण है कि बचपन की यादें जुड़ीं होने नाते कराची आडवाणी का सबसे पसंदीदा शहर है। कई बार उन्होंने इस बात को खुद कहा है। आडवाणी ने 1942 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ जुड़कर अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की थी। साल 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर उन्होंने जनसंघ की स्थापना की। तब से लेकर अब तक वक्त गुजर भले ही गया हो लेकिन आज भी लालकृष्ण आडवाणी सिंध को नही भूल पाए हैं।