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पटाखों का इतिहास: कैसे चीन, यूरोप और अरब होती हुई भारत आई आतिशबाजी

हमें फॉलो करें पटाखों का इतिहास: कैसे चीन, यूरोप और अरब होती हुई भारत आई आतिशबाजी
, सोमवार, 1 नवंबर 2021 (12:59 IST)
दिवाली आते ही अब एक बार फि‍र से पटाखों की विस्‍फोटक चर्चा शुरू हो गई है। कुछ लोग पटाखें जलाने के पक्ष में रहते हैं तो कुछ इसे पर्यावरण और स्‍वास्‍थ्‍य को नुकसान पहुंचाने वाला बताकर आतिशबाजी के खि‍लाफ हैं।
 
किसी भी मुद्दे पर इस तरह की सहमति और सहमति चलती रहेगी, यह आम बात है, लेकिन इस बीच यह जानना दिलचस्‍प होगा कि आखि‍र पटाखों या आतिशबाजी का इतिहास क्‍या है।
 
रिपोर्ट के मुताबि‍क पटाखों का इतिहास चीन से जुड़ा है, करीब 2200 साल पहले चीन के लुइयांग शहर में पटाखें जलाए गए थे। तब उनका आकार और तरीका ऐसा नहीं था, जैसा आज होता है। ये एक तरह की बांस की छड़ि‍यां होती थीं, जिन्‍हें आग में जलाने से धमाका होता था।
 
बाद में चीनी नागरिकों ने बांस की छड़ि‍‍यों में बारुद भरकर पटाखें बनाए, जिन्‍हें हैंडमेड पटाखे कहा जाता है। इसके बाद बांस के बजाए कागज का इस्‍तेमाल किया जाने लगा।
 
यह भी कहा जाता है कि करीब 500 साल पहले एक शहजादी की शादी में आतिशबाजी की गई थी। इस दौरान कहा जाता है कि करीब 80 हजार के पटाखे जलाए गए थे। हालांकि इसमें कितने सच्‍चाई है यह किसी को नहीं पता, लेकिन अलग अलग रिपोर्ट से यही तथ्य उभरकर सामने आते हैं।

चीन के बाद पटाखें यूरोप और अरब देशों में लोकप्र‍िय होने लगे। यहां कुछ खास मौकों पर या फि‍र अपनी जनता को खुश करने के लिए उस वक्‍त के राजा-महाराजा और शाषक आतिशबाजी करने लगे। वहीं बाद में अमेरिका की आजादी के मौके पर बड़े पैमाने पर आतिशबाजी की गई।

तमाम देशों की यात्रा करते हुए करीब 1400 या 1500 ईसवीं में इतिहास में पटाखों और आतिशबाजी का जिक्र मिलता है। जो अलग-अलग उत्‍सवों और शादियों आदि में किया जाता रहा है। मध्‍य युग में आतिशबाजी राजशाही परिवारों का अभिन्‍न हिस्‍सा था।

बाद में धीरे-धीरे यह रौशनी के पर्व दिवाली का भी हिस्‍सा बन गया। और इतना प्रचलित हुआ कि आज तक हर छोटे बड़े उत्‍सव और आयोजन में आतिशबाजी की जाती है। हालांकि अब धीरे-धीरे ग्रीन पटाखों का चलन भी हो चला है। जानते हैं कितने फायदेमंद हैं ग्रीन पटाखें।  

क्या होते हैं ग्रीन पटाखे?
ग्रीन पटाखों को खास तरह से तैयार किया जाता है और माना जाता है कि इससे प्रदूषण काफी कम होता है। इन पटाखों से 30-40 फीसदी तक प्रदूषण को कम किया जाता है। इन पटाखों में वायु प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले नुकसानदायक कैमिकल नहीं होते हैं। ग्रीन पटाखों के लिए कहा जाता है कि इसमें एल्युमिनियम, बैरियम, पौटेशियम नाइट्रेट और कार्बन का इस्तेमाल नहीं किया जाता या फिर बहुत कम मात्रा में किया जाता है।

इससे वायु प्रदूषण को बढ़ने से रोका जा सकता है। ग्रीन पटाखे दिखने में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं और ग्रीन पटाखों की कैटेगरी फुलझड़ी, फ्लॉवर पॉट, स्काईशॉट जैसे सभी तरह के पटाखे मिलते हैं। इन्हें भी माचिस की तरह जलाया जाता है, इसके अलावा इनमें खुशबू और वाटर पटाखे भी जाते हैं, जिन्हें अलग तरह से जलाया जाता है। इन पटाखों से रोशन भी होती है। ये सामान्य पटखों वाला फील देते हैं। बस ये पर्यावरण के अनुकूल होते हैं।

इन पटाखों को जलाने पर धुआं निकलता है और इसकी मात्रा कम होती है। हालांकि ये पटाखे सामान्य पटाखों से थोड़े महंगे होते हैं। जहां सामान्‍य पटाखों के लिए 250 रुपए तक खर्च करना पड़ता है, वहीं ग्रीन पटाखों के लिए 400 रुपये से ज्यादा खर्च करना पड़ सकता है।

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