Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

‘छप-छप छपाक-छई... मनु, देखो....बारिश आई!’

हमें फॉलो करें ‘छप-छप छपाक-छई... मनु, देखो....बारिश आई!’
webdunia

शैली बक्षी खड़कोतकर

अचानक तेज आंधी शुरू हो गई है। लगता है, आज बादल जम कर बरसने के मूड में हैं। पिछले दिनों एक-दो बौछारें पड़ चुकी हैं, पर मानसून के आगाज का अभी इंतजार है। 
“मनु, बेटा..! ज़रा छत का दरवाजा चेक कर लो, बंद है न? और सारे कमरों की खिड़कियां भी। बारिश होने ही वाली है।” मम्मा जल्दी-जल्दी सूखते कपड़े समेट रही हैं। नीचे की खिड़कियां, रोशनदान अच्छे-से बंद कर लिए हैं। 
 
   हफ्ते भर पहले ही मनु का नया रेनकोट, जूते, बैग-कवर, छाता, सब आ चुका है। स्कूल यूनिफार्म और मोज़ों की अतिरिक्त जोड़ी तैयार कर के रख ली है, ताकि कपड़े कभी न सूखे, तो दिक्कत न हो। इस बार सामने शेड भी डलवा लिया है, जिससे पानी किसी तरह भी अंदर न आए। हर तरफ बंदोबस्त पक्का है। 
 
“मनु, कौन-सा दरवाज़ा खुला है, आवाज़ आ रही है” आखिर मम्मा ने खुद ही ऊपर जाकर तसल्ली कर लेना बेहतर समझा। 
 
“ मनु.....! वहां क्या कर रहे हो?” मनु मज़े से बालकनी में खड़ा है। उसके ठीक पीछे, बेडरूम का दरवाज़ा खुला है और ज़ोरदार हवा में यहां-वहां डोल रहा है। 
 
“मनु, अंदर चलो। भीग जाओगे। अगले हफ्ते से एफ.ए हैं और प्रेक्टिकल कॉपी का काम हुआ क्या?”
 
मनु अनमना-सा अंदर आ गया और सामने पड़े कागज़ पर आड़ी-तिरछी लकीरे खींच रहा है। 
 
हवा में ठंडक घुल गई है। आस-पास कहीं बारिश शुरू हो चुकी है। बालकनी का दरवाज़ा फिर ज़ोर से बजा। मम्मा फुर्ती-से लगाने के लिए दौड़ी। कुछ बूंदें अनायास चेहरे पर आ गई। पहली बारिश के अहसास से तन-मन सराबोर हो गया। बारिश ने लय पकड़ ली है। मम्मा के कदम ठिठक गए है। सारा दृश्य ऐसा है, जैसे धूल की परत चढ़ी सृष्टि को धो-पोंछ कर वाटर-कलर से रंगा जा रहा हो। क्या घर, क्या पेड़-पौधे, क्या पशु-पक्षी सब उजले-निखरे से हो जाएंगे। 
 
मनु और दोस्तों ने पार्क जो पौधे लगाए हैं, वो भी तरोताज़ा लग रहे हैं।  
 
वहीं झूले के पास एक गड्डे में पानी भर गया है और कुछ छोटे बच्चे उसमें छपाक-छपाक का मज़ा ले रहे हैं।  एकदम बिंदास और अलमस्त। शायद कॉलोनी में जो महिलाएं घरेलू कामों, बर्तन आदि के लिए आती हैं, उनके बच्चे होंगे। 
 
मम्मा यकायक अपनी बचपन की बारिश में जा खड़ी हुई है। यहां पहली बारिश में भीगना जिस तरह रिवाज़ है, स्लीपर पहन कर फचड़-फचड़ चलना और पूरी फ्रॉक खराब करना भी रस्मी तौर पर ज़रूरी है। यहां और भी बहुत कुछ है। पानी के डबके में तैरती कागज की नाव है, नर्म मिट्टी में सरिया गड़ावनी खेलते बच्चे हैं, टर्र-टर्र करते मेंढक हैं, ची-ची करते झींगुर हैं, पांच दिन की झड़ी, झूले, मेले, जामुन से नीली हुई जीभ, गर्मागर्म पकौड़े, ताज़ा अचार, गुलगुले......... 
 
“मम्मा, मुझे अंदर भेज कर आप यहां क्या कर रही हो?” मनु का लहज़ा शिकायती है। हवा के साथ हल्की फुहार मनु के ऊपर भी आ गई। मनु ने पुलक कर हाथ बाहर निकाला। हथेली पर बारिश के स्पर्श से वह रोमांचित हो उठा है। 
webdunia
अभी कुछ दिनों पहले ही तो मनु से प्रकृति के बदलते मिजाज़ और नष्ट होती प्राकृतिक संपदा पर लंबी बात हुई थी। हम चाहते हैं कि बच्चे प्रकृति का समझे उसके प्रति संवेदेनशील बनें. पर अब जब प्रकृति मुक्त हस्त से ये निधि लुटा रही है, तो क्यों हम प्रकृति और अपने बच्चों के बीच आ खड़े होते हैं? निसर्ग को जैसे हमने जाना, महसूस किया, संजोया, क्यों हम उन्हें इससे वंचित करते हैं और अपने अपने तर्क को सिद्ध करने के लिए स्वास्थ्य, सुरक्षा, पढ़ाई न जाने कितने बहाने गढ़ लिए हैं। मम्मा का मन ग्लानि से भर उठा है। 
“मनु, छत पर चलें ? बारिश में भीगते हैं”
 
“मम्मा.....??? आपको क्या हुआ?” मनु अविश्वास से मम्मा को ताक रहा है। 
 
“आकर पढ़ लेना..और हां, पुराने कागज़ ले लो, नाव बनाएंगे। ”
 
webdunia
“येह.....!.” मनु कूदता-फांदता सीढियां चढ़ चुका है।  
 
“..गिव मी सम सनशाईन, गिव मी सम रेन ...” मनु जीभर कर मस्ती कर रहा है। मम्मा को एक क्षण को लगा मानो, कुदरत अपनी सारी नेमते मनु पर बरसा रही हो। तन से ज्यादा मन भीग गया।  
 
“वाह मम्मा! कितने दिनों बाद बारिश में ऐसी मस्ती की, मज़ा आ गया।”
 
“मनु बालों में पानी न रह जाए, आओ, मैं सिर पोंछ दूं और ये गर्म दूध है, हल्दी वाला, पी लो. जुकाम नहीं होगा.”(सेहत की चिंता आसानी से जाएगी क्या?)“इसके बाद पढ़ने बैठ जाना, ओके?”
 
“पढ़ाई? नो वे ! आज तो रेनी डे है न, पढ़ाई की छुट्टी! आज प्याज़ के पकौड़े..”
 
‘क्या इस स्थिति का बिलकुल अंदाज़ा नहीं था?’ मम्मा अपने-आप से पूछ रही है। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कोसने भर से क्या होगा?