सैन्य प्रशिक्षण में अकसर कहा जाता है कि जो सैन्य अधिकारी अपने सैनिकों के साथ युद्ध की अग्रिम पंक्ति में होते हैं, खंदकों और युद्ध के मोर्चे पर सैनिकों का नेतृत्व (lead from the front) करते हैं वही उन्हें जीत दिलाते हैं। जनरल बिपिन रावत ऐसे ही एक सेनानायक थे जिन्होंने हमेशा भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपरा निभाते हुए आगे बढ़कर अपनी यूनिट, बटालियन और सेना का नेतृत्व किया।
जनरल बिपिन रावत को थलसेना प्रमुख बनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने सेना के 2 सीनियर अधिकारियों की वरिष्ठता के बावजूद रावत पर ही भरोसा जताया था। यदि पारंपरिक प्रक्रिया से सेना प्रमुख बनाया जाता तो वरिष्ठता के आधार पर ईस्टर्न कमांड के तत्कालीन प्रमुख जनरल प्रवीण बख्शी और दक्षिणी कमांड के तत्कालीन प्रमुख पी. मोहम्मदाली हारिज़ भारतीय सेनाध्यक्ष बनते।
इसका एक बड़ा कारण था कि जनरल रावत के पास युद्ध मोर्चे के अलावा उग्रवाद और लाइन ऑफ कंट्रोल की चुनौतियों से निपटने का भी 1 दशक का अनुभव था। पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद को काबू में करने और म्यांमार में विद्रोहियों के कैंपों को खत्म कराने में भी जनरल रावत की अहम भूमिका मानी जाती है। काउंटर इंसर्जेंसी और हाई अल्टिट्यूड वॉर फेयर में माहिर जनरल रावत के साथ प्रतिकूल परिस्थितियों में बेस्ट रिजल्ट देने का शानदार ट्रेक रिकॉर्ड था।
अडिग अफसर : 1986 में जब चीन के साथ तनाव बढ़ा था, तब रावत कर्नल के पद पर भारत-चीन सीमा बटालियन के कमांडिंग अफसर थे। 1987 में चीन के साथ अरुणाचल प्रदेश में सीमा पर गतिरोध के दौरान अपनी बटालियन लेकर डटे रहे और 1 इंच भी जमीन चीन को नहीं लेने दी।
सिर्फ भारत ही नहीं, जनरल रावत ने 2008 में रिपब्लिक ऑफ कांगो में आक्रामक कार्रवाई से UN Peace Keeping Mission को सफल बनाया था। जब बिपिन रावत ने डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में यूनाइटेड नेशंस के नॉर्थ किवु ब्रिगेड का चार्ज संभाला था तो उस वक्त यूनाइटेड नेशंस पीस कीपिंग फोर्सेस के लिए वहां हालात प्रतिकूल थे।
असाधारण निर्णय लेने वाले अफसर : संयुक्त राष्ट्र चार्टर के चैप्टर VII (विशेष हालात में बल के इस्तेमाल को अधिकृत) के कारण जहां शांति सेना भारी हथियारों के प्रयोग से बचती थी, बिपिन रावत ने बढ़ते संघर्ष और स्थानीय लोगों की जान बचाने के लिए टोंगा, कन्याबायोंगा, रुत्शुरु और बुनागाना जैसे फ्लैश पॉइंट में विद्रोहियों को कुचलने और शांति स्थापित करने के लिए भारी मशीनगनों और तोपों से लैस पैदल सेना के लड़ाकू हेलीकॉप्टर और बख्तरबंद वाहनों की तैनाती का आदेश दिया।
उन्होंने स्थानीय लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टर्स का इस्तेमाल किया और विद्रोही गुटों पर अटैक हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया जिसके बाद स्थानीय लोग भारतीय शांति सेना का स्वागत करने लगे थे। यही लोग पहले संयुक्त राष्ट्र की गाड़ियों पर पथराव किया करते थे।
गोलियां नहीं गिनेंगे : उनके बारे में कहा जाता है कि वे कहते थे कि पहली गोली हमारी नहीं होगी, पर उसके बाद हम गोलियों की गिनती भी नहीं करेंगे। सीमा पर आतंकियों, पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए उन्होंने अपने सैनिकों को स्पष्ट निर्देश दिए थे।
आक्रामक सैन्य नीति : 2015 में नॉर्थ-ईस्ट स्टेट्स में म्यांमार में छिपने वाले आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई की योजना बनाने वाले रणनीतिकार भी जनरल रावत ही थे। 2016 में उरी हमले के बाद पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक कराने के निर्णय में उन्होंने अहम भूमिका निभाई।
चीन को चुनौती देने वाला अफसर : उन्होंने 2017 में भूटान सीमा पर डोकलाम में 73 दिन तक भारतीय सेना को तैनात कर चीन को सीधे चुनौती दी। 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीन के हमले के बाद एनएसए और विदेश मंत्री के साथ मिलकर आक्रामक पीएलए से कूटनीतिक और सैन्य रूप से निपटने के लिए कोर ग्रुप का गठन किया।
जनरल रावत को पैंगोंग त्सो और कैलाश पर्वतमाला के दक्षिणी तट पर प्रत्येक पहाड़ी की भौगोलिक विशेषता और ट्रैक के बारे में पता था। उन्होंने आक्रामक रुख अपनाते हुए पीएलए को झील के उत्तरी तट पर यथास्थिति बहाल करने के लिए मजबूर किया।
सीधी बात : रावत अपने बेबाक बयानों के लिए भी जाने जाते थे। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि भारतीय सेना दो मोर्चे पर नहीं बल्कि ढाई मोर्चे पर युद्ध लड़ रही है। चीन को सबसे बड़ा खतरा मानने वाले जनरल रावत से चीनी सेना भी खौफ खाती थी। छात्रों से संवाद करना उन्हें बेहद पसंद था। छात्रों को वे हमेशा कहते थे कि यदि आपको कभी मुश्किल हालात का सामना नहीं करना पड़ा तो समझें कि आप गलत रास्ते पर हैं। आगे बढ़ने की कोशिश में मुश्किल हालात आएंगे जिनका सामना करते हुए आपको मंजिल तक पहुंचना होगा। इसीलिए जरूरी है कि आप अपनी ताकत की पहचान करें।
उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें 'परम विशिष्ट सेवा मेडल' से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा उन्हें उत्तम युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल, सेना मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल आदि सम्मानों से नवाजा जा चुका है।
सैन्य परिवार मिला था विरासत में : बिपिन रावत का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी में 16 मार्च 1958 को हुआ था। उनके पिता लक्ष्मण सिंह लेफ्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर हुए। उनकी मां उत्तरकाशी की रहने वाली थीं, जो पूर्व विधायक किशन सिंह परमार की बेटी थीं।
जनरल रावत सेंट एडवर्ड स्कूल शिमला और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी खड़कवासला के पूर्व छात्र थे। उन्होंने देहरादून में ही कैंबरीन हॉल स्कूल में और फिर शिमला के सेंट एडवर्ड स्कूल में पढ़ाई पूरी करने के बाद एनडीए से सेना में दाखिला लिया। 1978 में उन्हें सेना में कमीशन मिला और दिसंबर 1978 में देहरादून से 11 गोरखा राइफल्स की 5वीं बटालियन में नियुक्त किया गया था। उनका बेस्ट यहां भी कायम रहा और उन्हें 'सोर्ड ऑफ ऑनर' प्रदान किया गया था।
सैन्य बिरादरी में बीरा (BiRa) नाम से पुकारे जाने वाले बिपिन रावत साथी अफसरों और सैनिकों में बेहद लोकप्रिय थे और उनका व्हॉट्सअप नंबर सैनिकों के लिए उपलब्ध था। रावत 31 दिसंबर, 2019 को सेना प्रमुख पद से रिटायर हुए और उन्हें चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की ज़िम्मेदारी दी गई।
प्रधानमंत्री मोदी ने जनरल रावत को सैन्य सुधार, डिफेंस इकॉनोमी और तीनों सेना में समन्वय के लिए सीडीएस बनाया था। उनकी स्ट्रैटेजी और प्लानिंग बेहद सटीक और शानदार होती थी। तीनों सेना की एकीकृत थिएटर कमांड बनाने और न्यूक्लीयर कमांड जैसी अत्यंत महत्वपूर्ण योजनाओं पर काम कर रहे जनरल रावत की असामयिक मौत से देश को भारी क्षति हुई है।