मुद्रा का विमुद्रीकरण demonetization मुद्रा की परिभाषा अनुसार चलित मुद्रा को अमान्य घोषित करना है। वस्तुतः यह प्रक्रिया काले धन की अत्यधिकता और नकली नोटों के प्रचलन में आ-जाने से उतपन्न होती है। लेकिन इससे सरकार के खजाने पर अतिरिक्त वित्तीय भार भी आता है, क्योंकि सरकार को उतने ही नए नोट छापने होते हैं जितने कि उसने अमान्य किए हैं। यह खर्च भी हजारों करोड़ में होता है जो सीधे-सीधे सरकार पर ही बोझ बनता है।
विमुद्रीकरण की सफलता इसी बात पर निर्भर है कि काले धन की वापसी न के बराबर हो और उसकी एवज में नए नोट कम से कम मात्रा में लौटाना पड़े। इससे बचने के लिए रिजर्व बैंक ने क्या कदम उठाए हैं यह देखना बाकी है, जो शायद पोस्ट डिमोनेटाइजेशन यानी विमुद्रीकरण प्रक्रिया उपरांत अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से पता चलेगा। हाल फिलहाल काले धन वाले अपने नोटों को निकालने के लिए हॉस्पिटल, पेट्रोल-पंप, टोल-बेरियर इत्यादि से संपर्क करने में व्यस्त होंगे। हो सकता है छूट बढ़े या अन्य किसी आवश्यक क्षेत्र भी इसमें जुड़े, तब इस छूट की आड़ में इनके मालिक अपनी काली कमाई कैसे छुपाते हैं यह देखने और निरीक्षण करने की जरूरत भी है। कुछ चतुर सुजान अपने काले धन को दूसरों के खाते में डलवाने का प्रयास भी करेंगे और उसके लिए लालच का सहारा भी लिया जाएगा । बचने के लिए सोना-चांदी, जमीन-मकान खरीदी में इन्वेस्टमेंट का सहारा भी लिया जाएगा। कीमत से अधिक काला धन अदा करने का प्रलोभन रखा जाएगा।
हालिया विमुद्रीकरण प्रक्रिया से काला धन जमीदोज हो जाएगा या इससे सरकार को अभूतपूर्व लाभ होगा, यह सब निष्कर्ष निकालना आसान लगता है पर इन बातों का पता कुछ दिनों बाद लगेगा जब यह आकलन होगा कि अमान्य मुद्रा कितनी जमा हुई और यह उतनी ही है जितनी की सरकार नें पूर्व में मुद्रित की थी या उससे कम है। यदि वापसी तारीख के गुजरने के पश्चात सरकार के खजाने में अप्रचलित मुद्रा और पूर्व की वास्तविक छपाई मुद्रा के अनुपात में भारी अंतर रहता है यानी कम मुद्रा वापसी हो तभी विमुद्रीकरण प्रक्रिया सफल मानी जा-सकती है। और यह सफल तभी हो-सकती है जब हम सभी मिलकर इसे सफल बनाएं।
सरकार एक कदम आगे बढ़ चुकी है तो हमें भी पीछे नहीं हटना है, चाहे इसके लिए कुछ परेशानी ही क्यों न झेलनी पड़े। साथ ही समस्त देशवासी, आमजन यह भी ध्यान रखें, कि किसी भी लोभ-लालच में विवश होकर काले धन को सफेद करने वालों के जाल में न फंसे, नहीं तो विमुद्रीकरण प्रक्रिया देश के लिए भारी-भरकम वित्तीय बोझ बन जाएगी और उसका असर आमजन पर ही होगा।
यदि काले धन वालों ने दूसरों को प्रलोभन में फंसाकर अपना उल्लू सीधा कर लिया तो फिर ये काले मायापति कमजोर न होकर पुनः नई मुद्रा का खजाना भर लेंगे। ऐसे में ढाक के तीन पात की स्थिति निर्मित न हो इसके लिए नजर रखिए कि हमारे इर्द-गिर्द उल्लू सीधा करने की हलचल तो नहीं है। ऐसा कोई सहयोग न कीजिए जिससे काले चोरों के चेहरे चमकते रहें।
लूप-होल ढूंढते चोर हमारे सहयोग की आशा में अभी सहज लग रहे हैं। उनके चेहरे पढ़िए, उनके चेहरे जब चमक खोने लगें तब समझिए की हम सफल हुए। यही वे सब लोग हैं जो सिर्फ खुद का भला चाहते हैं न की देश का, इन्हें चिन्हित कर मनमर्जी के देश भेजने की मांग रखना ज्यादा सार्थक प्रतीत होगा। ध्यान रहे इस वक्त मुर्ख बनना मतलब खुद की खराब तकदीर लिखने के समान है। इन सब बातों से बचने के लिए रिजर्व बैंक को भी अधिकृत रूपसे आम नागरिकों के हित में एडवायजरी, सलाह-सुचना प्रकाशित करना चाहिए ताकि उनकी योजना का मन्तव्य सफल हो-सके। निवेदन यह भी है कि इस प्रक्रिया से जो टेक्स चोर सामने आते हैं उन्हें दंड भी दिया जाए नहीं तो सिर्फ टैक्स काटकर छोड़ने से उन लोगों को जरूर ठेस लगेगी जो इस प्रक्रिया के लिए कष्ट उठाने को तैयार हुए है।