सुप्रीम कोर्ट के वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने चुनाव आयोग में एक याचिका दाखिल कर मांग की है कि बैलेट पेपर और ईवीएम से चुनाव चिन्ह हटाया जाए। चुनाव आयोग को 21 पेज की याचिका में अश्विनी उपाध्याय ने मांग की है कि ईवीएम में चुनाव चिन्ह (पार्टी सेंबल) के स्थान पर उम्मीदवार का नाम, आयु, शैक्षिक योग्यता और उसकी फोटो उपयोग किया जाए।
उपाध्याय ने अपनी याचिका में दलील दी है कि वर्तमान समय में मतदाताओं के लिए सही उम्मीदवार का चयन करना बहुत ही मुश्किल है। यदि किसी पार्टी का मुखिया तो ईमानदार और मेहनती है लेकिन उसका उम्मीदवार अपराधी, भ्रष्टाचारी, बलात्कारी, जमाखोर मिलावटखोर या तस्कर है तो मतदाता असमंजस में पड़ जाता है।
चुनाव चिन्ह के स्थान पर उम्मीदवार की उम्र, शैक्षिक योग्यता और फोटो उपयोग करने से मतदाताओं को ईमानदार, परिश्रमी, सक्षम और जनता के लिए समर्पित उम्मीदवारों की पहचान करने में बहुत मदद मिलेगी और अपराधीकरण, जातिवाद, संप्रदायवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, वंशवाद और परिवारवाद पर भी बहुत हद तक नियंत्रण हो जाएगा।
अच्छे जनप्रतिनिधि का होगा चुनाव : बैलेट पेपर और ईवीएम पर चुनाव चिन्ह के स्थान पर उम्मीदवार का नाम, उम्र, शैक्षिक योग्यता और उसकी फोटो का उपयोग करने से टिकट वितरण में राजनीतिक दलों के प्रमुखों की मनमानी पर लगाम लगेगी और राजनीतिक पार्टियां उन लोगों को टिकट देने के लिए मजबूर हो जाएंगी जो ईमानदारी से जनसेवा करते हैं, इससे जनता को सही मायने में जनप्रतिनिधि मिलेंगे।
अपनी याचिका में उपाध्याय ने दलील दी है कि चुनाव चिन्ह रहित बैलेट पेपर और ईवीएम के उपयोग से राजनीतिक दल पैराशूट प्रत्याशियों को टिकट नहीं देंगे और वंशवाद और परिवारवाद पर बहुत हद तक नियंत्रण लगेगा, जो कि हमारे लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। बिना चुनाव चिन्ह वाले बैलेट पेपर और ईवीएम का उपयोग करने से न केवल राजनीति के अपराधीकरण पर ही नियंत्रण होगा बल्कि टिकट की खरीद-फरोख्त भी समाप्त होगी।
बिना चुनाव चिन्ह वाले बैलेट और ईवीएम के उपयोग से समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, बुद्धिजीवी और सामाजिक हित में कार्य करने वाले लोग राष्ट्र की बेहतरी के लिए आकर्षित होंगे। जब ईमानदार, योग्य और समर्पित लोग संसद और विधानसभा में जाएंगे तो जनकल्याण के लिए अधिक अच्छे कानून बनेंगे।
निर्दलीय उम्मीवारों का नुकसान : वर्तमान व्यवस्था में जनता को जनप्रतिनिधि नहीं बल्कि दल प्रतिनिधि मिलते हैं। ईवीएम पर उम्मीदवार की उम्र, शैक्षिक योग्यता और उसकी फोटो उपयोग करने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि सभी उम्मीदवारों को चुनाव में समान अवसर मिलेगा, जो वर्तमान चुनाव व्यवस्था में संभव नहीं है।
चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त दल पूरे 5 वर्ष अपने चुनाव चिन्ह का प्रचार-प्रसार करते हैं लेकिन स्वतंत्र उम्मीदवारों को 30 दिन पहले चुनाव चिन्ह आवंटित होता है, इसलिए वर्तमान व्यवस्था में संविधान की मूल भावना 'समानता और समान अवसर' का उल्लंघन होता है।