नई दिल्ली। गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को स्पष्ट किया है कि गैर कानूनी तरीके से भारत में आए अन्य देशों के नागरिकों की पहचान के लिए देशव्यापी स्तर पर राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) बनाने की प्रक्रिया शुरू होने पर इसे असम में भी दोहराया जाएगा।
शाह ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान एनआरसी में 6 गैर मुस्लिम धर्मों के शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने से जुड़े एक सवाल के जवाब में स्पष्ट किया कि सरकार चाहती है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश में प्रताड़ना के शिकार होकर भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन पारसी और इसाई धर्म के शरणार्थियों को नागरिकता दी जाए।
शाह ने कहा कि इसके लिए सरकार नागरिकता कानून में संशोधन करेगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि पिछली लोकसभा से पारित किए जा चुके नागरिकता संशोधन विधेयक को असम के लिए बनाए गए एनआरसी कानून से भ्रमित न किया जाए।
शाह ने कहा कि एनआरसी में धार्मिक आधार पर नागरिकों की पहचान का कोई प्रावधान नहीं है। इसमें सभी धर्मों के लोगों को शामिल किया जाएगा। उन्होंने कहा कि पिछली लोकसभा में पारित नागरिकता संशोधन विधेयक में सभी दलों की सहमति से शरणार्थियों को धार्मिक आधार पर नागरिकता देने के प्रावधान शामिल किए गए थे।
उल्लेखनीय है कि 16वीं लोकसभा भंग होने के कारण इससे संबंधित विधेयक निष्प्रभावी हो गया था। सरकार अब नए सिरे से नागरिकता संशोधन विधेयक को मंत्रिमंडल की मंजूरी प्राप्त करने के बाद संसद में पेश करेगी।
शाह ने कहा कि असम में गैरकानूनी शरणार्थियों की समस्या से निपटने के लिए उच्चतम न्यायालय के आदेश पर एनआरसी कानून बनाकर लागू किया गया है। उन्होंने कहा कि बाद में एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा, उस समय भी असम को इसमें स्वाभाविक तौर पर शामिल किया जाएगा।
असम में एनआरसी से बाहर किए गए 19.6 लाख लोगों की अपील पर अभी तक न्यायाधिकरण में सुनवाई नहीं होने के पूरक प्रश्न के जवाब में शाह ने कहा, ऐसे सभी लोगों को ट्रिब्यूनल में जाने का अधिकार है, जिनके नाम एनआरसी में छूट गए हैं। ट्रिब्यूनल में अपील दायर करने की सुविधा असम की हर तहसील में मुहैया कराई जाएगी और राज्य सरकार निर्धन तबके के लोगों को विधिक सहायता भी उपलब्ध कराएगी।