सीमा के लोग भी चाहते हैं आर-पार की लड़ाई

सुरेश एस डुग्गर
मंगलवार, 19 सितम्बर 2017 (19:42 IST)
अरनिया (जम्मू फ्रंटियर से)। क्या सच में सीजफायर ऐसा होता है? नागरिकों को निशाना बना मोर्टार तथा छोटे तोपखानों से गोलों की बरसात करना। दागे गए कई गोले फूटते हैं तो मासूमों की जान ले ले लेते हैं। कई अपंग और कई लाचार हो जाते हैं। जो गोले फूटते नहीं हैं वे गलियों और खेतों में जिन्दा मौत बनकर रहते हैं। ऐसे में आस यह लगाने को कहा जाता है कि सीमाओं पर जारी सीजफायर अपने 14 साल पूरे कर ले।
 
एलओसी से सटे इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों ने 60 सालों तक ऐसे हालात के साथ जीना सीख लिया था पर 264 किमी लंबे इंटरनेशनल बॉर्डर के लोगों के लिए यह किसी अचम्भे से कम नहीं है। ‘एक तो जम्मू सीमा इटरनेशनल बॉर्डर है जहां इंटरनेशनल लॉ लागू होते हैं और दूसरा कहते हैं कि सीजफायर भी जारी है,’ अरनिया का नरेश कहता था जो परसों सुबह हुई गोलाबारी में अपने परिवार के एक सदस्य को गंवा चुका था। नरेश कहता था : ‘अगर इसे सीजफायर कहते हैं तो हमें इसकी जरूरत नहीं है। इससे भली जंग ही है जिसमें एक बार आर-पार हो जाए ताकि हमें भी पता चल जाए कि हमें जिंदा रहना है या मर जाना है। हम रोज-रोज तिल-तिल कर मरने से तंग आ चुके हैं।’
 
दरअसल, सीजफायर उल्लंघन की घटनाएं दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं। सीजफायर के 14 सालों के अरसे में होने वाली 1500 से अधिक उल्ल्ंघन की घटनाएं अक्सर सीजफायर के जारी रहने पर सवालिया निशान लगा देती हैं। साथ ही सीमांत इलाकों के किसानों व अन्य नागरिकों के माथे पर चिंता की लकीरें।
 
198 किमी लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा और 814 किमी लंबी एलओसी से सटे इलाकों में बसने वाले 32 लाख के करीब सीमावासी दिन-रात बस एक ही दुआ करते हैं कि सीजफायर न टूटे। ‘हमने मुश्किल से अपना घर आबाद किया है और पाक सेना उसे मटियामेट करने पर उतारू है,’पल्लांवाला के डिग्वार का मुहम्मद अकरम कहता था जिसके दो बेटों को पहले ही सीमा पर होने वाली गोलीबारी लील चुकी है तथा सीजफायर से पहले उसके घर को कई बार पाक गोलाबारी नेस्तनाबूद कर चुकी है।
 
हालांकि अगले नवंबर महीने की 26 तारीख को सीजफायर 14 साल पूरे करने जा रहा है पर इसके बने रहने पर सवाल अभी भी कायम है। ऐसे हालात के लिए पूरी तरह से पाक सेना को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जो आतंकियों को इस ओर धकेलने के लिए अपनी कवरिंग फायर की नीति का इस्तेमाल एक बार फिर से करने लगी है और इस पर टिप्पणी करते हुए सेनाधिकारी कहते हैं कि अगर पाक सेना ने इस रवैए को नहीं त्यागा तो भारतीय पक्ष भी करारा जवाब देने से हिचकिचाएगा नहीं। और यही सीमावासियों के लिए चिंता की लकीरें पैदा करने वाला है जो पिछले 14 सालों के अरसे में 60 साल के गोलियों के जख्मों का दर्द भुला चुके हैं तथा अब फिर घरों से बेघर होने की स्थिति में नहीं हैं।
 
कोई नहीं जानता है कि सीजफायर का क्या भविष्य होगा पर सीमावासियों का भविष्य जरूर खतरे में है। वे रोजाना तिल-तिल कर मर रहे हैं। सिरों पर पाक सेना के गोलों की बरसात का खतरा मंडरा रहा है तो साथ ही भूखे मरने की नौबत भी आने लगी है। परेशानी यह है कि राज्य सरकार उनकी मदद उसी स्थिति में करती है जब युद्ध घोषित हो और इन लोगों की बदकिस्मती यह है कि प्रतिदिन होने वाला सीजफायर का उल्लंघन उनके लिए किसी युद्ध से कम नहीं है।
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