नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को इस बात की पड़ताल करने का फैसला किया कि लंबे समय तक साथ रहने और सहमति से यौन संबंधों के बाद शादी के वायदे से मुकर ने की स्थिति में इस तरह के रिश्ते को वास्तविक शादी की तरह मानकर क्या ऐसे व्यक्ति की दीवानी जवाबदेही तय की जा सकती है।
यह उल्लेख करते हुए कि कई बार इस तरह का संबंध टूट जाता है और बलात्कार का अपराध नहीं बनता, शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह के मामले में महिला को असहाय नहीं छोड़ा जाना चाहिए, भले ही पुरुष के खिलाफ आपराधिक मामला न बनता हो। इसने कहा कि यह एक मुद्दा है जिसे देखे जाने की जरूरत है।
इस तरह का संवेदनशील मुद्दा न्यायमूर्ति ए के गोयल और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ के समक्ष आया जिसमें एक व्यक्ति ने अपने खिलाफ बलात्कार के मामले को खारिज करने से इनकार किए जाने के निचली अदालत और उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी।
शीर्ष अदालत ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल को नोटिस जारी किया और अदालत की मदद के लिए एक अतिरिक्त सालीसीटर जनरल नियुक्त करने का आग्रह किया।
इसने वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से अदालत मित्र के रूप में अदालत की सहायता करने का भी आग्रह किया और मामले की सुनवाई 12 सितंबर तक के लिए टाल दी।
पुरुष ने महिला से शादी का वायदा किया था जिसके साथ वह छह साल तक रहा और बाद में वायदे से मुकर गया।
शीर्ष अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि विचार के लिए एक सवाल उठा है कि लंबे समय तक साथ रहने के आधार पर, चाहे संबंध पारस्परिक सहमति से बने हों, और याचिकाकर्ता कथित अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं है, इस तरह के संबंध को वास्तविक शादी की तरह मानकर याचिकाकर्ता की दीवानी जवाबदेही तय की जा सकती है।
अदालत ने कहा कि इस व्याख्या पर विचार होना चाहिए जिससे कि लड़की किसी शोषण की शिकार न हो और भले ही आपराधिक मामला न बनता हो, तब भी उसे असहाय न छोड़ा जाए। (भाषा)