नई दिल्ली। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग चलाने के प्रस्ताव का जो नोटिस शुक्रवार को राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू को दिया है उसमें इसके लिए 5 आधार दिए गए हैं।
विपक्षी दलों ने कहा कि पहला आरोप प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट से संबंधित है। इस मामले में संबंधित व्यक्तियों को गैरकानूनी लाभ दिया गया। इस मामले को प्रधान न्यायाधीश ने जिस तरह से देखा उसे लेकर सवाल है। यह रिकॉर्ड पर है कि सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की है। इस मामले में बिचौलियों के बीच रिकॉर्ड की गई बातचीत का ब्योरा भी है।
प्रस्ताव के अनुसार इस मामले में सीबीआई ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति नारायण शुक्ला के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की इजाजत मांगी और प्रधान न्यायाधीश के साथ साक्ष्य साझा किए। लेकिन उन्होंने जांच की इजाजत देने से इंकार कर दिया। इस मामले की गहन जांच होनी चाहिए।
दूसरा आरोप उस रिट याचिका को प्रधान न्यायाधीश द्वारा देखे जाने के प्रशासनिक और न्यायिक पहलू के संदर्भ में है, जो प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के मामले में जांच की मांग करते हुए दायर की गई थी। कांग्रेस और दूसरे दलों का तीसरा आरोप भी इसी मामले से जुड़ा है।
उन्होंने कहा कि यह परंपरा रही है कि जब प्रधान न्यायाधीश संविधान पीठ में होते हैं तो किसी मामले को शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश के पास भेजा जाता है। इस मामले में ऐसा नहीं करने दिया गया।
उन्होंने प्रधान न्यायाधीश पर चौथा आरोप गलत हलफनामा देकर जमीन हासिल करने का लगाया है। प्रस्ताव में पार्टियों ने कहा कि न्यायमूर्ति मिश्रा ने वकील रहते हुए गलत हलफनामा देकर जमीन ली और 2012 में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनने के बाद उन्होंने जमीन वापस की, जबकि उक्त जमीन का आवंटन वर्ष 1985 में ही रद्द कर दिया गया था।
इन दलों का 5वां आरोप है कि प्रधान न्यायाधीश ने उच्चतम न्यायालय में कुछ महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील मामलों को विभिन्न पीठ को आवंटित करने में अपने पद एवं अधिकारों का दुरुपयोग किया। (भाषा)