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राहुल गांधी की आक्रामकता से क्यों डरें, कैसे लड़ें?

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राजीव रंजन तिवारी

आमतौर पर कहा जाता है, 'जैसी करनी, वैसी भरनी।' कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का आक्रामक तेवर केन्द्र सत्ताधारी भाजपा को बेचैन किए हुए है। दरअसल, देश में नोटबंदी से परेशान लोग इस बात से मायूस थे कि कमजोर विपक्ष के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मनमाने ढंग से काम कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी पर विपक्ष का कोई अंकुश नहीं है। पूर्ण बहुमत वाली सरकार होने के कारण शायद प्रधानमंत्री यह भूल गए कि संविधान में विपक्ष की भूमिका का वर्णन भी बेहद संजीदा तरीके से किया गया है। 
खैर, नए साल की छुट्टी से लौटने के बाद 11 जनवरी को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली में पार्टी के एक कार्यक्रम में यह बता दिया कि विपक्ष कमजोर नहीं है। विपक्ष में इतना दम है कि वह सरकार की नाक में नकेल डाल सकता है। इतना ही नहीं केन्द्र सरकार की कथित जनविरोधी शैली से घबराए और डरे कांग्रेसियों में उत्साह भरते हुए यह नारा भी दे दिया कि ‘डरो मत।’ राहुल गांधी की इस आक्रामकता का पैमाना चाहे जो हो, पर इतना जरूर है कि पूरे देश में नरेन्द्र मोदी से खार खाए लोगों के चेहरे पर रौनक तो आ ही गई है। 
 
अक्सर राहुल का मजाक उड़ाने वाले, राहुल की बातों की मिमिक्री करने वाले भाजपा के नेता खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी सकते में हैं कि आखिर अचानक राहुल के तेवर में इतनी गर्मी कैसे आई? दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि अब राहुल गांधी ने भाजपा नेताओं से कई गुना ज्यादा तेवर में जवाब देना शुरू किया है तो परेशानी बढ़नी तय है। अब फिर से भाजपा यह रणनीति बनाने में जुट गई है कि राहुल की आक्रामकता से क्यों डरें और कैसे लड़ें?
 
गौरतलब है कि राहुल गांधी ने कांग्रेसियों के बीच 11 जनवरी को कहा था, मुझे बताया गया कि कांग्रेस पार्टी सौ साल पुरानी है। एक दिन मैं फोटो देख रहा था और शिवजी की तस्वीर में मुझे कांग्रेस का चिह्न दिखा। मैंने सोचा कि यह अजीब बात है कि शिवजी की तस्वीर में कांग्रेस का चिह्न। मैंने सोचा कि भई अब दूसरी तस्वीरें देखता हूं। मैंने गुरुनानकजी की तस्वीर देखी उसमें भी कांग्रेस का चिह्न। बुद्ध की तस्वीर देखी तो उसमें भी कांग्रेस का चिह्न था। महावीरजी की तस्वीर देखी तो उसमें भी कांग्रेस का चिह्न। मुझे हज़रत अली की तस्वीर में भी कांग्रेस का चिह्न दिखा। यहूदियों में भी ऐसा ही दिखा। 
 
आख़िर ये हो क्या रहा है? मैं कर्णसिंह के पास गया। उनसे पूछा कि ये हो क्या रहा है और उन्होंने एक सेकंड में कहा कि डरो मत। अभी का जो समय है उससे डरो मत। यह सुनाने का मकसद शायद यही था कि कांग्रेस हर जगह है। राहुल ने मोदी सरकार की नोटबंदी पर तीखा हमला बोला। कहा कि ऐसा इतिहास में पहली बार हो रहा है जब भारत के प्रधानमंत्री का विदेशों में मज़ाक उड़ाया जा रहा है। राहुल गांधी की यह शैली अब भाजपा को डरा रही है। भाजपा के लोगों को सोचना पड़ रहा है कि आखिर राहुल में इतनी ऊर्जा अचानक आई कहां से? 
 
सबके बावजूद '27 साल यूपी बेहाल' का नारा बुलंद कर उप्र चुनावी समर में बड़े जोशखरोश से उतरी कांग्रेस के लिए सत्ता का वनवास खत्म करने की चुनौती है। कांग्रेस की कम लोकप्रियता के बावजूद देश खासकर यूपी में अभी भी काफी संख्या में परंपरागत मतदाता कांग्रेस से जुड़े हैं। कांग्रेस के लोग यह मानकर चल रहे हैं कि सपा, कांग्रेस, रालोद और ससपा (सर्व समभाव पार्टी) का गठबंधन हो जाता है तो यूपी की सत्ता पाना आसान हो जाएगा।
 
आपको बता दें कि भाजपा यूपी चुनाव को लेकर बेहद चिंतित है। उसे लगता है कि यदि यूपी चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा तो 2019 का लोकसभा चुनाव उसके लिए आसान नहीं होगा। इस चुनाव में लोकसभा चुनाव जैसा करिश्मा भाजपा शायद ही दिखा पाए। लोकसभा चुनाव 2014 में कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश में लोगों ने मोदी को वोट दिया था और अब मोदी के कामकाज को लेकर वोटर को निर्णय लेना है। यूपी में बीजेपी के नेता लोकसभा की जीत की खुमारी से ऊबर नहीं पाए हैं। उन्हें लगता है यूपी में हम 2014 दोहराएंगे। लोकसभा चुनाव में भाजपा 337 विधानसभा सीटों पर प्रथम थी, जिसे वह अपनी ताकत समझ रही है। 
 
इसीलिए मोदी को ही मुख्य चेहरा बनाकर यह चुनाव लड़ा जा रहा है। जानकार मानते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी को 80 में से 71 सीटें मिली थीं। वह सक्सेस रेट करीब 90 फीसदी था, जबकि विधानसभा चुनाव में इन्होंने 403 सीटों में से 265 प्लस का नारा दिया है यानी इन्होंने खुद ही 65 फीसदी सीटें ही जीतने का लक्ष्य रखा हुआ है। इसलिए यह तय मानिए कि विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव जैसा परिणाम भाजपा के पक्ष में नहीं होगा। 2014 के आम चुनाव में यूपी में बीजेपी को 42.63 फीसदी वोट हासिल हुए थे, जबकि 2012 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 15.16 फीसदी वोट से संतोष करना पड़ा था। लोकसभा चुनाव के आंकड़ों के आधार पर अगर भाजपा कुछ सोच रही है तो यह भ्रम है। दक्षिण भारत में जरूर ऐसा होता है क्योंकि वहां के नेताओं का अपना एक आभामंडल है, लेकिन उत्तर भारत में ऐसा नहीं है। 
 
यूपी में 11 फरवरी से 8 मार्च के बीच सात चरणों में मतदान होगा। चुनाव के नतीजे 11 मार्च को आएंगे। बीजेपी का मानना है कि यूपी के चुनाव से 2019 के लोकसभा चुनाव का रुझान मिल जाएगा। पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पहले माना था कि प्रदेश में मुख्य मुकाबला बीजेपी और सपा के बीच होगा, लेकिन अब स्थितियां बदलती दिख रही हैं। बताते हैं कि पार्टी को दूसरे दलों से आए नेताओं से उम्मीद है। बसपा के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य अब बीजेपी में हैं। अजित सिंह की पार्टी रालोद के विधान दल के नेता दलबीर सिंह भी बीजेपी में आ चुके हैं। यूपी कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी भी बीजेपी में ही हैं। वहीं कांग्रेस के छह विधायक, सपा के तीन और अब तक बसपा के 13 विधायक बीजेपी में आ चुके हैं। 
 
भाजपा पिछले दो वर्षों से यूपी की सामाजिक-राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का मूल्यांकन कर रही है। पार्टी अपने अध्ययन से जिन नतीजों पर पहुंची है, उनमें मुख्य रूप से मतदाता तमाम दिक्कतों के बाद मान रहा है कि नोटबंदी से उसे फायदा होगा, जबकि 90 फीसदी से ज्यादा लोग नोटबंदी से हुई परेशानी से नाराज हैं। पार्टी का मानना है कि यदि किसी तरह किसानों को लुभा लिया जाए तो पार्टी की नैया पार लग सकती है। क्योंकि यूपी की 75 प्रतिशत से ज्यादा लोगों की आमदनी 5 हजार प्रतिमाह से कम है। बीजेपी यह भी मानकर चल रही है कि मुस्लिम वोटों का बंटवारा भी उसे लाभ दिलाएगा। भाजपा का एक खेमा सपा की अंदरुनी लड़ाई को भी अपने पक्ष में देख रहा है।
 
बहरहाल, भाजपा चाहे जो कहे, लेकिन यूपी का माहौल सपा और बसपा के बीच ही बनता दिख रहा है। इस स्थिति में कांग्रेस, रालोद, और ससपा (सर्व समभाव पार्टी) के गठबंधन की उम्मीद जताई जा रही है। यदि इन दलों का आपस में तालमेल हो जाता है तो बेशक मुख्य चेहरे के रूप में अखिलेश यादव मैदान में होंगे। वैसे, पहले ही कांग्रेस की मुख्यमंत्री की उम्मीदवार शीला दीक्षित कह चुकी हैं कि वह अखिलेश यादव के लिए मुख्यमंत्री की अपनी दावेदारी छोड़ सकती हैं। 
 
फलस्वरूप यह उम्मीद जताई जा रही है कि राहुल गांधी की आक्रामकता और अखिलेश यादव का चेहरा उत्तर प्रदेश में सब पर भारी पड़ेगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पंकज शर्मा कहते हैं कि राहुल गांधी की आक्रामकता रंग दिखाएगी। हालांकि यह चुनावी आकलन है, जो कभी भी बन-बिगड़ सकता है। बहरहाल, देखना है कि क्या होता है?

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