Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

Online education: बच्‍चों की शिक्षा पर उठते सवाल?

हमें फॉलो करें Online education: बच्‍चों की शिक्षा पर उठते सवाल?
webdunia

ऋतुपर्ण दवे

कोरोना महामारी से भयभीत तमाम शिक्षा संचालकों और शिक्षा के ठेकेदारों ने खासकर बच्चों की पढ़ाई के लिए तोड़ निकाल ऑनलाइन शिक्षा देने की जो कोशिशें की हैं, वो बहुत जल्द बेहद घातक लगने लगीं। लगता है कि जानकारों ने जानते हुए भी जो पहल की उसके तमाम बुरे नतीजों ने इसे कटघरे में ला खड़ा किया।

जहां पहले से ही बच्चों में मोबाइल फोन के दुष्परिणाम और खतरनाक नतीजों ने मां-बाप और अभिभावकों की परेशानी बढ़ा रखी थी, वहीं एकाएक खासकर उन्हीं को मोबाइल के जरिए शिक्षा परोस देना कोरोना महामारी से जूझ रही दुनिया के लिए एक दूसरे अभिशाप से कम नहीं है।

बच्चों को अव्वल बनाने की होड़ में पहले जहां अभिभावक चुप रहे वहीं अब सरकारी महकमों पर भी सवाल उठने लगे कि ब्यूरोक्रेट्स सब कुछ जानते हुए भी न केवल गूंगे बने रहे बल्कि जनप्रतिनिधियों तक ने चुप्पी साध ली।हालांकि बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा पर सवाल पहले दिन से ही उठ रहे हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि खुद सीबीएई और तमाम राज्यों के बोर्ड ने भी बिना देरी किए न केवल ऑनलाइन शिक्षा शुरू करवाई बल्कि खूब प्रचार, प्रसार भी किया। अभिभावकों के सामने दूसरे बच्चों से पिछड़ने का भय भी पैदा हुआ या किया गया और स्कूलों द्वारा ऑनलाइन शिक्षा की थाली सजाकर वाट्सएप ग्रुप के रूप में परोसी जाने लगी।

निश्चित रूप से यह मां-बाप और अभिभावकों के लिए दुविधा वाली स्थिति बनी। न तो हां कह सकते और न ही ना। लॉकडाउन लगते ही बिना देरी किए सीबीएसई ने ही 25 मार्च को ही बच्चों की पढ़ाई को लेकर बड़ा फैसला कर मंशा जताई कि किसी भी कीमत पर बच्चों की पढ़ाई को प्रभावित नहीं होने देना है। देशभर के स्कूलों के लिए गाइडलाइन जारी कर फरमान जारी किए कि पढ़ाई प्रभावित न हो इसलिए सारे स्कूल ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था शुरू करें वरना मान्यता रद्द की जा सकती है। कई राज्यों के शिक्षा बोर्डों ने भी यही किया। शुरू में तो लगा कि जैसे शिक्षा के क्षेत्र में दुनियाभर में क्रान्ति आ गई है। स्कूलों में बैठकर पढ़ने के दिन लद गए। अब तो सारा कुछ ऑनलाइन। लेकिन चन्द हफ्तों में ही दुष्परिणाम दिखने लगे जो बेहद परेशान करने वाले रहे।

बच्चों के सुरक्षित जीवन जिसकी अभी वो शुरुआत ही कर रहे हैं के लिए मोबाइल पर शिक्षा किसी गंभीर खतरे से कम नहीं रही। हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी शिक्षा के क्षेत्र में किसी भी बड़े बदलाव के खिलाफ आगाह करते हुए चेताया कि इससे सामाजिक-आर्थिक असामनता और इसका वर्चुअल प्लेटफॉर्म बच्चों को अनायास ही यौन शोषण और तमाम विकृतियों की तरफ ले जा सकता है। यूएनओ की एजुकेशन शाखा यूनेस्को ने शिक्षा के लिए कुछ सिफारिशें की जिसमें कहा कि यह सोचना भ्रम है कि ऑनलाइन सीखना सभी के लिए आगे बढ़ने का रास्ता है। जबकि एजुकेशन कमि‍शन ने कहा कि दूरस्थ इलाकों में ऑनलाइन शिक्षा न केवल गरीब बल्कि अमीर देशों में भी गैर बराबरी बढ़ाएगी। लेकिन भारत में इसकी अनसुनी हुई नतीजन अब तमाम तरह की चर्चाओं का दौर जरूर शुरू हो गया।

अब ऑनलाइन कक्षाओं के फायदे कम, नुकसान ज्यादा दिखने लगे हैं। शुरूआत में बच्चे जरूर खुश थे लेकिन अब तमाम कठिनाइयां आ रही हैं। अभिभावक अलग परेशान हैं। इंटरनेट पैक के खर्चे बढ़े जिसने लॉकडाउन के बीच पाई-पाई को तरस लोगों की मुसीबतें बढ़ा दीं। हालांकि इससे बच्चे व्यस्त जरूर हो गए लेकिन हासिल कुछ हो नहीं रहा। डाउट्स भी क्लियर नहीं होने से उनमें स्ट्रेस बहुत बढ़ रहा है। वहीं आंखों की परेशानी, चिड़चिड़ापन, नींद न आना, एंग्जायटी और घुटन तक की थोक में शिकायतें आनी शुरू हो गईं। अब तो कई चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट भी मानते हैं कि यह बिल्कुल ठीक नहीं है तथा छोटे बच्चों को मोबाइल से दूर ही रखना चाहिए क्योंकि उनकी नन्हीं आंखों की मांसपेशियां बहुत कमजोर होती हैं तथा लगातार मोबाइल देखने से बच्चों की आंखों को नुकसान पहुंच सकता है।

बहरहाल ऑनलाइन शिक्षा की जरूरतों के बीच तमाम वैज्ञानि‍क अध्ययनों और नि‍ष्कर्षों की अनदेखी भी न हो जिसमें मोबाइल फोन तथा अन्य कॉर्डलेस टेलीफोन के इस्तेमाल से मस्तिष्क पर पड़ने वाले जैविक प्रभाव संबंधी शोध किए जा रहे हैं। स्वीडन के ओरेब्रो यूनिवर्सिटी द्वारा बच्चों तथा किशोरों में वायरलेस टेलीफोन के दुष्प्रभावों का अध्ययन कर जांच की गई कि बच्चों और किशारों में इसके इस्तेमाल से किस तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्या आती है। चिकित्सा शोधकर्ता फ्रेडरिक साडरक्विस्ट ने युवाओं और बड़ों के खून की भी जांच की जिससे पता चला कि बड़ों की तुलना में बच्चे वायरलेस फोन की तरंगों को लेकर ज्यादा संवेदनशील होते हैं जिससे खून में प्रोटीन ट्रांसथायरेटिन की मात्रा भी बढ़ती जो उनके दिमाग पर असर डालती है। यही संवेदनशीलता मोबाइल फोन से रेडि‍एशन, मेमोरी लॉस और एल्जॉइमर्स जैसी बीमारि‍यों की संभावना बढ़ाती है जिस पर अक्सर काफी सुनने, पढ़ने को मिलता है।

प्रायमरी के बच्चों से लेकर सीनियर सेकेण्डरी तक के बच्चों की मोबाइल को लेकर दीवानगी किसी से छुपी नहीं है। इंटरनेट पर पहले ही खतनाक खेलों की भरमार है जिसमें ब्लू व्हेल, पबजी के चलते न जाने कितनी मौते हुईं। वहीं अनेकों ऐसे हिंसक खेलों की कमीं नहीं है जिसमें गाली-गलौज, मारपीट, गोली चलाने जैसी घटनाएं दिखाई जाती हैं। पहले ही डॉक्टरों की ओपीडी में इण्टरनेट की लत के शिकार नई पीढ़ी जिसमें बच्चे और किशोर हैं की भरमार है। ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा के जरिए घण्टों बच्चों को मोबाइल के साथ छोड़ना बहुत बड़े जोखिम से कम नहीं। वहीं ऑनलाइन शिक्षा के दौरान बच्चों के वाट्सएप ग्रुप में पोर्न सामग्रियां भेजे जाने की कुछ शर्मनाक घटनाओं ने अलग चिन्ता बढ़ा दी है।

इधर यूनिसेफ के ताजा आंकड़े बताते हैं कि जहां लॉकडाउन के बाद विश्व के 191 देशों में डेढ़ सौ करोड़ से ज्यादा छात्र और लगभग साढ़े 6 करोड़ प्राइमरी व सेकेंडरी शिक्षक प्रभावित हैं। जब कि भारत में लगभग 32 करोड़ छात्रों पर असर पड़ा है जो नर्सरी, प्री-प्राइमरी से लेकर ग्रेजुएशन व पोस्टग्रेजुएशन के हैं। वहीं दुनिया में बड़ी जनसंख्या के सामने अब भी बड़ी समस्या इंटरनेट और आनलाइन पढ़ाई के लिए बुनियादी जरुरतों की हैं। 2018 में जारी सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में महज 38 फीसदी लोगों के पास इंटरनेट कनेक्शन हैं उसमें भी 84 फीसदी शहरी तथा 16 फीसदी ग्रामीण हैं। यानी शहरी के मुकाबले ग्रामीण इंटरनेट से कोसों दूर हैं। जबकि दूसरी बड़ी बात यह भी कि जिनके पास इंटरनेट की सुविधा है वो कनेक्टिविटी को लेकर परेशान रहते हैं। दूर दराज के ग्रामीण इलाकों सहित केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में अभी तक इंटरनेट की 2जी सेवा ही पहुंची है। ऐसी स्थिति में भी ऑनलाइन शिक्षा की उपयोगिता स्वतः समझ आ जाती है।

मान भी लिया जाए कि ऑनलाइन शिक्षा वक्त की जरूरत है तब भी तो यह सबकी पहुंच से बाहर ही है। यानी गरीब और अमीर के फर्क के अलावा पहुंच और गैर पहुंच के बीच का नया फर्क पैदा होगा जिससे भारत में इंटरनेट कनेक्टिविटी के सच और दावों के बीच एक नई जंग शुरू होगी। सवाल अहम और अकेला बस यही कि क्या ऑनलाइन शिक्षा से बिना गुरू के सामने रहे वाकई बच्चे शिक्षित हो पाएंगे और वही सीखेंगे जो सीखने की मंशा हुक्मरान और मां-बाप की है या फिर अनजाने ही किसी गलत और खतरनाक रास्ते पर निकल पड़ेंगे।

नोट: इस लेख में व्‍यक्‍त व‍िचार लेखक की न‍िजी अभिव्‍यक्‍त‍ि है। वेबदुन‍िया का इससे कोई संबंध नहीं है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

अमेरिका 161 भारतीयों को इस सप्ताह भेजेगा स्वदेश, गैरकानूनी तरीके से हुए थे प्रविष्ट