Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

काश तकनीक से रोके जाते सड़क हादसे

हमें फॉलो करें sidhi bus accident
webdunia

ऋतुपर्ण दवे

जहां फिर एक बस दुर्घटना ने समूचे विन्ध्य सहित पूरे देश को जबरदस्त झकझोर दिया। वहीं विन्ध्य अंचल को तीसरी बार बहुत बड़ा बस हादसा देखने को मजबूर कर दिया।

16 फरवरी की अल सुबह सवारियों से भरी तेज रफ्तार बस द्वारा नहर पर ही ट्रक को ओवरटेक करने की जल्दी में जरा सा संतुलन बिगड़ा और देखते ही देखते चन्द सेकेण्डों में पूरी बस बाणसागर नहर की 22 फिट गहराई में जा समाई। सीधी-सतना मार्ग पर पहले भी दो बहुत बड़े बस हादसे हो चुके हैं।

पहला हादसा मई 1986 में गोविन्दगढ़-सीधी छुहिया घाटी में हुआ जो डाक बस के नाम से आज भी जाना जाता है। इसमें बस अनियंत्रित होकर घाट से नीचे जा गिरी और 53 लोग जान से हाथ धो बैठे। तीसरा हादसा सितंबर 1986 में रामपुर बघेलान के पास हुआ, जिसमें स्टेशन जा रही यात्री बस सामने से आ रहे ट्रेलर के एकाएक मुड़ने से उसमें जा समाई और बस की छत के परखच्चे उड़ गए और बहुत दर्दनाक तरीके से सवार 45 लोगों के सर धड़ से अलग हो गए।

चौथा बड़ा हादसा 1988 में लिलजी बांध में बस गिरने से हुआ था जिसमें 91 लोगों की जान गई थी वहीं पांचवां हादसा 19 अक्टूबर 2006 को हुआ जो गोविंदगढ़ के रघुराज सागर तालाब में बस के घुस जाने से हुआ और 68 लोगों की जान चली गई।

दिसंबर 2019 में रीवा से आ रही बस गुढ़ बाइपास में एक खड़े ट्रक मे जा घुसी जिसमें 9 लोगों की जान चली गई। वहीं इसी साल 7 जनवरी को छुहिया घाटी में सीमेंट फैक्ट्री की बस के ऊपर गर्म क्लिंकर से लोड ट्रेलर पलटने से मौके पर 3 जिन्दगियां खत्म हो गईं। काश यह यहां बस यात्रियों को जल समाधि देने वाला आखिरी हादसा हो! दुस्साहस देखिए कि बस तय रूट पर नहीं थी। रूट पर 5 दिनों से था। उससे भी बड़ी सच्चाई कि छुहिया घाटी रूट पर हालात इतने बद से बदतर हैं कि महीने में 15 दिन जाम तय है। कारण पहाड़ी और घुमावदार रास्ता, बीच-बीच में खराब वाहन। सड़कों के विकास, सुधार और निर्माण पर भरपूर ध्यान देने के तमाम दावों के बीच इस सड़क की हकीकत ने बड़ी वि‍भत्सता के साथ सच को आईना दिखाते हुए सभी का ध्यान खींचा है।

यह भी सच है और तस्दीक विश्व बैंक की एक रिपोर्ट भी करती है कि दुनिया में हर वर्ष सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा मौतें भारत में ही  होती हैं। देश में प्रतिवर्ष 4.5 लाख सड़क दुर्घटनाओं में 1.5 लाख लोगों की मौत हो जाती है। बहुतेरे दिव्यांग हो जाते हैं। इसके अलावा देश के सकल घरेलू उत्पाद के 3.14 प्रतिशत हिस्से का नुकसान हो जाता है। एक सच और भी है।

भारत में दुनिया के महज एक फीसदी वाहन ही हैं, वहीं सड़कों पर वाहनों से होने वाली दुर्घटनाओं का आंकड़ा 11 प्रतिशत है। केन्द्रीय परिवहन मंत्री भी खुद मानते हैं कि इन दुर्घटनाओं से समाज और राष्ट्र पर जबरदस्त बोझ पड़ता है और देश को प्रति व्यक्ति मौत पर करीब 91.16 लाख रुपयों का नुकासान होता है।

विश्व सड़क सांख्यिकी- 2018 के अनुसार, विश्व के 199 देशों में सड़क दुर्घटना से होने वाली मौतों की संख्या में भारत पहले स्थान पर था। इनको यदि आंकड़ों के लिहाज से देखें तो वर्ष 2018 में पूरे देश में 4,67,044 सड़क दुर्घटनाएं हुईं जबकि इसी वर्ष की सड़क सुरक्षा पर वैश्विक स्थिति को देखें तो 23 सेकंड में एक व्यक्ति की सड़क दुर्घटना में मृत्यु होती है।

विडंबना देखिए गत वर्ष ही मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन कर कठोर प्रावधानों को लागू किया गया ताकि सड़क दुर्घटनाओं को कम किया जा सके। वाहनों की सुरक्षा के लिए भी कई नए इंजीनियरिंग मानक लागू किए, लेकिन देखिए बस न केवल धड़ल्ले से मनमानी रूट पर दौड़ रही हैं वहीं क्षमता से अधिक सवारी पर कोई रोक भी नहीं है!

काश सीधी बस दुर्घटना में सवारी क्षमता के अनुरूप होती तो भी मौतों का आंकड़ा कम होता। हां,  इतना तो समझ आता है कि भारत में कानून ज्यादा हैं उसका पालन कम। अब इसे किसकी ढि‍लाई कहेंगे, राज्य-केन्द्र या दोनों की?

आंकड़े बताते हैं कि 76 प्रतिशत दुर्घटनाएं तेज रफ्तार, ओवरटेक और गलत साइड पर गाड़ी चलाने से होती हैं। यह यातायात नियमों का उल्‍लंघन नहीं तो और क्या है? बाणसागर नहर हादसा भी इसी का नतीजा है। वाहन और सारथी नामक दो ऐप लाकर सरकार ने लाइसेंसिंग और रजिस्ट्रेशन पर शिकंजा कस भृष्टाचार कम करने की कोशिश तो की है। लेकिन सबको पता है कि बिना दलालों के पास गए देश में लाइसेंस बनवाना व रिनीव कराना कितना आसान है? इसी तरह सड़क पर दौड़ रहे सार्वजनिक वाहनों पर निगरानी के लिए कोई विश्वनीय व्यवस्था भी नहीं है।

इण्टेलीजेण्ट ट्रेफिक मैनेजमेण्ट सिस्टम यानी आईटीएमएस को ही चकमा देने जैसी कई सच्चाइयां भी सामने आई हैं। खुद हमारा परिवार भी सतना यातायात का पीड़ित है। 26 दिसंबर 2020 का ई-चालान रूपी फरमान पहुंचा जिसमें हमारी बाइक का नंबर का उपयोग कर धड़ल्ले से तीन सवारी बैठा घूम रहा है। उस फर्जी नंबर प्लेट वाले के बजाए ढ़ूढ़ने के फोटो वाला समन शुल्क ई-चालान भेज जुर्माना भरने का हुक्म हुआ। हैरानी होती है कि चालान कागज में किसी और कंपनी की बाइक दिख रही है और वास्तविक वाहन किसी और कंपनी का है। उसमें फर्जी वाहन में हाई सिक्यूरिटी नंबर प्लेट और एलॉय व्हील हैं।

कर्तव्यों की इतिश्री करने वाले पते पर वापसी डाक से ही हकीकत को रू-ब-रू कराया गया। लेकिन पूरे मामले पर अभी तक चुप्पी साधी हुई है। यकीनन यह सब गंभीर और चिन्तनीय है। अब इसे क्या कहें क्योंकि यहां तो आर्टीफीसियल इण्टेलीजेन्स को ही धोखा दिया गया जो बेहद चिन्तनीय है।

जाहिर है तंत्र और यंत्र दोनों की ही नाकामियाबी सामने है। लगता है कि कानून में सख्ती के बावजूद सिस्टम का लचर हो जाना ही बड़ा कारण है जिससे न तो सड़क दुर्घटनाएं ही कम रही हैं और न मौतों का आंकड़ा थम रहा है। इसके अलावा बीच शहर धड़ल्ले से फर्जीवाड़ा कर आर्टीफीसियल इण्टेलीजेंस को ही चुनौती देना बहुत बड़ा अपराध है। बाणसागर बस दुर्घटना भी तंत्र की लापरवाही और मिलीभगत का नतीजा है। वरना बस बदले रूट पर वह भी 32 यात्रियों की क्षमता से अधिक करीब 60 सवारियों को ठूसकर मानव अधिकारों का उल्‍लंघन करते हुए कैसे फर्राटे भरती? सख्त कानूनों के बावजूद सीख लेते हुए ऐसा दोबारा नहीं हो इसकी क्या गारण्टी?

खराब और गढ़्ढों से भरी घुमावदार सड़कें, ऊपर से रसूखदारों के दरवाजों बने मनमाने स्पीड ब्रेकर बनाम ब्रोकर, सड़कों पर पड़े पत्थर-बोल्डर से निजात मिलना बेमानी सा लगने लगा है। जबकि हकीकत यह है कि भारत में सड़कों पर ईधनयुक्त वाहनों का उपयोग करने वालों को तीन तरह के टैक्स भरपूर चुकाने पड़ते हैं। पहला तो रोड टैक्स, दूसरा रोड सेस जो प्रत्येक प्रति लीटर पेट्रोल-डीजल पर 10 रुपए से भी ज्यादा है साथ ही एक्साइज ड्यूटी और वैट भी।

तीसरा टैक्स टोल टैक्स के रूप में फर्राटेदार सड़कों के नाम पर रेडियो फ्रिक्वेंसी युक्त शानदार व्यवस्था फास्टटैग से 16 फरवरी से ही जरूरी हो गया है वरना भारी जुर्माना। यानी भारत में वाहन चलाने के लिए तेल की वास्तविक कीमत जो करीब 35-36 रुपए होती है पर लगभग ढ़ाई से पौने तीना गुना अधिक वसूला जाता है। बावजूद इसके सड़कें टैक्स के मुकाबले फीकी और बदतर ही नजर आती हैं। काश सीधी के छुहिया घाटी सड़क से वसूले जाने टैक्स को ही मरम्मत या सुधार पर लगा दिया जाता!

इसी तरह कयासों से ऊपर परिवहन तंत्र लाखों रुपए कीमत की साधारण व लग्जरी बसों में जीपीएस और सीसीटीवी कैमरों को जरूरी कर क्षेत्रवार या राज्यवार निगरानी तंत्र विकसित करता जो इजराइल की तरह कैमरे की नजर से वीडियो कंटेंट ऐनालिसिस के विकसित सिस्टम से लैस हो जिसमें वो तस्वीरें खुद-ब-खुद स्क्रीन पर डिस्प्ले होने लगें जिन्हें पहचानने की कमाण्ड उन्नत कंप्यूटरों में फीड हो।

इससे तेज रफ्तार और गलत तरीके से चलता, भिड़ता या भागता ऑब्जेक्ट यानी वाहन, सड़क पार करने में हुई हड़बड़ी या गड़बड़ी, यहां तक कि अगर कहीं आग लग जाए या दुर्घटना हो जाए तो सीधी तस्वीरें खुद कंट्रोल सेन्टर में अपने आप डिस्प्ले होने लग जाएं और फौरन पता चल जाए कहां क्या हो रहा है।

काश भारत में सड़क दुर्घटनाओं में मौतों के आंकड़ों को कम करने के लिए ऐसे तकनीक व सुरक्षा तंत्रों को भी विकसित किया जाता जो अब मुश्किल नहीं हैं ताकि कह सकें हमारी सड़कें व सड़कों पर चलने वाले महफूज रहेंगे।

(इस आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक की निजी राय है, वेबदुनिया से इसका संबंध नहीं है)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

खूबसूरती बढ़ाना चाहते हैं तो अपनाएं ये 7 सरल flower therapy tips