मुंबई। बृहन्मुंबई महानगरपालिका यानी बीएमसी पर किसका कब्जा होगा इसके लिए हमें थोड़ा-सा इंतजार करना होगा, क्योंकि किसी भी दल के पास अपेक्षित बहुमत नहीं है। परिषद का गठन तो जोड़तोड़ से ही होगा, लेकिन महाराष्ट्र नगरीय निकाय के चुनाव परिणामों ने भाजपा को एक बार फिर जश्न मनाने का मौका दे दिया है।
उल्लेखनीय है कि इस बार करीब दो दशक साथ रहे शिवसेना और भाजपा ने निकाय चुनाव भी अलग होकर लड़ा है। पहली बार विधानसभा चुनाव दोनों पार्टियों ने अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला किया था, उस समय इसका सर्वाधिक नुकसान शिवसेना को ही झेलना पड़ा था, क्योंकि विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं, जबकि शिवसेना दूसरी सबसे बड़ी पार्टी रही। शिवसेना की मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने की उम्मीदों पर कुठाराघात करते हुए भाजपा के देवेन्द्र फडणवीस राज्य के मुख्यमंत्री बने थे।
भाजपा का मुख्यमंत्री बनने के बाद भगवा दलों के बीच की खाई और बढ़ गई। इसी खटास का परिणाम था कि दोनों दलों ने निकाय चुनाव भी अलग होकर ही लड़ा। भाजपा से बढ़ती दूरियों के चलते शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे आए दिन भाजपा पर निशाना साधते रहते हैं। उन्होंने एक सभा में भाजपा को गुंडों की पार्टी तक बताया था। इसके साथ ही शिवसेना ने पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता और गुजरात में भाजपा सरकार के लिए सिरदर्द बने हार्दिक पटेल को भी गुजरात के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश कर भाजपा को एक झटका देने की कोशिश की थी।
पिछले इतिहास पर नजर डालें तो इस पूरी कवायद का ज्यादा फायदा भाजपा को ही हुआ है। बीएमसी की ही बात करें तो भाजपा को पिछले चुनाव में 32 सीटें मिली थीं, जबकि शिवसेना ने 75 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में शिवसेना को 9 सीटों का फायदा हुआ है। उसे 84 सीटें मिली हैं। दूसरी ओर भाजपा को पिछली बार की तुलना में 49 सीटें ज्यादा मिली हैं। गत चुनाव में 52 सीटें जीतने वाली कांग्रेस इस बार मात्र 31 सीटों पर ही सिमट गई।
हालांकि राजनीति के जानकार यह भी मानते हैं कि भाजपा को बड़प्पन दिखाते हुए शिवसेना को बिना शर्त समर्थन दे देना चाहिए ताकि एक बार फिर दोनों पार्टियों के संबंध सुधर सकें। वैसे भी महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार शिवसेना के सहयोग से ही चल रही है। दूसरी ओर उद्धव ठाकरे को भी चाहिए कि वे अपनी सहयोगी पार्टी के लिए संयत भाषा का उपयोग करें। अब, यह तो वक्त ही बताएगा कि बीएमसी में राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, लेकिन यह तय है कि यदि जोड़तोड़ कर भाजपा बीएमसी में काबिज होने की कोशिश करेगी तो महाराष्ट्र सरकार भी संकट में आ सकती है, क्योंकि इसके बाद तो निश्चित तौर पर शिवसेना भाजपा सरकार से अपना समर्थन वापस ले लेगी।