पल्लांवाला (अखनूर सेक्टर)। सैनिक वाहनों की गड़गड़ और हलचल इस बात का आभास दे रही है कि कुछ खतरे की आशंका इस सेक्टर में है। यह खतरा पाकिस्तान की ओर से महसूस किया जा रहा है, क्योंकि यह सेक्टर भारतीय सेना के लिए जहां महत्वपूर्ण ही नहीं है बल्कि सबसे नाजुक भी माना जाता रहा है, जहां 1965 तथा 1971 के युद्धों में भारतीय सेना के लिए पाक सेना ने परेशानियां पैदा कर दी थीं।
नतीजतन भारतीय सेना इस सारे सेक्टर में, जहां सिर्फ पहाड़ और नदी-नालों के अतिरिक्त तेजी से बहता चिनाब दरिया भी है तो मनवर तवी नदी भी, रक्षात्मक तैयारियों में जुटी है। उसे ऐसा इसलिए करना पड़ रहा है, क्योंकि पाक सेना इस क्षेत्र की कई सीमांत चौकियों पर कब्जे के इरादों से कई आक्रामक हमले कर चुकी है। यह बात अलग है कि भारतीय सेना के वीर बहादुरों ने भारत की धरती की ओर बढ़ते पाक सैनिकों के नापाक कदमों को ही जमीन से उखाड़ दिया।
भारतीय सेना के जवानों की ताकत, हिम्मत तथा बहादुरी पर किंचित मात्र भी शंका नहीं की जा सकती लेकिन बावजूद वह रक्षात्मक तैयारियों में इसलिए जुटी है, क्योंकि यह क्षेत्र नाजुक है। नाजुक होने के कई कारणों में एक कारण बार-बार अपना रुख मोड़ लेने वाली मनवर तवी नदी है, जो राजौरी से निकलकर पाकिस्तान की ओर इस सेक्टर से घुसती है। तो वे कालीधार पर्वत श्रृंखला के पहाड़ भी हैं, जो भारतीय सेना के लिए अक्सर घातक इसलिए साबित होते हैं, क्योंकि पाक सेना ने 1947 के भारत-पाक युद्ध में इसके ऊंचाई वाले शिखरों पर कब्जा कर लिया था।
पाक सेना की ऊंचाई वाली पोजिशनें ही भारतीय सेना के लिए घातक साबित होती रही हैं। ये 1965 तथा 1971 के युद्धों में भी घातक साबित हुई थीं। सनद रहे कि 1965 में पाकिस्तान ने भारत के छम्ब क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था तो 1971 में वह उसके आगे ज्यौड़ियां तक आ गया था। हालांकि ताशकंद समझौते के उपरांत भारत को ज्यौड़ियां तो वापस मिल गया था, मगर छम्ब का महत्वपूर्ण क्षेत्र पाकिस्तान ने वापस नहीं लौटाया था।
पिछले युद्धों की दास्तानों को भारतीय सेना पुन: नहीं दोहराना चाहती है। यही कारण है कि उसे इस सेक्टर में हमेशा ही चौकस, सतर्क तथा रक्षात्मक पोजिशन में रहना पड़ता है। इसी सतर्कता तथा चौकस परिस्थितियों का परिणाम है कि भारतीय सेना पाक सेना की उन कई नापाक कोशिशों को नाकाम बना चुकी है जिनमें भारतीय सीमा चौकियों पर कब्जे के प्रयास किए गए थे।
कारगिल युद्ध के उपरांत भारतीय सेना को इस नाजुक माने जाने वाले सेक्टर में कुछ अधिक ही ताकत झोंकनी पड़ रही है। सिर्फ ताकत ही नहीं बल्कि अधिक सतर्कता, अधिक चौकसी के साथ ही अधिक रक्षात्मक पोजिशनों का निर्माण भी करना पड़ रहा है।
एलओसी के इस सेक्टर की दुखदायक कहानी यह है कि यह आधा एलओसी पर पड़ता है तो आधा इंटरनेशनल बॉर्डर पर अर्थात अंतरराष्ट्रीय सीमा यहीं आकर खत्म होती है और एलओसी यहीं से आरंभ होती है। नतीजतन भारतीय सेना को अपनी प्रत्येक फौजी कार्रवाई को ध्यान में रखकर काम करना पड़ता है ताकि कहीं पाक सेना को यह आरोप लगाने का अवसर न मिले कि भारतीय सेना अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सैनिक जमाव कर रही है।
इस क्षेत्र में तैनात भारतीय सेनाधिकारी इस सेक्टर की स्थिति को खतरनाक बताते हैं। यह इसी से स्पष्ट है कि कारगिल युद्ध में भी पाक सेना का सारा ध्यान इसी सेक्टर की ओर था तो अब भी इसी ओर है। सीमा पर भारतीय सीमा चौकियों पर कब्जा जमाने के जितने भी प्रयास पाक सेना ने किए हैं, आधे से अधिक अकेले इसी सेक्टर में हुए हैं।
हालांकि इन प्रयासों में भारतीय पक्ष को भी क्षति पहुंची है पाकिस्तान के साथ-साथ, लेकिन चिंताजनक बात इन प्रयासों की यह है कि इनके कारण तनाव तो बढ़ा ही, हजारों लोगों को घरबार छोड़ने पर मजबूर होना पड़ता है। पलायन करने वालों ने तो ज्यौड़ियां के पास टेंटों की बस्ती बसा ली थी, मगर जो गोलियों का शिकार हो गए उनकी कमी आज भी पलायन करने वाले महसूस करते रहे हैं।
अखनूर कस्बे से जब पल्लांवाला क्षेत्र की ओर बढ़ा जाता है तो रास्ते में सेना की जांच चौकियों पर उस खतरे को महसूसा जा सकता है, जो भारतीय सेना भांप रही है। यही कारण है कि पाक सेना के खतरे को महसूस करते हुए एलओसी के 5 किमी पीछे तक के क्षेत्र में रहने वाली आबादी को सतर्क कर दिया गया है। ऐसा करने के पीछे अधिकारी पाक सेना की नीतियों को कारण बताते हुए कहते हैं कि अगर आबादी को बसाया जाता तो पाक सेना उन्हें निशाना बना भारतीय सेना का ध्यान बंटा देती है।
हालांकि इस सेक्टर में कई-कई किमी तक आबादी न होने के कारण तथा मीलों तक पहाड़ों व नदी-नालों के फैले होने के कारण आतंकवादियों की घुसपैठ का खतरा भी इस सेक्टर से कुछ अधिक ही बढ़ा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मीलों तक जंगल, पहाड़ नदी-नाले हैं और अगर कोई एक बार एलओसी पार कर इस ओर आ जाए तो उसे तलाश पाना आसान कार्य नहीं रह पाता।
आतंकवादियों की घुसपैठ को रोकने के लिए लगातार गश्त का कार्य भी आसान कार्य नहीं है, क्योंकि ऊंचाई वाली पोस्टों में तैनात पाकिस्तानी सेना के जवान मौके की तलाश में रहते हैं कि कब भारतीय सेना का कोई जवान दिखे और वे उसे निशाना बनाएं।