क्या कश्मीर का विशेष दर्जा खतरे में है?

Webdunia
शनिवार, 12 अगस्त 2017 (19:51 IST)
कश्मीर में एकजुटता की राजनीति नई है और यह पहला मौका नहीं है जबकि राज्य में दो कट्‍टर प्रतिद्वंद्व‍ी (पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) ने धारा 35ए का विरोध करने के लिए हाथ मिला लिए हैं। इसलिए सहज प्रश्न उठता है कि अवसरवाद से प्रेरित यह एकता कितने दिन चलेगी? इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि कश्मीर में राजनीतिक एकजुटता इसके विशेष दर्जे को बचाने के लिए है और इसी डर के चलते जम्मू-कश्मीर के पाकिस्तान प्रेमी नेता, अलगाववादी नेता और सभी प्रकार के उग्रवादी एकजुटता की इस बहती गंगा में हाथ धोने के लिए तैयार बैठे हैं।     
 
जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को लेकर भय और आशंकाएं नई बात नहीं हैं और यह एक 'ऐसी संजीवनी है, जिसके चलते भारतीय संघ को कमजोर करने का उपक्रम किया जाता है। और घाटी में जड़ें जमाए राजनीतिक दलों के लिए विशेष दर्जे या कश्मीरियत या छद्म अलगाववाद के तौर पर यही एक संजीवनी है जो उन्हें जिंदा बनाए रखे है।' ऐसा पहली बार नहीं हुआ है लेकिन यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया है। एक याचिका के जरिए एक संवैधानिक प्रावधान 35ए की वैधता को चुनौती दी गई है।   
 
उल्लेखनीय है कि यह एक ऐसा प्रावधान है, जिसके तहत जम्मू कश्मीर राज्य को अपने 'स्‍थायी निवासियों' को परिभाषित करने का अवसर देता है। वास्तव में, यह एक ऐसा  प्रावधान है जिसके तहत राज्य की डेमोग्राफी (जनसांख्यिकी) को इस तरह बनाए रखा जाता है कि यहां के गैर-नागरिकों (खासतौर से वे लोग जो देश विभाजन के बाद पंजाब से भागकर जम्मू कश्मीर और जम्मू के आसपास बसे थे) को जमीन या सम्पत्ति खरीदने का अधिकार नहीं दिया जाए, ताकि वे भी राज्य के 'स्थाई नागरिक' न बन सकें। 
 
विदित हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार से उस याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें भारतीय संविधान की धारा 370 की वैधता को चुनौती दी गई है। इस अनु्च्‍छेद के जरिए ही भारतीय राज्य, जम्मू कश्मीर को विशेष और स्वायत्तशासी दर्जा दिया गया है। पिछले मंगलवार को राजनीतिक पर्यवेक्षकों को उस समय आश्चर्य हुआ जब नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से भेंट की। 
 
जबकि यह आमतौर पर नहीं देखा जाता और इस विशेष पर‍स्थिति के बारे में नेशनल  कान्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता और विधायक अली मोहम्मद सागर का कहना था कि इस मुद्दे  पर सभी ताकतों का एकजुट होना जरूरी है। सागर ने मुफ्ती के ‍अब्दुल्लाह से मिलने के बारे में कहा कि 'ऐसी चीजें तभी होती हैं, जब कभी-कभी अहम मुद्दे सामने आते हैं और जब एकजुट होने का कोई रास्ता नहीं हो और आपके सामने संगठित, एकजुट होकर लड़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं हो।' 
 
सागर का कहना है कि यह मामला किसी एक क्षेत्र विशेष या घाटी तक सीमित नहीं है वरन इससे समूचे राज्य के लोगों के अधिकार और विशेषाधिकार जुड़े हैं। स्वाभाविक है कि लोग चिंतित हैं और उनके साथ राजनीतिक दल भी। पर 'अगर पीडीपी का दूसरों की तरह एक जैसा रुख है, तब उन्हें अपना यह रुख व्यावहारिक तौर पर भी सिद्ध करना होगा। उन लोगों को यह सिद्ध करना होगा कि उनकी चिंताएं वास्तविक हैं।' पीडीपी के वरिष्ठ नेता नईम अख्तर का कहना है कि 'दोनों दलों ने अपनी बैठक के दौरान कहा कि उन्हें जम्मू-कश्मीर के हित में अपनी सामान्य राजनीतिक स्थितियों से ऊपर उठना होगा।' 
 
इस मुद्दे को लेकर द इंडियन एक्सप्रेस में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, जिसमें मुख्यमंत्री महबूबा ने कहा कि 'यह जम्मू-कश्मीर में सभी दलों के लिए चुनौती है। उन दलों के लिए जो जम्मू कश्मीर के संविधान, भारत के संविधान के नाम पर शपथ लेते हैं। अगर अनुच्छेद 35ए से छेड़छाड़ की जाती है तो हमारे विशेष दर्जे में कुछ भी शेष नहीं रह जाता है और हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। यह मुख्यधारा की राजनीति के ताबूत में मौत की आखिरी कील साबित होगी। हमारे पास अपने लोगों से कुछ भी कहने के लिए नहीं बचेगा।' 
 
उल्लेखनीय है कि मुफ्ती ने कुछ दिनों पहले ही कहा था कि 'अगर विशेष दर्जे से छेड़छाड़ की जाती है तो घाटी में भारतीय झंडे तिरंगे को कंधा देने वाला कोई आदमी नहीं बचेगा।'
 
राज्य बनाम केन्द्र : 
अनुच्छेद 35ए को लेकर खतरा उस समय महसूस किया गया जब दो विरोधी दलों से  ज्यादा संगठित गुटों ने खतरे को पहचाना। सोमवार को मुख्यधारा के विपक्ष‍ी दलों  ने एक बैठक का आयोजन किया जिसकी अध्यक्षता डॉ. अब्दुल्ला ने की, जिसमें सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने भाग लिया। इस बैठक के बाद अब्दुल्ला ने विद्रोह की चेतावनी दी। 'अगर आप अनुच्छेद 35ए को समाप्त करेंगे तो आप देखेंगे कि बड़ी संख्या में लोग विद्रोह कर देंगे।'   
 
उन्होंने कहा कि 'आप यह न भूलें कि जब अमरनाथ को लेकर भूमि विवाद हुआ था तो लोग रातोंरात उठ खड़े हुए थे। यह अनुच्छेद 35ए मामले पर एक विद्रोह से ज्यादा ‍सिद्ध होगा और मुझे आश्चर्य है कि क्या वह (भारत सरकार) इसे रोक सकेगी।'  
 
अब्दुल्ला ने एक ग्रेटर कश्मीर 'यूनाइटेड फ्रंट' की भी संभावना जताई। वरिष्ठ कांग्रेस नेता सैफुद्दीन सोज ने भी उनके रुख का समर्थन किया।' सोमवार तो तीन प्रमुख अलगाववादी नेताओं, सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और यासिन मलिक ने आंदोलन को लेकर अपनी राय जाहिर की। इससे सिद्ध होता है कि यह आंदोलन मुख्यधारा की पकड़ से बाहर निकल गया। 
 
इन अलगाववादी नेताओं ने कहा कि 'कश्मीरियों के चल रहे नरसंहार के खिलाफ राज्य में पूरी तरह से बंद रखा जाए' और कहा कि राज्य के विषय 'कानून' को बदलने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने शनिवार 12, अगस्त, 2017 को एक संयुक्त प्रेस वक्तव्य में कहा 'इस दिन कश्मीर के लोग पूरी तरह से बंद रखेंगे और सरकार की मुस्लिम विरोधी और कश्मीर विरोधी कार्रवाइयों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराएंगे।'  
 
ग्रेटर कश्मीर की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मंगलवार को कारोबारियों के एक संगठन, कश्मीर इकॉनॉमिक एलायंस के सदस्यों ने अनुच्छेद ए को समाप्त करने के 'कथित प्रस्ताव' के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने राज्य में जीएसटी के कथित क्रियान्वयन के खिलाफ भी नारेबाजी की।  
 
विदित हो कि जुलाई में हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया कि केन्द्र सरकार  ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में धारा 35ए को 'असंवैधानिक' घोषित करने का  कारण बताने को कहा था। रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार के अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति केहर की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि सरकार इस मामले पर हलफनामा दायर करने की इच्छुक नहीं है। वह चाहती है कि इस  संवेदनशील मुद्दे पर 'एक बड़ी बहस' कराई जाए।     
 
लेकिन एक माह बाद एटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार ने सजग होकर फैसला किया है कि वह इस मुद्दे पर कोई जवाबी-हलफनामा दायर नहीं करना चाहती है  क्योंकि जिन मुद्दों को फैसला देने के लिए कहा गया है वे पूरी तरह से कानून-व्यवस्था के मुद्दे हैं। इस बात पर नाराज होकर पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने एक ट्‍वीट कर अपनी नाराजगी को जाहिर किया। 'उन्होंने अपने ट्‍वीट में कहा, केन्द्र को कहना चाहिए, लेकिन वह कहना नहीं चाहती है कि जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे पर विचार करने के लिए उन परिस्थितियों पर बहस करने की जरूरत नहीं जिनमें सत्ता हस्तांतरण का फैसला किया गया था।' 
 
मुद्दाविहीन राजनीति : 
राज्य में भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख प्रवक्ता सुनील सेठी का कहना है कि इस मामले  को जरूरत से ज्यादा तूल दी गई है। उन्होंने कहा कि 'मेरी समझ में नहीं आता कि  आखिर केन्द्र सरकार कैसे अनुच्छेद 370 या 35ए के खिलाफ है?' उन्होंने पूछा कि फिलहाल केन्द्र सरकार का धारा 370 में या 35ए में बदलाव या फेरबदल करने का कोई  इरादा नहीं है, इसलिए इन लोगों के एकजुट होकर विरोध करने का कोई सवाल नहीं है? वास्तव में यह पूरी तरह से कोई मुद्दा ही नहीं है और राज्य में मुद्दाविहीन राजनीति की जा रही है।   
 
आंदोलन की धमकी पर सेठी ने कहा कि डॉ. फारुक चाहते हैं कि लोगों को भड़काकर देश के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को प्रभावित किया जाए जबकि यह बहुत बुरी और घृणास्पद है। इससे भारतीय सर्वोच्च न्यायालय जैसी संख्या को राजनीति का शिकार बनाया जा सके।  
 
लेकिन वे इस मामले में राज्य में सत्तारुढ़ दलों में से एक पीपुल्स ड्रेमोक्रेटिक पार्टी की आलोचना को लेकर कम मुखर थे और पार्टी की पोजीशन भी इस मामले में उचित ही थी क्योंकि पार्टी ने केवल विशेष दर्जे को बचाने की बात कही थी। सेठी का कहना है कि जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है तो हमारे सामने गठबंधन का एजेंडा है और हम राज्य में संवैधानिक स्थितियों को 'यथा स्थितियों में' बनाए रखना चाहेंगे।' 
 
'उन्होंने आगे यह भी कहा कि अगर कश्मीर से नेशनल कॉन्फ्रेंस या अन्य कोई दल यह  सोचता है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर बहस उनकी आशाओं के अनुरूप नहीं होगी तो  उन्हें कोर्ट में जाकर एक पार्टी बन जाना चाहिए और अपने मामले को लेकर बहस करें।'  नेशनल कॉन्फ्रेंस जा सकती है, पीडीपी भी जान सकती है और कांग्रेस भी कोर्ट में जा  सकती है।'   
 
अस्थाई एकता  :
इस मामले पर एक पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक मोहम्मद सय्यद मलिक का कहना है कि हालांकि विभिन्न दलों ने एक समान स्थिति अपना ली है, लेकिन इसके बावजूद एक ही प्लेटफॉर्म पर नहीं आ सके हैं। उनका कहना है कि 'घाटी सभी दलों से ऊपर उठकर है इसलिए प्रत्येक राजनीतिक दल के सामने मजबूरी है कि वे एकजुटता प्रदर्शित करें।  
 
मलिक का कहना है कि यह 'लम्बे समय तक चलने वाली स्थाई राजनीतिक एकता' नहीं है वरन यह विशेष दर्जे को बचाने के उद्देश्य से तय की गई अस्थाई जोड़तोड़ है और इस कारण सभी एक ही साझे रुझान पर हैं। इसी तरह से जहां तक आंदोलन उठ खड़े होने की संभावना है और बहुत कुछ केन्द्र सरकार के रवैए पर निर्भर करेगा, क्योंकि हम केवल प्रतिक्रिया दे सकते हैं, कोई कार्रवाई नहीं कर सकते।

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