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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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सैकड़ों दर्दभरी कहानियों से जूझ रहा सर्कस, 350 थे, 5 ही रह गए, नहीं मिली मदद तो 4-5 साल में गिर जाएगा सर्कस से पर्दा

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नवीन रांगियाल

सर्कस मनोरंजन का बड़ा साधन होने के साथ ही एक कला भी है। हजारों कलाकार सर्कस में अपनी कला दिखाते हैं और हेरतअंगेज कारनामों को अंजाम देते हैं। इतना ही नहीं, सर्कस से हजारों लोगों की रोजी-रोटी चलती है। एक जमाने में हिंदुस्‍तान में करीब 350 से ज्‍यादा सर्कस संचालित होते थे, लेकिन अब 5जी के दौर में यह सिमटकर महज 5 ही रह गए हैं। इसके पीछे दरअसल कई वजहें हैं।

वेबदुनिया ने हाल ही में इंदौर में चल रहे एशियाड सर्कस के बहाने पूरे देश में सर्कस की स्‍थिति और यहां काम करने वाले कलाकारों की कहानी को जानने-समझने की कोशिश की। हमने सर्कस के संचालकों से लेकर कलाकारों और दर्शकों तक से बात की। आइए जानते हैं, किस तरह से सर्कस विलुप्‍त होने की कगार पर है और कैसे इसमें काम करने वाले कलाकारों की जिंदगी सर्कस के महज एक तंबू में सिमटकर रह गई है। जानते हैं क्‍या है सर्कस के पर्दे के पीछे की दर्दभरी कहानी...

एशियाड सर्कस उत्‍तर प्रदेश के हमीरपुर के मोघा से है। यह करीब 30 साल से देश में संचालित हो रहा है। इस बड़े सर्कस को दो मैनेजर मिलकर संचालित करते हैं। शिव बहादूर सिंह चौहान और टीटू गर्ग।


जानवरों पर प्रतिबंध से टूटी सर्कस की कमर : दरअसल, सर्कस पर आए इस संकट के पीछे एक तो इंटरनेट क्रांति यानी 5जी और यूट्यूब का जमाना है तो वहीं, दूसरी तरफ सरकार द्वारा जानवरों पर लगाया गया प्रतिबंध है। मैनेजर शिव बहादूर सिंह चौहान ने बताया कि वन्‍य जीवों और पर्यावरण के लिए काम करने वाली मेनका गांधी के अभियान पर जब से सरकार ने जानवरों पर प्रतिबंध लगाया है, सर्कस की कमर ही टूट गई है। बगैर जानवरों के सर्कस में कोई रौनक नहीं बची। इसकी छटा लगातार कम होती जा रही है।

कलाकारों पर बड़ा बोझ : जानवरों के प्रतिबंध से जहां सर्कस के प्रति आर्कषण खत्‍म हो गया तो वहीं, दूसरी तरफ कलाकारों पर बोझ बढ़ गया। मैनेजर टीटू गर्ग ने बताया कि अब कलाकारों को ज्‍यादा आइटम तैयार करने पड़ते हैं, इसके पीछे काफी मशक्‍कत लगती है। एथलेटिक्‍स आयटम तैयार करना पड़ते हैं, जिनमे जोखिम ज्‍यादा होता है। जानवर थे तो सर्कस का करीब आधा शो उनसे ही कवर हो जाता था। लेकिन अब इंसानी करतब और हेरतअंगेज कारनामों पर ज्‍यादा निर्भर होना पड़ रहा है। लेकिन इस कारनामों के लिए अब कलाकार नहीं मिलते हैं।

4-5 साल में खत्‍म हो जाएंगे सर्कस : सर्कस से जुड़े इन तमाम लोगों से चर्चा में सामने आया कि सर्कस को सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती। न ही सर्कस के लिए किसी तरह की योजना है। उन्‍होंने बताया कि जानवर बेहद अहम है सर्कस के लिए, अगर सर्कस के शो जारी रखना है तो सरकार से अपील है कि जानवरों से प्रतिबंध हटाया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो 4 से 5 साल में सर्कस खत्‍म हो जाएंगे। जानवरों की कमी को पूरा करने के लिए मौत का कुआं जैसे खतरनाक खेल भी सर्कस का आकर्षण बढ़ाने के लिए शामिल किए गए हैं। जान की बाजी लगाकर ये कलाकार लोगों का मनोरंजन करते हैं।

नियमों में उलझ गया सर्कस : दरअसल, मैनेजर का कहना है कि भारत में उस तरह से जिमनास्‍टिक को बढावा नहीं मिलता जैसा रशिया में और चाइना में मिलता है। भारत में कई नियम हैं, जैसे यहां 14 साल के कम उम्र के बच्‍चे को जिमनास्‍टिक नहीं सिखा सकते हैं। जिमनास्‍टिक छोटे बच्‍चों को ही सिखाई जाती है, बड़े होने पर वे उतने सक्षम जिमनास्‍टिक नहीं बन पाते हैं। ऐसे में सर्कस में कलाकार कम होने लगे हैं। जबकि नए लोग अब सर्कस में आना नहीं चाहते हैं।

कलाकारों की व्‍यथा : एशियाड सर्कस में देशभर के कई राज्‍यों के कलाकार काम करते हैं, इनमें से कुछ लोग सर्कस में काम करते हुए खुश हैं तो कुछ मायूस नजर आते हैं। ये ज्यादातर कलाकार अनुभवी हैं और उम्र दराज हैं। नए कलाकारों की कमी सर्कस में दिखाई देती है। दरअसल, सर्कस एक विलुप्‍त होती हुई कला है। ऐसे में जो लोग कई सालों से इसमें काम कर रहे हैं वे अब कुछ दूसरा करने की स्‍थिति में नहीं है, ऐसे में उन्‍हें 10 हजार या 15 हजार जो भी मिलता है, उसी में गुजारा कर रहे हैं। वहीं कुछ कलाकार ऐसे हैं जो दिल से सर्कस को चाहते हैं, वे सर्कस से प्‍यार करते हैं, ऐसे में सर्कस ही उन्‍हें अपनी दुनिया नजर आती है। हालांकि उन्‍हें पता है कि धीरे- धीरे सर्कस के प्रति लोगों की दिलचस्‍पी कम होती जा रही है, सोशल मीडिया, 5जी और यूट्यूब के जमाने में कोई सर्कस देखने के लिए नहीं आना चाहता है। बावजूद इसके वे अपने घर से दूर सर्कस के साथ एक शहर से दूसरे शहर लोकेट होते रहते हैं और काम करते हैं। लोगों को हंसाने वाले जोकर्स के चेहरों पर उदासी और मायूसी साफ नजर आती है।

बच्‍चों को रखते हैं सर्कस से दूर : सर्कस के प्रति घटती लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां काम करने वाले कलाकार भले ही अपने परिवार और बच्‍चों से दूर रहकर ये काम करते हैं, लेकिन वे नहीं चाहते कि उनके बच्‍चे भी इस खेल का हिस्‍सा बने। वे चाहते हैं उनके बच्‍चे दूसरे क्षेत्र में करियर बनाए। एशियाड सर्कस में ऐसे कई परिजन हैं जो सर्कस में मिले, फिर शादी की। लेकिन अपने बच्‍चों को सर्कस से दूर रखते हैं।

क्‍या कहते हैं दर्शक : जहां तक दर्शकों की बात है तो एक तरफ जानवर जैसे शेर, चीता, भालू, कुत्‍ते, हाथी, तोते आदी की कमी की वजह से बच्‍चों और कुछ दर्शकों में सर्कस के प्रति दिलचस्‍पी कम हुई है तो वहीं, कुछ दर्शक बिल्‍कुल नहीं चाहते कि सर्कस में जानवरों का इस्‍तेमाल किया जाए। सर्कस देखने के लिए आने वाले दर्शकों की भीड़ में हालांकि कमी तो आई है, लेकिन उनके दिलों में अभी भी सर्कस के लिए प्यार है। कुछ परिजन ऐसे भी हैं जो चाहते हैं उनके बच्‍चे सर्कस जैसी कला और मनोरंजन को जाने। यहां तक कि कई बच्‍चे ऐसे हैं, जिन्‍होंने बताया कि मोबाइल में वीडियो देखने और गेम्‍स खेलने से ज्‍यादा अच्‍छा है कि सर्कस देखे और विलुप्‍त होती इस विधा को जिंदा रखे।

एशियाड सर्कस के बारे में
  • 60 कलाकार काम करते हैं एशियाड सर्कस में
  • 50 अन्‍य कर्मचारी
  • 350 सर्कस थे कोरोना के पहले
  • 05 ही सर्कस रह गए अब
  • 30 साल पुराना है एशियाड सर्कस
  • जानवरों की कमी खलती है सर्कस में
  • रौनक बढाने के लिए मौत का कुआं जैसे करतब शामिल कर रहे हैं सर्कस में
  • यूपी, बिहार, पंजाब, बंगाल और अफ्रीका के कलाकार करते हैं काम  
  • सर्कस की कैंटीन साथ में चलती है
  • मैनेजर से लेकर अन्‍य काम करने वाले कर्मचारी समेत कई लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी है सर्कस से

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