नई दिल्ली। वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) को मोदी सरकार का हिन्दुत्व का एजेंडा आगे बढ़ाने वाला कदम करार दिया। उन्होंने कहा कि यह प्रस्तावित कानून न्यायालय के कानूनी परीक्षण में नहीं टिक पाएगा।
राज्यसभा में चिदंबरम ने विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि सरकार इस विधेयक के जरिये संसद से एक असंवैधानिक काम पर समर्थन लेना चाहती है। उन्होंने कहा कि संसद में निर्वाचित होकर आये सदस्यों का यह प्राथमिक दायित्व है कि वे कानून बनाते समय यह देखें कि यह संविधान के अनुरूप है कि नहीं।
उन्होंने कहा कि इस विधेयक के मामले में लोकसभा के बाद यदि राज्यसभा इसे पारित कर देती है तो वह अपने दायित्व को संविधान के तीन अन्य अंगों में से एक (न्यायालय) के लिए त्याग रही है। उन्होंने कहा कि आप इस मुद्दे को न्यायाधीशों की गोद (विचारार्थ) में डाल रहे हैं।
पूर्व गृह मंत्री ने कहा कि यह मामला यही नहीं रूकेगा और यह न्यायाधीशों के पास जाएगा। उन्होंने कहा कि निर्वाचित नहीं होने वाले न्यायाधीश और निर्वाचित नहीं होने वाले वकील अंतत: इसके बारे में निर्धारण करेंगे। अत: यह संसद का अपमान होगा।
उन्होंने इस विधेयक को उच्च सदन में विचार एवं पारित करने के लिए लाये जाने को एक दुखद दिन करार देते हुए कहा कि सरकार इसे अपने हिन्दुत्व एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए लाई है। उन्होंने इस बात पर संतोष जताया कि सरकार इसके लिए सिर्फ कानून बना रही है, संविधान में संशोधन नहीं कर रही।
कांग्रेस नेता ने कहा कि कानून के समक्ष समानता का अधिकार, श्रीलंका के हिन्दुओं और भूटान के ईसाइयों को छोड़ा जाना, केवल तीन पड़ोसी देशों को रखना, केवल धार्मिक प्रताड़ना को ही आधार बनाना जैसे कई सवाल हैं जिस पर सरकार की ओर से कौन जवाब देगा?
उन्होंने जानना चाहा कि इस बारे में कानून मंत्रालय, एटार्नी जनरल या गृह मंत्रालय में से किसने राय दी है ? उन्होंने कहा कि विधेयक पर जिसने भी राय दी हो, उसे संसद में बुलाया जाना चाहिए।
पूर्व गृह मंत्री चिदंबरम ने कहा कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 में दिए गए समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।