दक्षिण के किसान ने तोड़ा मिथ, कम पानी में उगा रहा है धान...

Webdunia
गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021 (20:07 IST)
आपने पानी से लबालब खेत में किसानों और मजदूरों को धान की फसल रोपते हुए देखा होगा। धान की फसल को लेकर आम धारणा यह है कि यह फसल कम पानी में नहीं हो सकती। एक अनुमान के मुताबिक भारत में भारत में एक किलो चावल उगाने के लिए करीब 5000 लीटर पानी लगता है, जो कि कृषि में उपयोग किए जाने वाली का एक तिहाई हिस्सा है।
 
इसमें कोई संदेह नहीं कि समस्या का समाधान भी समाज के भीतर से ही आता है। दक्षिण भारत के एक किसान ने एक अजूबा लगने वाला काम कर दिखाया है। उन्होंने ऐसी विधि विकसित की है, जिस‍के जरिए परंपरागत धान की खेती से इतर कम पानी में धान उगाया जा सकता है। असल में, ज्यादा पानी में उगाई गई धान की फसल से मीथेन का भी करीब 20 फीसदी उत्सर्जन होता है, जो अन्य की तुलना में सर्वाधिक है। 

बीबीसी की 'फॉलो द फूड' श्रृंखला के तहत पड़ताल कर रहे हैं प्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी जेम्स वांग ने भारत में किसानों से मुलाकात की और पारंपरिक खेती में किए जा रहे सफल प्रयोग पर तमिलनाडु के स्थानीय किसानों से बातचीत की।
 
रविचंद्रन वनचिनाथन ऐसे ही किसान हैं, जिन्होंने ज्यादा पानी से धान की खेती करने संबंधी मिथ को झुठलाया है। बीबीसी के फॉलो द फूड सीरीज के तहत यह बात सामने आई कि रविचंद्रन धान उगाने के लिए एसआरआई (System of Rice Intensification-SRI) नामक विधि का उपयोग कर रहे हैं। इस विधि में न सिर्फ कम पानी का उपयोग होता बल्कि उपज में भी सुधार होता है। साथ ही मीथेन का भी तुलनात्मक रूप से कम उत्सर्जन होता है। 
 
वे पानी खेतों में लगातार डालते हैं, खेत को भरते नहीं है। इस दौरान पौधे की जड़ों को अधिक ऑक्सीजन मिलती है, जिससे उन्हें पनपने में भी मदद मिलती है। इससे अधिक स्वस्थ पौधा तैयार होता है साथ ही फसल भी अच्छी प्राप्त होती है। वे कहते हैं कि इस विधि से फसल लेने में 30 से 40 फीसदी कम पानी लगता है।
 
धान की परंपरागत खेती का दूसरा पहलू यह है कि दक्षिणी भारत के राज्य भी मानसून की बारिश में बदलाव के कारण पानी की भारी कमी से जूझ रहे हैं। पानी की कमी के कारण कई किसानों ने चावल की खेती भी छोड़ दी है। लेकिन रवि ने साबित किया है यह एक मिथक है।  
 
इस संदर्भ में नेताफिम इंडिया के रिजनल मैनेजर (दक्षिण) श्रवण कुमार मणि कहते हैं कि भारत का 54 फीसदी हिस्सा पानी की से जूझ रहा है। इतना ही नहीं बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्य उत्पादन भी बड़ी चुनौती है। ऐसे में हमें आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करना होगा साथ ही पानी पौधों को देना होगा न कि मिट्‍टी को।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

Project Cheetah : प्रोजेक्ट चीता अच्छा काम कर रहा, NTCA ने जारी की रिपोर्ट

No Car Day : इंदौर 22 सितंबर को मनाएगा नो कार डे, प्रशासन ने नागरिकों से की यह अपील

LLB अंतिम वर्ष के छात्र भी दे सकेंगे AIBE की परीक्षा, Supreme Court ने BCI को दिए आदेश

फारूक अब्दुल्ला का PM मोदी पर पलटवार, कहा- वे उन लोगों के साथ खड़े जिन्हें पाक से मिलता है धन

बैठक के दौरान जब CM योगी ने पूछा, कहां हैं पूर्व सांसद लल्लू सिंह?

सभी देखें

नवीनतम

Gaganyaan Mission को लेकर क्‍या है चुनौती, प्रक्षेपण से पहले ISRO चीफ ने दिया यह बयान

One Nation One Election : पूर्व CEC कुरैशी ने बताईं एक देश एक चुनाव की खूबियां और खामियां

महाराष्ट्र में MVA के बीच सीटों का बंटवारा, जानिए किसको मिलीं कितनी सीटें

Project Cheetah : प्रोजेक्ट चीता अच्छा काम कर रहा, NTCA ने जारी की रिपोर्ट

आतिशी 21 सितंबर को लेंगी CM पद की शपथ, 5 मंत्री भी लेंगे शपथ

अगला लेख
More