नई दिल्ली। अब बहस यह होनी है कि 2017-18 का बजट कैसा होगा और इसमें क्या हो सकता है, जिसे इस साल 1 फरवरी को पेश किया जाएगा। मोदी के ज्ञानवान वित्तमंत्री अरुण जेटली ने फरीदाबाद में नेशनल एकेडमी ऑफ कस्टम्स, एक्साइज एंड नार्कोटिक्स के एक कार्यक्रम में इसका संकेत दिया था कि वे टैक्स दरों के बारे में क्या सोचते हैं?
जेटली ने अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाते हुए कहा, 'पहले टैक्स की दरें बहुत ज्यादा थीं, जिससे टैक्स चोरी को बढ़ावा मिला। हमें टैक्स रेट को कम करना चाहिए।' उन्होंने कहा कि इससे ज्यादा लोग टैक्स चुकाने के लिए आगे आएंगे। उनकी सोच अच्छी है, तारीफ के काबिल है लेकिन क्या वे इस पर अमल करने का साहस दिखा पाएंगे? देश में जो लोग टैक्स देते हैं, उन पर भी इसका बोझ इतना ज्यादा है कि ईमानदार करदाता भी टैक्स चुराने पर मजबूर होता है।
केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारें एक करदाता पर 48-52% के बीच टैक्स लगाती हैं। इसमे अलावा हर कर के साथ एक सेस (उपकर) भी शामिल है। इसका अर्थ यह है कि ईमानदार इंसान अगर 100 रुपए कमाता है, तो सरकारें उसमें से आधा हिस्सा तो बतौर टैक्स ही छीन लेती हैं। मुगलों और ब्रिटिश राज में भी टैक्स इतना ज्यादा नहीं था। वे सिर्फ 25% टैक्स या चौथ वसूलते थे लेकिन इसी वजह से ईमानदार लोग भी मौका मिलने पर टैक्स चोरी करते हैं। इस मामले में सेल्स टैक्स की मिसाल दी जा सकती है. भारत में ऐसा कौन सा इंसान बचा होगा, जिससे दुकानदार ने कच्ची पर्ची या पक्का बिल बनाने के बारे में नहीं पूछा? कितने लोग पक्के बिल की मांग करते हैं? फिर बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी को लेकर हैरानी क्यों होनी चाहिए? कर चोरी को लेकर समस्या क्या है और कहां है, जेटली इसे समझते हैं लेकिन इस पर कुछ कर पाना शायद उनके हाथ में नहीं है?
आधुनिक दुनिया में सबसे पहले यह आयकर ब्रिटेन में 19वीं सदी की शुरुआत में लगाया गया था ताकि नेपोलियन से युद्ध लड़ने के लिए फंड जुटाया जा सके। युद्ध खत्म होने के बाद 1816 में इसे वापस ले लिया गया लेकिन 35 साल बाद वहां फिर इनकम टैक्स फिर लगाया गया और उसके बाद से यह चला आ रहा है।
करों के बल पर नागरिक अधिकारों में कटौती : पहले तो ब्रिटेन में इनकम टैक्स का इस्तेमाल गरीबों को वोट देने के अधिकार से वंचित रखने के लिए किया गया था क्योंकि जो टैक्स नहीं देता था, उसे वोट डालने का अधिकार नहीं था। ब्रिटिश साम्राज्य खत्म होने के बाद सैन्य जरूरतों के लिए इनकम टैक्स का इस्तेमाल हुआ और 1960 के दशक के आखिर में इससे जुटाए जाने वाले पैसों से बेरोजगारों को भत्ता दिया जाने लगा।
भारत में 1860 में टैक्स लगाया गया और 1857 के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत की सत्ता ईस्ट इंडिया कंपनी से अपने हाथों में ले ली थी और उसने उसे सबक सिखाने के लिए यह टैक्स लगाया। 1873 में ब्रिटिश सरकार ने इसे वापस ले लिया लेकिन 1886 दोबारा में इसकी वसूली शुरू हुई। उसके बाद से भारत में इनकम टैक्स का वजूद बना हुआ है।
टैक्स में कटौती कहां करनी चाहिए, कौन सा टैक्स कम हो, इनकम टैक्स या इनडायरेक्ट टैक्स? इनडायरेक्ट टैक्स की जगह गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) लेने वाला है। इसे अगले साल सितंबर तक लागू करना होगा। अगर यह लागू हुआ तो इसकी दरें क्या होंगी? जेटली को यह सारी बातें सोचनी हैं। आयकर की दरें भी इतनी और ऐसी हैं कि लगता है सरकार आम आदमी को टैक्सों के बोझ तले दबाकर ही खत्म करना चाहती है। यह मोदी सरकार के अच्छे दिन हैं, सोचिए कि और कितने अच्छे दिन आने वाले हैं?