बच्चों के साथ यौन दुराचार यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले जर्मनी में आए दिन का समचार बन गया है। अभी कुछ ही दिन पहले एक ऐसे देशव्यापी 'चैट-ग्रुप' की पोल खुली थी, जिसे दुधमुंहे बच्चों तक को अपनी हवस का शिकार बनाने में कोई संकोच नहीं होता।
14 जून को म्युन्स्टर विश्वविद्यालय का एक ऐसा अध्यन वहां के कैथलिक चर्च के बिशप को सौंपा गया, जिसमें कहा गया है कि उनके अधिकारक्षेत्र के गिर्जाघरों में भोले-भाले बच्चों का सात दशकों से निर्लज्ज यौनशोषण होता रहा है। जर्मनी के कैथलिक गिर्जाघरों में बच्चों के साथ यौनदुराचार का कच्चा चिट्ठा खोलने वाला न तो यह पहला अध्ययन है और न ही अंतिम होगा। यह भी नहीं होगा कि कैथलिक चर्च के धर्माधिकारी दोषियों को यथासंभव बचाने-छिपाने के बदले उन्हें कठोरतापूर्वक दंडित करेंगे।
म्युन्स्टर विश्वविद्यालय में इतिहास के पांच प्रोफ़ेसरों की एक टीम ने, बच्चों के साथ यौन दुराचार के 1945 से 2020 तक के 600 पीड़ितों की फ़ाइलें पढ़ीं। उन्होंने इतिहासकारों की दृष्टि से जांचा कि इन 75 वर्षों में, केवल म्युन्स्टर बिशप-क्षेत्र में पड़ने वाले गिर्जाघरों में, बच्चों के साथ यौन दुराचार की कैसी शिकायतें आईं और निचले स्तर के पादरियों से लेकर उपरी स्तर के बिशपों, कार्डिनलों आदि धर्मधिकारियों ने क्या कार्रवाइयां कीं। जर्मनी में कैथलिक चर्च के कुल 27 बिशप-क्षेत्र हैं। देश की सवा 8 करोड़ की जनसंख्या में दो करोड़ 20 लाख लोग कैथलिक संप्रदाय के ईसाई हैं।
कम से कम 5700 बार दुराचार हुए : म्युन्स्टर विश्वविद्यालय के इन शोधकों का मानना है कि केवल म्युन्स्टर वाले बिशप-क्षेत्र के जिन 600 पीड़ितों की फ़ाइलें उन्होंने देखीं, उनके साथ कुल मिलाकर कम से कम 5700 बार दुराचार हुए। पीड़ित लड़के-लड़कियों की असली संख्या 5000 से 6000 भी हो सकती है। दोषी पादरियों आदि की संख्या भी 200 से कम नहीं है। अपना अध्ययन म्युन्स्टर के बिशप को सौंपते समय अध्यन टीम के प्रवक्ता प्रो. टोमास ग्रोसब्यौल्टिंग ने कहा कि बच्चों और किशोर-किशोरियों के साथ यौनप्रेरित हिंसा वैसे तो 'सारे समाज की एक समस्या है,' पर 'हम नहीं जानते कि गिर्जाघर भी कहीं इसके हॉट-स्पॉट तो नहीं बन गए हैं।'
प्रो. ग्रोसब्यौल्टिंग ने साफ़ शब्दों में कहा कि उनकी टीम के अध्ययन ने 'विशिष्ट कैथलिक- छाप अपराधों को उजागर' किया है। पुरोहितवाद, एक संस्थान के तौर पर चर्च के हमेशा बचाव और एक दमनात्क दोगली यौन-नैतिकता की प्रवृत्ति ने बच्चों के यौन-दुरुपयोग की ऐसी ''परिस्थितियां संभव बनाईं कि चर्च खुद ही अपराधी बन गया लगता है।' चर्च और राज्य सत्ता के बीच अधिकारों का 'लंगड़ा विभाजन' पूरी घातकता के साथ अपना असर दिखा रहा है। उल्लेखनीय है कि जर्मनी में चर्च से जुड़े आपराधिक मामले स्वयं चर्च ही निपटाते हैं। पुलिस या देश की न्याय प्रणाली तभी कुछ कर सकती है, जब कोई मामला उसे सौंपा जाए।
'कैथलिकता की आत्मा पर कुठाराघात' : प्रो. ग्रोसब्यौल्टिंग के शब्द कैथलिक चर्च की बखिया उधेड़ने वाले थे। उनका कहना था कि गिर्जाघरों को पवित्रता और पादरियों को आध्यात्मिकता मंडित करना कुछ ऐसा ही है, मानो वे ऐसे पवित्र पुरुष हैं, जो ईसा मसीह के प्रतिनिधियों के तौर पर सेवा कर रहे हैं। मानो बच्चों के साथ उनका बर्ताव ईश्वर के लिए चढ़ावे के समान है।
प्रो. ग्रोसब्यौल्टिंग के शब्दों में, 'यह ईश्वर का, और ईसा मसीह के परोपकारिता वाले संदेश का ऐसा विकृतीकरण है, जो कैथलिकता की ठेठ आत्मा पर कुठाराघात करता है।' यौनदुराचार कैथलिक चर्च के अपराधों की लंबी कड़ी की एक इकाई भर नहीं है, बल्कि 'उसके आत्मबोध पर ही एक प्रश्नचिन्ह है।' भारत में ईसाइयत के प्रचारकों और समर्थकों को इस कथन पर ध्यान देना चाहिए।
प्रो. ग्रोसब्यौल्टिंग और उनके सहयोगियों ने अपने अध्ययन में पाया कि कैथलिक चर्च के अधिकारियों की सारी चिंताएं चर्च की साख और दोषियों की खाल बचाने को लेकर रही हैं, न कि पीड़तों को राहत पहुंचाने की। चर्च की साख बचाना उनके लिए मानवसेवा के समान था।
पीड़ितों और उत्पीड़कों, दोनों को चुप्पी साध लेने के लिए राज़ी करना उनकी रणनीति होती थी। उनकी कथनी और करनी में दोगलेपन का लक्ष्य यौनदुराचर के मामलों को यथासंभव दबा देना और भुला देना होता था और अब भी है।
पीड़ितों की आपबीती भी सुनी : म्युन्स्टर विश्वविद्यालय के शोधकों ने केवल पुरानी फ़ाइले हीं नहीं छानीं। अपने बचपन के दिनों में कैथलिक गिर्जाघरों या उनके आयोजनों में यौन दुराचार के शिकार बन चुके 60 से अधिक लोगों से मिल कर उनकी आपबीती भी सुनी। चर्च के कई ऊंचे पदाधिकारियों से भी मिले। उन्होंने पाया कि औसतन हर 20वां पादरी कम से कम एक बार यौन दुराचार कर चुका था। अकेले म्युन्स्टर वाले बिशप-क्षेत्र में ही, 1945 से 2020 के बीच, ऐसे 196 नाम मिले।
हर सप्ताह औसतन दो बार, किसी न किसी कैथलिक चर्च का कोई न कोई पादरी किसी न किसी लड़के या लड़की को अपनी हवस का शिकार बनाया करता था। लड़कियों से अधिक लड़कों को यह घृणित यातना भुगतनी पड़ती है। कैथलिक पादरियों और धर्माधिकारियों में प्रचलित इस अदमनीय कामवासना का मुख्य कारण इस नियम को माना जाता है कि उनके लिए आजीवन अविवाहित रह कर ब्रह्मचर्य़ का पालन अनिवार्य है। गिर्जाघरों में कई ऐसे अनुष्ठान भी होते हैं, जिनमें बच्चे छोटे-मोटे काम करते हैं। जर्मन स्कूलों में कैथलिक और प्रोटेस्टैन्ट, यानी दोनों मुख्य ईसाई संप्रदायों की ओर से नियमित धर्मशिक्षा दी जाती है। उनके पादरी स्कूलों में जाते हैं और कई बार बच्चों को चर्च में भी जाना पड़ता है।
38 प्रतिशत शिकायतों की अनदेखी : म्युन्स्टर के शोधकों का निष्कर्ष है कि वहां के बिशपों ने यौनदुराचार की क़रीब 38 प्रतिशत शिकायतों को या तो अनदेखा कर दिया, या दोषी को अनमनेपन के साथ किसी दूसरी जगह भेज दिया। पुलिस और न्याय पालिका को यथासंभव दूर ही रखा गया। 1960 वाले दशक के एक गंभीर माममले में एक दोषी पादरी, म्युन्स्टर के बिशप की जानकारी के साथ, स्वीडन भाग गया। कैथलिक चर्च की ही एक अंतरराष्ट्रीय संस्था चैरिटी इंटरनेशनल की सहायता से वह बाद में दक्षिणी अमेरिका पहुंच गया।
यही नहीं, म्युन्स्टर के तत्कालीन बिशप और पोप के निवास स्थान वैटिकन की मिलीभगत से उस भगोड़े पादरी की ऑस्ट्रिया में नई नियुक्ति हुई। वह आजीवन मज़े करता रहता, यदि एक बार फिर जर्मनी जाने की ग़लती न करता। उसने यह ग़लती की और जर्मन पुलिस के हाथ चढ़ गया। यह दिलचस्प कहानी अगली बार कभी।
यौन दुराचार के दोषियों को संरक्षण देने के मामले में वर्तमान पोप फ्रांसिस के पूर्गामी, जर्मनी के पोप बेनेडिक्ट 16वें भी आलोचना के घेरे में हैं। उनका असली नाम योज़ेफ़ रात्सिंगर है और वे ऐसे पहले पोप रहे हैं, जो आजीवन पोप रहने के बदले स्वेच्छा से रिटायर हो गए। वे मानने को तैयार नहीं हैं कि उन्होंने जर्मनी में कार्डिनल रहने के दौरान यौन दुराचारों की अनदेखी की या किसी दोषी को संरक्षण दिया।
हर साल तीन लाख लोग चर्च को त्याग रहे हैं : पूरे देश के स्तर पर यदि देखा जाए, तो जर्मनी के कैथलिक गिर्जाघरों में बच्चों के साथ यौनदुराचार इतना बढ़ गया है कि अधिकांशतः इसके प्रति विरोध स्वरूप ही, हर साल तीन लाख से अधिक स्त्री-पुरुष कैथलिक चर्च की सदस्यता त्याग रहे हैं। वे कोई दूसरा धर्म नहीं अपनाते, पर चर्च को उनकी सदस्यता फ़ीस से हाथ ज़रूर धोना पड़ता है।
जर्मनी में कैथलिक या प्रोटेस्टैंट चर्च के सदस्यों को अपने वेतन या समग्र आय पर लगने वाले आयकर के 8 प्रतिशत के बराबर चर्च टैक्स देना पड़ता है। इसे सरकारी आयकर विभाग सीधे उनके वेतन या व्यापार-धंधे वाली उनकी आय से काट कर उस चर्च को देता है, जिसके वे सदस्य होते हैं। सरकार और चर्च के बीच इसी धर्मसापेक्ष मिलीभगत के कारण देश के दोनों ईसाई संप्रदाय दुनिया के सबसे धनी ईसाई चर्च कहलाते हैं, हालांकि सरकार अपने आप को तब भी धर्मनिरपेक्ष ही मानती है। यूरोप के अधिकांश देशों का यही हाल है। तब भी भारत से धर्मनिरपेक्षता का आग्रह करने से वे कभी नहीं चूकते।
जर्मनी की महिलाओं ने एक अलग मोर्चा खोल रखा है। 'मरिया 2.0' नाम के एक आन्दोलन द्वरा वे कैथलिक चर्च के धर्माधिकारियों और पोप फ्रांसिस से मांग कर रही हैं कि महिलाओं को भी पादरी आदि बनने और गिर्जाघरों में धार्मिक अनुष्ठान करने का अधिकार मिलना चाहिए। यह आंदोलन पिछले तीन वर्षों से चल रहा है। जर्मन महिलाएं यह भी चाहती हैं कि समलैंगिक संबंधों एवं विवाहों को चर्च स्वीकार करे और समलैंगिकों को भी दूसरों जैसा ही मान-सम्मान मिले। अभी तक तो उन्हें कोई उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली है। (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। वेबदुनिया का इनसे सहमत होना जरूरी नहीं है)