मेरा देश मुस्कुरा रहा है

गरिमा संजय दुबे
मुझे अपने आप पर गर्व हो रहा है कि मैं एक ऐसे ऐतिहासिक परिवर्तन के क्षण की साक्षी बनी हूं जो बहुत कम लोगों को नसीब होता है। समाज और राष्ट्र में  सकारात्मकता का संचार करना ही एक नायक की सच्ची उपलब्धि होती है और इस लिहाज से आप माननीय प्रधान मंत्री जी के अस्तित्व को नकार नहीं पाएंगे।  



एक लंबे निराशा भरे माहौल में जब हिन्दुस्तान में अत्यधिक नकारात्मकता घर कर गई थी, आम जनता के मन में यह बात गहरे तक कहीं पैठ गई थी कि सब बुरा है, सब बेकार है, सब बेईमान हैं, कहीं कुछ नहीं होना, सब चलता है, कुछ भी नहीं बदलेगा, एक पूरा राष्ट्र अजीब से हीन भाव, स्वाभिमान हीनता से ग्रस्त हो गया था। इसी गहरे अवसाद और विषाद की कोख से ही परिवर्तन ने जन्म लिया और परिवर्तन ने धीरे-धीरे आशावादिता की बुझती हुई लौ के लिए ईंधन का काम किया है। 
 
8 नवंबर 2016 को जो हुआ उसने इस लौ को अद्भुत दैवीय आभा दी है, और दिया है आम जनमानस के विश्वास को नया संबल। राजनीतिक दृष्टि से इसके कई विश्लेषण होंगे, किंतु सामाजिक स्तर पर मैंने आज तक किसी अवसर पर आम भारतीय को इतना खुश नहीं देखा। अपने आस-पास अजीब-सी खुशियां, खिलखिलाहटें और मुस्कुराहटें बिखरी देखी हैं, जो यह साबित कर रही हैं कि ईमानदारी और राष्ट्र के कल्याण का भाव आज भी जीवित है। एक गर्द जम गई थी मानों अच्छाई  के शीशे पर, जिसे एक हवा के एक झौंके की दरकार थी। झैंका आया, धूल साफ और दर्पण में चमकदार अक्स नजर आने लगा। लग रहा है, जैसे हर कोई कह रहा है...देखो...ऐसा भी हो सकता है, हां-हां देखो...कोशिश हो रही है, देखो ...हम भी कुछ कर सकते हैं, देखो...आवाज उठाने पर सफलता मिलेगी, कुछ-कुछ ऐसा ही सबके मन में। मेरे विचार से बहुत बड़ी नैतिक सफलता है यह, लोग इसे राजनीतिक सफलता मानें तो मानते रहें। 
 
भावनात्मक पक्ष से अब थोड़ा व्यावहारिक पक्ष की तरफ बढ़ते है। इतना बड़ा देश, इतना बड़ा परिवर्तन, क्या सोचते हैं हम, कोई जादू है जो एकदम से सबकुछ सही हो जाएगा। बड़े परिवर्तन की सफलता किसी एक व्यक्ति के निर्णय ले लेने भर से निश्चित नहीं हो जाती, बड़ी सफलता सामूहिक प्रयास की मांग करती है। सरकार ने अपना काम कर दिया है, आगे भी कर रही है, लेकिन अब हमारी बारी है। हम कितनी जल्दबाजी में है, निर्णय आया, तारीफों की बारिश, अगले दिन से परेशानी आनी ही थी, परेशानी शुरू हुई और हम शुरू हो गए बुराई का ठीकरा फोड़ने के लिए।
 
परिवर्तन का प्रारंभ हो चुका है, अब हम क्या कर सकते हैं? इतने बड़े निर्णय में व्यावहारिक परेशानियां आएंगी ही और हर परेशानी का हल सरकार ही करेगी अब भारत को इस मानसिकता से भी बाहर आना होगा। अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य बोध को भी जगाना होगा। हड़बड़ी न मचाएं, अपने खर्चों को कुछ समय के लिए स्थगित किया जा सकता है, आपातकालीन परिस्थितियों में हम एक दूसरे की मदद कर सकते हैं (सिवाय एक दूजे के पैसे को अपने अकाउंट जमा करवाने के) एटी एम में लगने वाली कतार में बुजुर्गों और अशक्त जनों को प्राथमिकता देने के लिए भी क्या सरकार को कोई निर्देश जारी करना पड़ेंगे ? यह तो हमारी साझी समझ है कि राष्ट्रहित में कुछ दिनों की इस परेशानी को कैसे सुलझाएं। नकारात्मक खबरे फैलाकर बड़ी मुश्किल से चैतन्य हुए, मुस्कुराते हुए मेरे देश की मुस्कराहट पर कृपया पाला मत पड़ने दीजिए। हो सके तो सकारात्मकता का वायरस फैलाएं, यही इस आर्थिक शुचिता के महायज्ञ में हमारी और से एक आहूति होगी। 
 
कोर्ई भी परिवर्तन या व्यवस्था शत-प्रतिशत त्रुटि रहित नहीं हो सकती, राजनीतिक विश्लेषण मेरे इस भावनात्मक विश्लेषण से मेल नहीं खाएंगे, लेकिन फिर भी मुस्कुराने और खुश होने की यह एक जायज वजह है। देखिए, बहुत लंबे समय बाद मेरा देश मुस्कुरा रहा है।
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