Khajuraho Dance Festival : धरोहर की धरती पर उल्लास भरते नृत्य
खजुराहो नृत्य महोत्सव के दूसरे दिन भी जमा रंग
Khajuraho Dance Festival : दुनियाभर में अपने सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध खजुराहो के मंदिर इस बासंती और फगुनाते मौसम में फुले नहीं समा रहे। ये मंदिर हमारी अमूल्य धरोहर हैं। पुरातन वैभव से लकदक खजुराहो की भावभूमि पर नृत्य महोत्सव एक नई उमंग और उल्लास भर रहा है। आज दूसरे दिन भी विविध नृत्य शैलियों का कमाल देखने को मिला।
शेंकी सिंह के कथक से लेकर सायली काने, अरूपा गायत्री से लेकर मनाली देव तक सभी ने अपनी नृत्य प्रस्तुतियों से खूब रंग भरे। समारोह के दूसरे दिन की शुरुआत पद्मविभूषण पंडित बिरजू महाराज के शिष्य शेंकी सिंह के कथक नृत्य से हुई। उन्होंने पंडित बिरजू महाराज द्वारा रचित एवं स्वरबद्ध गणेश वंदना से आगाज किया। राग यमन के सुरों में भीगी और भजनी ठेके में लिपटी हुई इस प्रस्तुति में शेंकी सिंह ने नृत्य भावों से भगवान गणेश को साकार करने की कोशिश की। इसके पश्चात उन्होंने तीन ताल में शुद्ध नृत्य पेश किया। इसमें उन्होंने कुछ बंदिशें, परमेलु और तिहाइयों की सधी हुई प्रस्तुति दी। उन्होंने पैरों का काम भी सफाई से दिखाया।
नृत्य का समापन उन्होंने गजल- आज उस शोख की चितवन को बहुत याद किया, पर नृत्याभिनय से किया। दादरा ताल में निबद्ध ये गजल मिश्र किरवानी के सुरों में पगी हुई थी। शेंकी ने अपने नृत्य अभिनय से इस गजल की रूमानियत को बखूबी पेश किया। उनके साथ उत्पल घोषाल ने तबले पर, अनिल कुमार मिश्रा ने सारंगी पर और जयवर्धन दधीचि ने गायन में साथ दिया।
आज की दूसरी प्रस्तुति में पुणे से तशरीफ लाईं सायली काने और उनकी डांस कंपनी कलावर्धिनी के साथियों ने भरतनाट्यम की प्रस्तुति दी। अरुंधति पटवर्धन की शिष्या सायली ने हरिहर नामक पुष्पांजलि की प्रस्तुति से अपने नृत्य का शुभारंभ किया। दूसरी प्रस्तुति में उन्होंने अर्धनारीश्वर पर मनोहारी नृत्य किया। शिव के अर्धनारीश्वर अवतार के बारे में पौराणिक कथा प्रचलित है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि उन्हें शिव में ही समाहित होना है और वो उन्हें ऐसी अनुमति दें। उस समय शिवजी ने पार्वती माता की यह प्रार्थना स्वीकार की और अर्धनारीश्वर स्वरूप का अवतरण हुआ।
सायली और साथियों ने अपने नृत्य अभिनय से अर्धनारीश्वर को बखूबी साकार किया। 'आराध्यमि सततम' इस श्लोक के विविध खंडों को लेकर किया गया यह नृत्य अद्भुत रहा। राग कुमुदक्रिया और रूपक ताल में सजी दीक्षितार की रचना रसिकों को मुग्ध कर गई। अगली पेशकश में उन्होंने नवरस श्लोक पर नृत्य प्रस्तुति दी। रामायण से ली गई कथाओं को इस नृत्य में बखूबी पिरोया गया था। राग मालिका में सजी दीक्षितार की इस रचना पर सायली और साथियों ने देह गतियों और भावों से नव रसों को रसिकों के समक्ष रखा।
नृत्य का समापन उन्होंने पारंपरिक तिल्लाना से किया। राग रेवती और आदि ताल में निबद्ध महाराजा पुरसंतानम की रचना में सभी साथियों ने देवी काली के स्वरूपों को साकार करने की कोशिश की। इस प्रस्तुति में सायली के साथ अनुजा हेरेकर, ऋचा खरे, सागरिका पटवर्धन, प्राची, संपदा कुंटे, मुग्ध जोशी और भक्ति पांडव ने नृत्य में सहयोग दिया, जबकि गायन में विद्या हरी, श्रीराम शुभ्रमण ने मृदंगम पर वी. अनंतरामण ने वायलिन पर और अरुंधति पटवर्धन ने नतवांगम पर साथ दिया।
आज की तीसरी प्रस्तुति में भुवनेश्वर से आईं अरूपा गायत्री पांडा का ओडिसी नृत्य हुआ। उन्होंने नृत्य की शुरुआत कालिदास रचित कालिका स्तुति अलगिरी नंदिनी से की। इस रचना में नृत्य कोरियोग्राफी गुरु अरुणा मोहंती की थी, जबकि संगीत रचना विजय कुमार जैना की थी। रिदम कंपोजिशन वनमाली महाराणा और विजय कुमार पारीक का था। अरूपा गायत्री ने इस प्रस्तुति में दुर्गा के विविध रूपों को अपने नृत्य भावों में पिरोकर दर्शकों के समक्ष रखा।
उनकी अगली प्रस्तुति मधुराष्टकम की थी। कृष्ण की भक्ति में वल्लभाचार्य जी द्वारा रची गई रचना नयनं मधुरं हसितं मधुरम्। हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् में कृष्ण के स्वरूप और उनकी सुंदरता का गुणगान है। अरूपा गायत्री ने इसे नृत्य भावों के जरिए बड़े ही सलीके से पेश किया। कृष्ण की शिशु लीलाएं, माखन चोरी, कालिया मर्दन रास होली सहित तमाम चीजों को अरूपा गायत्री ने पेश किया।
इस प्रस्तुति में कोरियोग्राफी पद्मश्री पंकज चरण दास की थी, जबकि नृत्य निर्देशन अरुणा मोहंती का था। संगीत हरिहर पांडा का रहा। अरूपा गायत्री के साथ गायन में सत्यव्रत काथा ने सहयोग किया। जबकि मर्दल पर रामचंद्र बेहरा,वायलिन पर अग्निमित्र बेहरा बांसुरी पर धीरज पांडे और सितार पर प्रकाशचंद्र मोहपात्रा ने साथ दिया।
आज की सभा का समापन मुंबई से आईं मनाली देव और उनके समूह द्वारा प्रस्तुत कथक नृत्य से हुआ। मनाली और उनके साथियों ने गणेश वंदना से अपने नृत्य का शुभारंभ किया। राग भीमपलासी में निबद्ध रचना 'श्रवण सुंदर नाम गणपति' पर पूरे समूह ने भक्तिपूर्ण अंदाज में नृत्य पेश कर गणपति को साकार करने का प्रयास किया। इसके पश्चात मनाली ने साथियों सहित तीन ताल में शुद्ध नृत्य में कथक के तकनीकी पक्ष को सबके सामने रखा। अगली पेशकश में मनाली ने रूपक ताल में निबद्ध राम का गुणगान करिए भजन पर एकल प्रस्तुति के माध्यम से राम के विविध पक्षों को नृत्य भावों से साकार किया।
नृत्य का समापन राग सोहनियर तीन ताल में निबद्ध तराने के साथ हुआ। इस प्रस्तुति में प्रिया देव, जुई देव, अक्षता माने, मिताली इनामदार, दीया काले, अदिति शहासने ने नृत्य में साथ दिया जबकि तबला और पढंत पर थे पंडित मुकुंदराज देव। गायन में श्रीरंग टेंबे, तबले पर रोहित देव एवं बांसुरी पर सतेज करंदीकर ने साथ दिया। कार्यक्रम का संचालन प्रख्यात कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने किया।