हिन्दी साहित्य का पक्ष रखने के लिए प्रवक्ताओं की आवश्यकता

डॉ अर्पण जैन 'अविचल'
हजारो-हजार सालों का हिन्दी का समृद्धशाली इतिहास और गौरवशाली वर्तमान है जिस पर संपूर्ण विश्व अपना समाधान खोजता है। बात यदि गीता और रामायण जैसे धर्मग्रंथों की हो या आदिवासी या दलित विमर्श की हो, इतिहास के मोहनजोदड़ो संस्कृति की हो, चाहे सभ्यता के युग परिवर्तन की, विश्व जितना भारत को जान पाया है वो बदौलत हिन्दी साहित्य ही है जिसका प्रसार और प्रभाव विश्व की अन्य भाषाओं में अनुवाद से हुआ है। हर व्यावहारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं का समाधान हिन्दी साहित्य में उपलब्ध है। परंतु हिन्दी जिस दिशा में आज जा रही है, वो हिन्दी के लिए ही खतरा पैदा कर रही है।


वर्तमान समय विपणन या कहे प्रचार-प्रसार का है जिसमें एक छोटा-सा चाय उत्पादक या विपणन संस्थान भी जब बाजार में अपना उत्पाद लाता है, तो उसके लिए एक मार्केटिंग योजना बनाता है। और उत्पाद कितना भी अच्छा हो उसके लिए वर्तमान दौर में एक अच्छी मार्केटिंग योजना का क्रियान्वयन अधिक मायने रखता है। बिना श्रेष्ठ मार्केटिंग और प्रचार-प्रसार के सोना या हीरा भी ज्यादा ग्राहकों तक नहीं पहुंचाया जा सकता। तब तो समय या कहें बाजार की मांग के अनुसार पैकेजिंग और ब्रांडिंग के युग में यह बात हर महत्वपूर्ण उत्पाद, योजना, भाषा, व्यक्ति और कंपनी पर लागू होती है।

हिन्दी भाषा भी वर्तमान में समृद्धशाली तो है, परंतु बड़े और झंडाबरदार लोगों के व्यामोह से ग्रसित भी है। हिन्दी का शाश्वत और क्षमतावान साहित्य वैश्विक पटल के साथ-साथ हिन्दुस्तान में भी प्रचार और प्रसार मांगता है। हिन्दी के पास अधिक संभावनाशील और ऊर्जावान साहित्यकार तो है, परंतु उनका प्रबंधन और विपणन (मार्केटिंग) का दायरा कमजोर होने से हिन्दी के रचनाकारों का पेट अंग्रेजी के रचनाकारों की अपेक्षा अमूमन खाली ही नजर आता है। भारत की लगभग 50 करोड़ से अधिक आबादी आज हिन्दी को अपनी प्रथम भाषा मानती तो है, परंतु उसकी साहित्य-सर्जना युवा पीढ़ी से उतनी दूर भी होते जा रही है, यह भी एक कटु सत्य है।

देशभर में हो रहे हिन्दी के आयोजनों, साहित्य उत्सवों, लिटरेचर फेस्ट, पुस्तक मेलों, गोष्ठी, परिचर्चा और टीवी चैनलों आदि में जब हिन्दी साहित्य का पक्ष रखा जाता है तो सबसे पहले तो आयोजकों को इस व्यामोह से बाहर निकलना होगा कि फलां नाम बड़ा है, बड़े लोग हैं आदि। उसे ये देखना चाहिए कि किसने कितना काम हिन्दी भाषा के लिए किया है? किस क्षेत्र में किया है? उसका अध्ययन का दायरा कितना है? और उसके पास समाज को चिंतन देने के लिए कितना विस्तारित क्षेत्र है? चूंकि इस दिशा में हिन्दी के साहित्यकारों और झंडाबरदार जो हिन्दी की चिंता कर रहे हैं, उन्हें ज्यादा ध्यान देकर प्रवक्ताओं की फौज तैयार करना होगी, जो सार्थक मंचों पर हिन्दी का पक्ष रख सके।

एक अच्छे प्रवक्ता के अभाव में हिन्दी के गुण-व्याकरण से समाज अपरिचित-सा रह जाता है और जानकारी का अभाव हिन्दी को अंग्रेजी या अन्य भाषा से बौना सिद्ध करता है। वैसे ही जैसे इस राष्ट्र में राजनीतिक समीकरणों और योजनाओं के साथ-साथ सरकार के अच्छे-बुरे काम या विपक्ष का मंतव्य रखने के लिए, टेलीविजन कार्यक्रमों में बैठे प्रवक्ताओं का अध्ययन ही उस दल का सटीक और व्यावहारिक पक्ष रखता है।

हिन्दीभाषा के प्रचार-प्रसार हेतु देश में कई संस्थान सक्रियता से कार्य कर रहे हैं। कोई पेट की भाषा बनाने पर जोर दे रहा है तो कोई राष्ट्रभाषा, कोई साहित्य में शुचिता की बात कर रहा है तो कोई नवांकुरों के प्रशिक्षण की। इन संस्थानों में अग्रणी नागरी प्रचारिणी सभा, मातृभाषा उन्नयन संस्थान, वैश्विक हिन्दी सम्मेलन, भारतीय भाषा सम्मलेन आदि हैं। इन संस्थानों को जिम्मेदारीपूर्वक हिन्दी के प्रवक्ताओं को तैयार करना होगा जिनके व्याख्यान, उद्बोधन, आलेख और समाचार चैनलों पर हिन्दी का पक्ष रखने के तरीकों से हिन्दी का व्यापक प्रचार-प्रसार संभव है।

केवल कविता या कहानी लिखने मात्र से हिन्दी भाषा का सम्मान बने या बरकरार रहे, ये संभव कम है। हिन्दी को जनभाषा के तौर पर स्थापित करने लिए सर्वप्रथम हिन्दी के गूढ़ समाधानपरक साहित्य को जनमानस के बीच सरलता से पहुंचाना होगा और ये काम हिन्दी के प्रवक्ता बखूबी कर सकते हैं। यदि इस दिशा में कार्य किया जाए तो हर नगर, जिला और प्रांत से हिन्दी के प्रवक्ताओं को तैयार किया जा सकता है।

उन्हें वरिष्ठजनों के मार्गदर्शन में अधिक सक्षमता से तैयार किया जा सकता है। उन्हें विस्तृत अध्ययन हेतु प्रेरित करके हिन्दी का पक्ष रखने के लिए जनता के बीच भेजा जा सकता है, क्योंकि वर्तमान बाजार विपणन (मार्केटिंग) आधारित है और हिन्दी के प्रवक्ताओं की मांग भी बाजार आधारित है तभी हिन्दी का सर्वोच्च सदन हिन्दी के यशगान में अग्रणी हो सकता है अन्यथा बेहतर मार्केटिंग के अभाव में हिन्दी शनै:-शनै: बाजार से गायब ही हो जाएगी।

(लेखक डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।)

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

क्या आपको भी पसंद है चाय के साथ नमकीन खाना? सेहत को हो सकते हैं ये 5 नुकसान

ऑफिस के लिए 5 best corporate outfit ideas, जानिए किन आउटफिट्स से मिलेगा परफेक्ट प्रोफेशनल लुक

खाने के बाद चबाएं एक पान का पत्ता, सेहत को मिलेंगे ये 7 गजब के फायदे

अपने नाखूनों की देखभाल करने के लिए, अपनाएं ये बेहतरीन Nail Care Tips

सूप पीने से पहले रखें इन 5 बातों का ध्यान, सेहत को मिलेंगे 2 गुना फायदे!

सभी देखें

नवीनतम

स्टील, एल्युमीनियम और मिट्टी, कौन सा बर्तन है सबसे अच्छा? जानिए फायदे और नुकसान

मंडे ब्लूज़ से हैं अगर आप भी परेशान, तो ये खाएं ये सुपरफूड्स

आपके खाने में कितनी होनी चाहिए Fiber की मात्रा, जानें फाइबर क्या है और क्यों है ये जरूरी

White Discharge से हैं परेशान तो इस बीज का करें सेवन, तुरंत मिलेगी राहत

इंटिमेट एरिया में जलन या इरिटेशन की है परेशानी, चावल के पानी से मिलेगी राहत

अगला लेख
More