प्रयागराज से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर जुही कोठी गांव है। यह गांव विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है। यहां आदिवासी वर्ग के वोटर्स सबसे ज्यादा है।
लेकिन दिलचस्प बात यह है कि यहां विधायकों की हार-जीत का फैसला जूही कोठी की रहने वाली 95 साल की दुइजी अम्मा करती हैं।
दरअसल, जूही कोठी गांव में वोट देना किसी का व्यक्तिगत मामला नहीं है। यहां सिर्फ दुईजी अम्मा की पसंद चलती है। उनकी बात हर कोई मानता है।
इसके पीछे किसी तरह की मजबूरी या जोर-जबरदस्ती नहीं, बल्कि लोगों के प्रति दुइजी अम्मा की सेवा और समर्पण वजह है। 95 साल की इस बुजुर्ग महिला ने अपने क्षेत्र के आदिवासियों के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया है। वो हर किसी के दुख-सुख में साथ रही, मदद करती है, विवादों को निपटाती हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक दुइजी अम्मा के बारे में कहा जाता है कि वो न सिर्फ गांव वालों के झगड़े निपटाती हैं, बल्कि उनके वोट देने का रुझान भी तय करती हैं। अम्मा जिसे चुनती हैं गांव के वोटर उसी को वोट देते हैं।
स्थानीय नेता जब यहां प्रचार के लिए आते हैं तो अम्मा को पूरे वक्त अपने साथ गाड़ियों में लेकर चलते हैं। मोटे तौर पर दुइजी अम्मा ही बताती हैं कि किसे वोट देना है और किसे नहीं।
यहां पहुंचने वाले हर नेता का दुइजी अम्मा स्वागत करती हैं और उनसे प्यार से कहती हैं कि वे उनके लिए जो भी अच्छा होगा करेंगी। आमतौर पर वो उनसे कहती हैं, जरूर करब
मीडिया की रिपोर्ट बताती हैं कि दुइजी अम्मा कोल समुदाय की हैं, जो इलाके का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है। उत्तर प्रदेश सरकार उसे अनूसूचित जाति घोषित कर चुकी है।
वहीं समुदाय के लोग अपने लिए अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग कर रहे हैं। दुइजी अम्मा समुदाय के सरोकार समझती हैं और जो भी राजनीतिक पार्टी उनसे संपर्क करती है, सबसे यह मुद्दा उठाती हैं।
कौन हैं दुईजी अम्मा
एक टूटी-फूटी झोपड़ी में अम्मा के 20 लोगों का परिवार अलग-अलग रहता है, जिसमें से 4 लड़के और 5 लड़कियां हैं। 20 साल तक अम्मा ने गरीबों की लड़ाई लड़ी और 6 साल तक स्कूल भी चलाया, अभी दूईजी अम्मा बेड पर हैं। लेकिन चुनावी फैसलों को तय करने में उनकी भूमिका बहुत अहम है।