उच्चतम न्यायालय ने दुष्कर्म के एक मामले में अहम फैसला सुनाया। न्यायालय ने कहा कि भविष्य में शादी को लेकर आश्वस्त नहीं होने की स्थिति में यदि महिला लंबे समय तक अगर पुरुष के साथ शारीरिक संबंधों में रहती है तो ऐसे में वह उस पुरुष पर शादी का झूठा वादा करने की आड़ में धोखा देने का आरोप नहीं लगा सकती। न्यायालय ने कहा कि आपसी सहमति से बने शारीरिक संबंधों को माना जाएगा कि उनके बीच रिश्ता है।
खबरों के मुताबिक, उच्चतम न्यायालय में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और इंदिरा बनर्जी की बेंच ने सेल्स टैक्स की असिस्टेंट कमिश्नर द्वारा सीआरपीएफ के डिप्टी कमांडेंट पर दोखा देने और दुष्कर्म के आरोपों को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया।
महिला और पुरुष पिछले 6 साल से संबंधों में थे, इस दौरान कई मौकों पर वो एक साथ रहे, जो ये साबित करता है कि वो आपसी सहमति से इस रिश्ते में थे। लेकिन महिला कमिश्नर ने पुरुष पर आरोप लगाए कि वह उस व्यक्ति को साल 1998 से जानती है, जिसने 2008 में शादी का वादा करते हुए उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाएं।
हालांकि लड़की का दूसरी जाति से होने से चलते साल 2014 में लड़के ने शादी को लेकर परेशानी जाहिर की थी, लेकिन इसके बाद भी वो एक रिश्ते में रहे। 2016 में पुरुष ने महिला को अन्य महिला के साथ सगाई करने की जानकारी दी, जिसके बाद महिला कमिश्नर ने उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई।
उच्चतम न्यायालय ने एफआईआर का बीरीकी से अध्ययन करने के बाद कहा कि 2008 में किया गया शादी का वादा 2016 में पूरा नहीं किया जा सका। सिर्फ इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि शादी का वादा महज शारीरिक संबंध बनाने के लिए था। न्यायालय ने कहा, गलत मंशा से किए गए झूठे वादे और ऐसा वादा जो भरोसे के साथ दिया गया पर, पूरा न किया जा सका हो, में अंतर है।