अपने असहाय वृद्धजनों को परिवार से बेदखल करने के दृश्‍य दुखद हैं

डॉ. सौरभ मालवीय
फोटो : सोशल मीडिया

जीवन के कई चक्र हैं, जैसे बाल्यकाल, यौवनकाल, प्रौढ़काल एवं वृद्धकाल। वृद्धावस्था में मनुष्य कमजोर हो जाता। उसका शारीरिक बल कम हो जाता है, सुनने एवं देखने की शक्ति क्षीण हो जाती है। इस अवस्था में मनुष्य का मस्तिष्क भी प्रभावित होता है। उनकी स्मरण शक्ति क्षीण होने लगती है। वह बातें भूलने लगता है। वह वस्तु रखकर भूल जाता है। अकसर उसी समय कही गई बात भी उसे स्मरण नहीं रहती। ऐसे समय में वृद्धजनों को अपने परिवार की बहुत आवश्यकता होती है।

उन्हें विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। उन्हें अपने परिवार के लोगों के प्रेम की आवश्यकता होती है। यदि ऐसे समय में उन्हें अपने परिवार के लोगों का साथ न मिले तो वे टूट जाते हैं। उनका मनोबल कम हो जाता है। दुर्भाग्यवश यदि उन्हें अपने परिवार के लोगों के द्वारा प्रताड़ित होना पड़े, तो उनका जीवन नारकीय बन कर रह जाता है।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ के रकाबगंज के रहने वाले 82 वर्षीय रामेश्वर प्रसाद हाथों में यूरिन का बैग लेकर इधर-उधर भटक रहे हैं। उनके दो युवा पुत्र और चार पुत्रियां हैं। किन्तु उनकी कोई भी संतान उनकी देखभाल नहीं करना चाहती है। उनकी दयनीय स्थिति देखकर वन स्टॉप सेंटर ने उन्हें सरोजनी नगर स्थित सार्वजनिक शिक्षोन्नयन संस्थान पहुंचाया है। देश में रामेश्वर प्रसाद जैसे हजारों वृद्ध हैं, जो परिवार के होते हुए भी असहाय हैं।

देश में वृद्धजनों की एक बड़ी संख्या है। राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार देश की कुल जनसंख्या में वृद्धजनों की भागीदारी वर्ष 2011 में लगभग 9 प्रतिशत थी। वर्ष 2036 तक यह संख्या बढ़कर 18 प्रतिशत होने का अनुमान है। देश की 8.4 प्रतिशत यानी 10.2 करोड़ जनसंख्या की आयु 60 वर्ष से अधिक है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2061 तक भारत में वृद्धजनों की संख्या 42.5 करोड़ हो जाएगी।
संयुक्त राष्ट्र की ही रिपोर्ट के अनुसार भारत में वृद्धजनों की संख्या वर्ष 2050 तक लगभग 20 प्रतिशत होने का अनुमान है। वर्तमान में यह दर 8 प्रतिशत है। वर्ष 2050 तक वृद्धजनों की संख्या में 326 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि इनमें 80 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या में 700 प्रतिशत वृद्धि होने का अनुमान है।

जिस प्रकार देश में वृद्धजनों के प्रति बढ़ते दुर्व्यवहार एवं आपराधिक घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है, उसके दृष्टिगत वृद्धजनों की स्थिति और भी चिंताजनक हो सकती है। यह संतोष की बात है कि देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति दिन-प्रतिदिन उत्तम होने के कारण लोगों की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई है।

वर्तमान समय में जीवन प्रत्याशा स्वतंत्रता के समय की तुलना में दोगुनी से अधिक हो गई है। वर्ष 1940 के दशक के अंत में जीवन प्रत्याशा लगभग 32 वर्ष थी, जो अब बढ़कर 70 वर्ष हो गई है। एक रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं की आयु अधिक लंबी होगी। वर्ष 2011 में यह 69.4 वर्ष थी, जो वर्ष 2061 में बढ़कर 79.7 वर्ष हो जाएगी। पुरुषों में वर्ष 2011 में औसत आयु 66 वर्ष थी, जो वर्ष 2061 में 76.1 वर्ष हो जाएगी। किन्तु दुख का विषय यह है कि वृद्धजनों की बढ़ती संख्या के साथ उनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार के मामलों में वृद्धि होने की आशंका है।

देश में वृद्धजनों पर अत्याचार के मामले निरंतर बढ़ रहे हैं, सभ्य समाज के मस्तक पर कलंक हैं। वृद्ध हत्या, हत्या का प्रयास, गंभीर मारपीट, अपहरण, दुष्कर्म, लूट एवं जबरन वसूली जैसे गंभीर अपराधों का शिकार हो रहे हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की वर्ष 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में वृद्धजनों पर अत्याचार के मामलों में निरंतर वृद्धि हो रही है। वृद्धजनों के प्रति घटित अपराधों में महाराष्ट्र प्रथम स्थान पर है। इस मामले में मध्य प्रदेश द्वितीय एवं तेलंगाना तृतीय स्थान पर है।

दुख एवं लज्जा की बात है कि देश में कोरोना काल में लगाए गए लॉकडाउन में वृद्धजनों के साथ दुर्व्यवहार के मामले में भारी वृद्धि हुई। एजवेल फाउंडेशन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 82 प्रतिशत वृद्धों का कहना था कि कोरोना के कारण उनका जीवन प्रभावित हुआ।

इनमें से 73 प्रतिशत वृद्धजनों को दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा, जबकि 65 प्रतिशत वृद्धजनों को अपने जीवन में उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है। 58 प्रतिशत वृद्धजनों का कहना था कि वे अपने परिवारों एवं समाज में दुर्व्यवहार का शिकार हो रहे हैं। लगभग 35.1 प्रतिशत वृद्धजनों का कहना था कि वृद्धावस्था में लोग घरेलू हिंसा का सामना करते हैं। उन्हें मौखिक एवं शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है।

देश में वृद्धजनों को स्वास्थय की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1995 में ग्रामीण क्षेत्रों वृद्धजनों की मृत्यु के तीन सबसे बड़े कारण श्वास संबंधी रोग, ह्रदयघात एवं लकवा रहे हैं। इनमें श्वास संबंधी रोगों के कारण 25.8 प्रतिशत लोगों की मृत्यु हुई, जबकि ह्रदयघात से 3.2 प्रतिशत तथा लकवा के कारण 8.5 प्रतिशत मृत्यु हुई।

परिवार के लोगों द्वारा दुर्व्यवहार किए जाने के कारण वृद्धजन मानसिक तनाव की चपेट में आ जाते हैं। देशभर में 10 प्रतिशत से अधिक वृद्ध अवसाद ग्रस्त हैं। स्थिति यह है कि लगभग 50 प्रतिशत वृद्धजनों को मनोचिकित्सीय या मनोवैज्ञानिक की आवश्यकता अनुभव होती है।

अब से लगभग दो दशक पहले की बात करें, तो तब भी वृद्धजनों की स्थिति संतोषजनक नहीं थी। 52वें नेशनल सैम्पल सर्वे-1995- 96 की एक रिपोर्ट के अनुसार वृद्धजनों में दीर्घकालिक रोग पाए गए। ग्रामीण क्षेत्रों 25 प्रतिशत वृद्धजनों दीर्घकालिक रोगों ने पीड़ित थे, जबकि शहरों क्षेत्रों में यह दर 55 प्रतिशत थी। वृद्धजन जोड़ों की समस्या से सबसे अधिक पीड़ित थे। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 38 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 43 प्रतिशत वृद्धजनों को जोड़ों से संबंधित कोई न कोई समस्या थी।

ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को जोड़ों की समस्या अधिक थी। शहरी क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं में जोड़ों की समस्या, उच्च व कम रक्तचाप तथा कैंसर आदि रोग अधिक पाए गए। इसके पश्चात खांसी से वृद्धजन पीड़ित पाए गए। ग्रामीण क्षेत्रों में 40 प्रतिशत एवं शहरी क्षेत्रों में 35 प्रतिशत वृद्धजन किसी न किसी प्रकार की शारीरिक अक्षमता से ग्रस्त पाए गए।

देश के अधिकतर वृद्धजनों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। उन्हें अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के अपने परिवार के लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है। ‘हेल्पएज इंडिया’ नामक स्वयंसेवी संस्था द्वारा किए गये एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 47 प्रतिशत वृद्धजन आय के लिए अपने परिवार के लोगों पर निर्भर हैं, जबकि और 34 प्रतिशत पेंशन एवं सरकारी नकद हस्तांतरण पर निर्भर हैं। सर्वेक्षण में सम्मिलित 40 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि वह जब तक संभव हो सकेगा वह कार्य करने के इच्छुक हैं, ताकि उन्हें पैसों के लिए किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े।

वास्तव में वृद्धावस्था में लोगों को अपनी निजी आवश्यकताओं के लिए अपने बच्चों से पैसे मांगने पड़ते हैं। बहुत से ऐसे लोग भी होते हैं, जो अपने वृद्ध माता-पिता को पैसे नहीं देते। ऐसी स्थिति में वृद्धजन पैसों से वंचित हो जाते हैं। ऐसे वृद्ध नागरिकों के लिए राज्य सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश पेंशन योजना प्रारम्भ की गई है। इस योजना के अंतर्गत राज्य के वृद्ध नागरिकों को 500 रुपये प्रति माह प्रदान किए जाते हैं। यह धनराशि सीधे लाभार्थियों के बैंक खाते में जमा की जाती है।

इस योजना का उद्देश्य राज्य के वृद्ध नागरिकों को पेंशन का लाभ प्रदान करवाना है, जिससे वृद्धावस्था में उन्हें किसी पर निर्भर नहीं होना पड़े। देश के अन्य राज्यों में भी इसी प्रकार की वृद्ध पेंशन योजनाएं चल रही हैं।
केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के माध्यम से वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के अंतर्गत देश में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार के 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के वृद्धजनों को सरकार द्वारा पेंशन के रूप में आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। जिन वृद्धजनों की आयु 60 से 79 वर्ष के मध्य है उन्हें सरकार द्वारा प्रतिमाह 500 रुपये की धनराशि प्रदान की जाती है तथा जिनकी आयु 80 वर्ष से अधिक है उन्हें प्रतिमाह 800 रुपये प्रदान किए जाते हैं।

सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा बुजुर्ग व्यक्तियों के लिए एकीकृत कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत बृद्ध आश्रम, शिशु सदन केंद्रों, वृद्धजनों और विधवाओं के लिए संचालित चिकित्सा इकाइयों आदि चलाने एवं उनके रखरखाव आदि के लिए अनुदान प्रदान किया जाता है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य वृद्धजनों की जीवन शैली में सुधार करना, उन्हें मूलभूत सुविधाएं जैसे आश्रय, भोजन, चिकित्सा देखभाल और मनोरंजन आदि के अवसर प्रदान करना है।

इसी प्रकार स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने वृद्धजनों के देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसका उद्देश्य जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों एवं प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों के माध्यम से वृद्धजनों को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करना है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत उपलब्ध कराई जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं या तो नि:शुल्क या अत्यधिक अनुदान वाली हैं। इसी प्रकार सरकार वृद्धजनों के कल्याण के लिए कई योजनाएं चला रही है, जिनका वृद्धजनों को लाभ भी प्राप्त हो रहा है।

इसमें दो मत नहीं कि हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति एक गौरवशाली संस्कृति रही है,  हमारी संस्कृति में परिवार के लोगों विशेषकर वृद्धजनों को बहुत आदर एवं सम्मान किया जाता है। हमारे देश में ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है जब लोगों ने अपने परिवार के लिए अपनी समस्त अभिलाषाएं बलिदान कर दीं। परन्तु आज क्या हो रहा है? लोग धन के पीछे भाग रहे हैं। जिन माता-पिता ने अपने बच्चों का पालन-पोषण किया, वही अब उन्हें बोझ समझने लगे हैं। वे अपने वृद्ध माता-पिता को वृद्ध आश्रम में डाल रहे हैं।

अस्वस्थ होने पर वृद्धजनों का उपचार तक नहीं करवाया जाता। उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। समय पर समुचित उपचार न होने के कारण वे गंभीर रोगों की चपेट में आ जाते हैं। हमारे वेद-पुराणों में माता-पिता को ईश्वर तुल्य माना गया है। आज इसी ईश्वर तुल्य माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है। लोग भूल जाते हैं कि उन्हें भी वृद्ध होना है।

आज जो व्यवहार वे अपने माता-पिता के साथ कर रहे हैं, वही व्यवहार उनके बच्चे उनके साथ भी कर सकते हैं, क्योंकि वे अपने बच्चे को जैसे संस्कार देंगे, वे उसी के अनुसार व्यवहार करेंगे। इसलिए सबको चाहिए कि वे अपने माता-पिता एवं सभी वृद्धजनों का मान-सम्मान करें तथा अपने बच्चों को भी इसकी शिक्षा दें। इस प्रकार हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर पाएंगे। (लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि. भोपाल में सहायक प्राध्यापक है)
Edited  By Navin Rangiyal/ PR

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