नई दिल्ली। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को कहा कि रिजर्व बैंक (आरबीआई) वर्ष 2008-14 के दौरान बैंकों द्वारा मनमाने ढंग से ऋण दिए जाने पर रोक लगाने में असफल रहा, जिसके कारण बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में भारी वृद्धि हुई है।
जेटली ने यहां यूएस-इंडिया रणनीतिक भागीदारी मंच द्वारा आयोजित 'इंडिया लीडरशिप समिट' में कहा कि वैश्विक आर्थिक मंदी के बाद वर्ष 2008-14 के दौरान संप्रग सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था में कृत्रिम तेजी बनाए रखने के लिए बैंकों को मनमाने ढंग से ऋण देने के लिए कहा गया था। आरबीआई ने इस पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि सरकार और रिजर्व बैंक अलग-अलग दिशा में देख रहे थे। वे सच्चाई को छुपा रहे थे।
वित्त मंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया है जब केन्द्रीय बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य आरबीआई की स्वायत्तता का मुद्दा उठा चुके हैं। आचार्य ने शुक्रवार को कहा था कि केन्द्रीय बैंक की आजादी पर अंकुश लग सकता है।
जेटली ने कहा कि औसतन ऋण उठाव की दर 14 फीसदी बढ़ती है, जबकि वर्ष 2008-14 के दौरान एक वर्ष में इसमें 31 फीसदी की वृद्धि हुई थी। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा किए गए सुधार से राजस्व में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। उनका अनुमान है कि वर्ष 2014-19 के दौरान कर आधार दोगुना हो सकता है। ऐसा अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने से संभव हो रहा है क्योंकि नोटबंदी के साथ ही नया अप्रत्यक्ष कर ढांचा जीएसटी लागू किया गया है।
एनबीएफसी में तरलता की तंगी की समीक्षा : जेटली ने वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद (एफएसडीसी) की बैठक में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में तरलता की तंगी की समीक्षा की। जेटली की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल, डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य और वित्तीय क्षेत्र के नियामक एवं वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
बैठक में पटेल ने कहा कि रिजर्व बैंक एनबीएफसी को पर्याप्त पूंजी उपलब्धता की निगरानी कर रहा है ताकि वे सुचारु तरीके से काम कर सकें। उन्होंने कहा कि महंगाई नियंत्रण में है और केन्द्रीय बैंक नीतिगत कठोरता पर विचार नहीं कर रहा। (वार्ता)