इस नायक के जज़्बे को अब भी सलाम नहीं करेंगे?

श्रवण गर्ग
rahul gandhi: एक लंबी चलने वाली लड़ाई के पहले दौर को अकेले आदमी ने आज जीतकर दिखा दिया है! क्या आप अब भी इस तिरपन साल के ‘नौजवान’ को कोई बधाई या शाबाशी नहीं देना चाहेंगे? उसकी हिम्मत की दाद नहीं देंगे? उसकी तरफ़ एक बार भी जी भरकर नहीं देखेंगे? उसकी आंखों में आंखें डालकर मुस्कुराएंगे नहीं? उससे उसके घुटने के बारे में कुछ भी नहीं पूछेंगे कि अब दर्द और कितना बचा है? वही घुटना जिसमें उसकी ऐतिहासिक यात्रा के वक्त चलते-चलते पीड़ा का ज्वालामुखी फूट पड़ता था! जिसके कदम कड़कती ठंड, गर्मी और बरसात में भी नहीं रुकते थे! जिसने सड़क को ही अपना घर और आकाश को छत बना लिया था!
 
क्या हो जाता अगर वह ‘नौजवान’ चलना बंद कर देता? क्या करते वे हज़ारों-लाखों लोग जो सड़कों के दोनों ओर उसे देखने और मिलने की प्रतीक्षा में आंखें फैलाए घंटों खड़े रहते थे, उसके साथ अपने कदम मिलाने और दौड़ लगाने को बेचैन रहते थे? वह बेसहारा औरत तब क्या करती जो घर से किसी तरह भागकर अपनी शिकायत इस ‘नौजवान’ को सुनाने पहुंची थी? अपने दुख-दर्द की कहानी वह और किसके साथ बांटती अगर यह नौजवान उसे बीच सड़क पर नहीं मिलता? उस औरत को किसी ने तो खबर की होगी कि एक ऐसा शख़्स उसके कहीं आसपास से ही गुज़रकर किसी लंबी यात्रा पर जाने वाला है जिसे वह अपनी पीड़ा सुना सकती है।
 
सारी हलचलें एक लंबे-गहरे सन्नाटे में बदल जातीं अगर यह नौजवान यात्रा की चुनौतियों से घबराकर बीच रास्ते से ही अपने उस घर को लौट जाता जो बाद में उससे छीन लिया गया! लोग एक-दूसरे से कुछ भी पूछना और अपनी गुम हो चुकी आज़ादी की तलाश करना बंद कर देते। पर ऐसा नहीं हुआ! सिर्फ़ एक आदमी की हिम्मत ने इतनी बड़ी हुकूमत की ताक़त को हिलाकर रख दिया। जिन सपनों के हक़ीक़त में बदलने को लेकर शंकाएं ज़ाहिर की जा रहीं थीं नौजवान की ज़िद ने उन्हें ज़मीन पर उतार कर लोगों के हाथों में थमा दिया।
 
‘नौजवान’ अपनी ज़िद पर क़ायम है कि उसे उसके सवालों के जवाब हर क़ीमत पर चाहिए! कहता हुआ फिर रहा है कि चाहे उसे निष्कासित कर दिया जाए, जेल में डाल दिया जाए वह सवाल पूछना बंद नहीं करेगा। दावा करता है कि उसकी लड़ाई गांधी की तरह ही सत्य के लिए है। उस गांधी के सत्य की तरह जिसका शरीर 30 जनवरी 1948 के दिन गोलियों से छलनी कर दिया गया था जब वह अपने राम की प्रार्थना के लिए जा रहा था। उस राम की प्रार्थना के लिए जिसके स्मरण के लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है! यह नौजवान लोकतंत्र की प्रार्थनाएं बांटता हुआ मुल्क के एक छोर से दूसरे छोर की यात्राएं कर रहा है। आज़ादी के इतिहास को बदलने वालों की ओर से हर ‘मुमकिन’ कोशिश की जा रही है कि इस नौजवान को कोई नया इतिहास नहीं बनाने दिया जाए।
 
नौजवान जानता है कि देश के नागरिक इस समय लोकतंत्र के ‘ईको प्वॉइंट्स’ पर ठिठके खड़े हैं। वे डरे हुए हैं कि दूर सामने स्थित सत्ता की निष्प्राण चट्टानों को अपने ‘मन की बात’ सुनाने के लिए उन्हें हिम्मत जुटाना चाहिए या नहीं? अधिकांश नागरिक मूक दर्शकों की तरह सब कुछ देख और सुन रहे हैं। वे न तो किसी साहसी व्यक्ति के द्वारा बोले जाने वाले अथवा चट्टानों से टकराकर लौटने वाले शब्द के प्रति ही अपनी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं। वे मानकर चल रहे हैं कि कोई भी बोला हुआ शब्द सत्ता की गूंगी और निष्ठुर चट्टानों तक कभी पहुंचेगा ही नहीं। पहुंच भी गया तो उनसे टकराने के बाद लहू-लुहान होकर ही वापस लौटेगा।
 
नौजवान नागरिकों को समझा रहा है कि लोकतंत्र के ‘ईको प्वाइंट्स’ के सामने खड़े होकर साहस के साथ बोला गया शब्द सत्ता की चट्टानों तक सीधा नहीं पहुंच जाता। बोला जाने वाला प्रत्येक शब्द चट्टानों तक यात्रा के दौरान किसी बड़ी अंधेरी खाई, ज्ञात-अज्ञात जल स्रोतों, झाड़ियों और वृक्षों, पशु-पक्षियों यानी कि ब्रह्मांड के स्पर्श से परिपूर्ण छोटे से छोटे अंश को भी गुंजायमान करता है। ऐसा ही फिर चट्टानों से टकराकर वापस लौटने वाले शब्द के साथ भी होता है। उस स्थिति में समूचे ब्रह्मांड का समर्थन साहस के साथ बोले गए प्रत्येक शब्द को प्राप्त हो जाता है।
 
‘द अल केमिस्ट’ नामक अपने चर्चित उपन्यास में ब्राज़ील के प्रसिद्ध उपन्यासकार पाउलो कोएल्हो का कथन उल्लेखित है कि अगर आप कोई अच्छा काम करना चाहते हैं तो दुनिया की सारी शक्तियां आपकी मदद में जुट जाती हैं। ( ‘…….and when you want something, all the universe conspires in helping you to achieve it’ ) …जब आदमी अपने सपनों को जुनून, सच्चाई, उद्देश्य और कड़ी मेहनत से अलग कर देता है तो उसका सपना उसे अलग कर देता है।’
 
यह जो ‘नौजवान’ अपने सपनों को पूरा करने के लिए निकला है उसे पाउलो कोएल्हो भी सच साबित कर रहे हैं। हुकूमत की ताक़त ने जब उसे विफल करने की कोशिश की दुनिया भर की ताक़तें उसे कामयाब बनाने में जुट गईं। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता गया, हमले तेज़ होते गए पर वह रुका नहीं। क्या हम सब इस नायक के जज़्बे को सलाम नहीं करेंगे? (ये लेखक के अपने विचार हैं। वेबदुनिया का इनसे सहमत होना जरूरी नहीं है।)

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