सोशल मीडिया और रूस

डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी
# माय हैशटैग
 
रूस अब एक अलग तरह की शक्ति बन गया है। यह शक्ति सैन्य शक्ति नहीं है, न ही कोई आर्थिक शक्ति है, यह शक्ति है रूस का साइबर पॉवर। रूस ने अपने अर्थतंत्र और युद्धतंत्र से अलग एक ऐसा सोशल मीडिया का तंत्र विकसित कर लिया है, जो उसकी तरफ से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लड़ाइयां लड़ता है। इस तंत्र में हैकर्स, सोशल मीडिया के इन्फ्लुएंसर्स, ट्रोल्स आदि हैं। रूस अब अपने इस नए हथियार का उपयोग दुनिया की राजनीति को प्रभावित करने में कर रहा है। यूरोप के अधिकांश देश रूस के इस नए आक्रमण से परिचित तो हैं, लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रूस की दखलअंदाजी की बातें बहुत हुई थीं। अब भी रूस खुद अनेक अंतरराष्ट्रीय दबावों और संकटों से जूझ रहा है। रूस की राजनीति, राष्ट्रीय सुरक्षा और वहां का मीडिया अनेक बातों को लेकर चर्चा में है, लेकिन फिर भी यूरोप के बहुत से देश रूस से अब भी डरे हुए हैं, क्योंकि रूस का उन पर प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है। नीदरलैंड्स में इसी मार्च में चुनाव हैं, फ्रांस में अप्रैल और सितंबर में जर्मनी और नॉर्वे में भी। इन देशों के लोग डरे हुए हैं कि अगर रूस अमेरिकी चुनाव में इतना हस्तक्षेप कर सकता है और चुनाव को प्रभावित कर सकता है, तो उनके देश में भी वह इसी तरह के काम कर सकता है।
 
रूस के सोशल मीडिया के ये महारथी अपने हथियारों का उपयोग करके रूस के विरोध में विचार और कार्य करने वाले नेताओं के खिलाफ माहौल बना रहे हैं। फ्रांस में रूस के खिलाफ अभियान चलाने वाले नेता एम्मानुएल मकरोन इनके निशाने पर हैं। हर रोज मकरोन के खिलाफ हजारों ट्वीट और पोस्ट लिखी जा रही हैं जिससे उनकी छवि को धक्का लग रहा है। इसी तरह जर्मनी में रूस की प्रखर विरोधी एंजेला मर्केल और इटली में वहां के विदेश मंत्रालय और सशस्त्र सेनाओं को निशाना बनाया जा रहा है। 
 
नॉर्वे में रूस के इन सोशल मीडिया विशेषज्ञों का हमला अंदर तक हो रहा है। सरकारी अधिकारी इसका निशाना बन रहे हैं और वहां की पुलिस के बारे में तरह-तरह के ट्रोल किए जा रहे हैं। नीदरलैंड्स की प्रमुख वेबसाइट्स पर रूस के हैकर्स बार-बार हमला कर रहे हैं। कोशिश यह की जा रही है कि नीदरलैंड्स के चुनाव में आम चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली के बजाय मतपत्रों से हो और उनकी गणना मानवीय हाथों से ही हो। अमेरिकी व्यवस्था पर ऐसे कई हमले रूस के हैकर्स कर चुके है और निरंतर करते ही रहते हैं। 
 
रूसी हैकर्स के निशाने पर ब्रिटेन की बहुतेरी सरकारी वेबसाइट्स हैं। तुर्की, यूक्रेन, जॉर्जिया, पोलैंड, चेक रिपब्लिक, बुल्गारिया, फिनलैंड, स्वीडन और अन्य दूसरे कई देशों में रूस के हैकर्स का आतंक चल रहा है। रूस के इन फाइबर हमलावरों में वहां की सरकार द्वारा प्रायोजित दो प्रमुख रूप हैं- जिनमें से एक नाम ‘फैंसी बीयर’ और दूसरे का नाम ‘को़जी बीयर’ बताया जाता है। इन दोनों के काम करने का तरीका एक जैसा है। इनके पास दुनिया के सबसे आधुनिकतम उपकरण हैं और कर्मचारियों का एक बड़ा नेटवर्क है। ये रात-दिन इसी अभियान में जुटे रहते हैं। 
 
रूसी हैकर्स के ये ग्रुप पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित हैं। उन्हें स्पष्ट निर्देश होते हैं कि उनके निशाने पर कौन-कौन से नेता अधिकारी और पत्रकार हैं। उनका निशाना सीधा उन्हीं लोगों पर होता है। अपने दुश्मन का चयन ये बहुत सावधानी से करते हैं। कोई भी व्यक्ति जो रूसी हितों के खिलाफ काम कर रहा हो या रूसी विचारधारा से असहमत हो। ये हैकर्स उसी के पीछे पड़ जाते हैं। अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी के खिलाफ भी यही लोग काम करते रहे हैं। 
 
ऐसा बताया जाता है कि फैंसी बीयर ग्रुप के भी 4 छोटे-छोटे से ग्रुप्स हैं। ये अलग-अलग अपना काम करते हैं और इनके काम के तरीके में तालमेल समझा जा सकता है। इनके काम में विरोधी की वेबसाइट हैक करना और उसकी तरफ से फर्जी ई-मेल भेजकर लोगों को गुमराह करना भी है। रूस के इस ग्रुप के निशाने पर अल जजीरा की वेबसाइट भी रही है। इन सोशल मीडिया के विशेषज्ञों का एक और लक्ष्य है, फेक न्यूज जनरेट करना और उसे प्रवाह में लाना। 
 
रूस की जासूसी संस्था केजीबी का इन ग्रुप को पूरा समर्थन है। ये ग्रुप इस तरह से फेक न्यूज जनरेट करते हैं और इस तरह से प्रचार में लाते हैं कि देखते ही देखते फेक न्यूज लोकप्रिय हो जाती है। एक सर्वे में 20 सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली फेक न्यूज में रूस द्वारा प्रचारित-प्रसारित खबरें सामने आई हैं। इनकी लोकप्रियता का आलम यह रहा कि वास्तविक खबरें इनके पीछे रह गईं।
 
यूरोप के बहुत से देशों में रूस के इस अभियान का अप्रत्यक्ष समर्थन किया जा रहा है। इन देशों के राष्ट्रवादी तत्व इसका विरोध करते हैं, लेकिन अलग-अलग पार्टियों में काम करने वाले वामपंथ समर्थक लोग इस विरोध से कतराते हैं। यूरोपीय देशों में इस्लाम के खिलाफ जो अभियान चलाए जा रहे हैं, उसका रूसी हैकर्स विरोध करते हैं और उन्हें अच्छा-खासा समर्थन भी देखने में आ रहा है। ये रूसी हैकर्स अति दक्षिणपंथी, वैश्वीकरण विरोधी और अलगाववादी तत्वों को बढ़ावा दे रहे हैं। 
 
रूस की सरकार इन लोगों को खुलेआम मदद करती है, यहां तक कि इन लोगों के लिए वार्षिक मिलन समारोह भी रखती है जिसमें रूस के कई सांसद भी हिस्सा लेते हैं। इसमें प्रभावी काम करने वाले हैकर्स को सम्मानित किया जाता है और आर्थिक मदद भी दी जाती है। 
 
एक और ग्रुप है, जो रूस की सरकार की मदद से संस्थाओं के बजाय व्यक्तियों को निशाना बनाते हैं। ये लोग इस तरह काम करते हैं कि रूस के विरोध की विचारधारा वाले लोगों का चरित्रहनन हो। इस चरित्रहनन में उन पर आर्थिक अपराध से लेकर व्यभिचार तक के झूठे आरोप लगाए जाते हैं। इस काम में लगे लोगों की तनख्वाह भारतीय मुद्रा में 40 हजार रुपए रोज तक होती है। 
 
फॉक्स न्यूज, सीएनएन, बीबीसी, हफिंगटन पोस्ट और अन्य प्रमुख समाचार माध्यमों की वेबसाइट पर अवांछनीय ई-मेल की भरमार करना भी इनका काम है। ‘प्रांक’ के जरिए ये लोग नेताओं को भड़काते भी रहते हैं। एक और तरीका है नेताओं के मजाक उड़ाने का। यह मजाक इस तरह उड़ाया जाता है कि उनकी छवि को धक्का लगे। रूस के सरकारी टेलीविजन में इस तरह का प्रचार नहीं किया जा सकता, लेकिन सोशल मीडिया पर इस तरह का प्रचार बहुत आराम से किया जा सकता है। 
 
अपने विरोधियों को पछाड़ने और दुनिया में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए रूस की सरकार उस हर नई तकनीक का इस्तेमाल कर रही है, जो उसके फायदे में है। रूस की सरकार यह काम अपने देश में विरोधियों के लिए भी कर रही है। रूस में बढ़ते भ्रष्टाचार, पिछड़ती शिक्षा व्यवस्था और कमजोर होती स्वास्थ्य सेवाओं को नजरअंदाज करते हुए रूस की छवि उजली बनाने की कोशिश की जा रही है।
 
रूस यह बात जानता है कि उसके यहां अमेरिका से पढ़ने के लिए विद्यार्थी नहीं आ रहे हैं, न ही रूस की बैंकों में स्विट्जरलैंड से पैसा आ रहा है और न ही जर्मनी के लोग रूस का सामान खरीद रहे हैं। पश्चिम को तबाह करके रूस अपनी ताकत बढ़ाना चाहता है और इसमें सोशल मीडिया की मदद ली जा रही है। यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के बाहर होने के बाद आर्थिक हालात में बदलाव हुआ है, जिसका फायदा रूस उठा रहा है। 
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