नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने डेनिश महिला से 2014 में हुए सामूहिक बलात्कार के मामले में 5 दोषियों को सुनाई गई मृत्युपर्यंत आजीवन कारावास की सजा को सोमवार को बरकरार रखा। उच्च न्यायालय ने दोषियों की अपील को खारिज कर दिया। दोषियों ने निचली अदालत के उन्हें दोषी ठहराने और सजा सुनाने के 2016 के फैसले को चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर और न्यायमूर्ति आईएस मेहता की पीठ ने कहा कि पीड़िता की गवाही और डीएनए रिपोर्ट से दोषियों के अपराध को साबित करने में मदद मिली। ये पुख्ता सबूत थे। पीठ ने हालांकि सही तरीके से जांच नहीं करने के लिए जांच अधिकारी की खिंचाई की।
इस बीच उच्च न्यायालय ने निचली अदालत में एक प्रत्यक्षदर्शी द्वारा दी गई गवाही को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसे नैसर्गिक गवाह नहीं माना जा सकता है। उस व्यक्ति ने दावा किया था कि उसने आरोपियों को पीड़िता के साथ अपराध करते देखा था।
पीठ ने कहा कि पीड़िता की गवाही और डीएनए रिपोर्ट से हुई पुष्टि के मद्देनजर यह अदालत आरोपियों को दोषी ठहराने के निचली अदालत के निष्कर्षों से संतुष्ट है। निचली अदालत ने 10 जून 2016 को पांचों दोषियों को मृत्युपर्यंत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
अदालत ने कहा था कि महिला का अपहरण करने और उसके बाद उससे सामूहिक बलात्कार करने के उनके अमानवीय और बर्बर कृत्यों ने राष्ट्र की प्रतिष्ठा पर दाग लगाया था। अदालत ने पांचों को आईपीसी की धारा 376 (डी) (सामूहिक बलात्कार), धारा 395 (डकैती), धारा 366 (अपहरण), धारा 342 (कैद करके रखने), धारा 506 (आपराधिक धमकी) और धारा 34 (समान आशय) के लिए दोषी ठहराया था।
पुलिस के अनुसार 9 लोगों ने 14 जनवरी 2014 की रात को डेनिश महिला पर्यटक के साथ लूटपाट की और चाकू का भय दिखाकर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। (भाषा)