क्या ये मेरा गुनाह है? कि मैं राम-रहीम, ईसा मसीह की प्रतिमा में एक ही दिव्य सत्ता के दर्शन करती हूं ? एक दिव्य ज्योति के ही दर्शन करती हूं। जैसे हम इंसानों के अलग-अलग नाम और शरीर हैं, वैसे ही भगवान के अलग-अलग स्वरूप हैं और अलग-अलग नाम हैं। तो क्या यदि हमारे अलग-अलग नाम और स्वरूप हैं तो हम इंसान बंट जातें है? क्या हम इंसान नहीं कहलाते ?
वैसे ही इस दिव्य सत्ता के भी अनेक स्वरुप और नाम हैं, तो उन्हें भगवान कहें या अल्लाह या ईसा मसीह कहें, वह एक दिव्य सत्ता जो सर्वोपरि है, वह सर्वोपरी ही रहेगी न ? सर्वोच्च है तो है। उसे फिर आप अल्ल्लाह कहो, ईसा-मसीह कहो या कुछ भी नाम से पूजो, वह दिव्य सत्ता ही सर्वोच्च रहेगी...।
भगवान ने हर इंसान के लिए एक ही हवा बनाई है। यह नहीं लिखा किसी भी धर्म ग्रंथ में, कि यह हवा सिर्फ हिंदू के लिए है या यह हवा सिर्फ मुस्लिम के लिए है या सिर्फ क्रिश्चियन के लिए है। वह दिव्य सत्ता जिसे, आप और मैं खुदा, भगवान या गॉड कहते हैं, वही इस सृष्टि का इस दुनिया का सच्चा रचयिता है। उसने हम सबको बनाया है और सबके लिए एक सी व्यवस्था रखी है, जो जीने के लिए बेहद जरूरी है। जैसे की हवा, पानी, अनाज इन तीनों के बिना मानव जीवन असंभव-सा है न ? और आप ध्यान दें, इस बात पर, कि भगवान ने यदि यह दुनिया बनाई है, तो उसने कहीं यह नहीं कहा कि यह सिर्फ हिंदुओं के लिए है और मुस्लिम मेरी बनाई इस हवा का उपयोग नहीं कर सकते, न ही कहीं यह कहा है, कि मेरी बनाई इस हवा से क्रिश्चियन भाई-बहन सांस नहीं ले सकते।
यदि खुदा ने यह सब बनाया तो उन्होंने भी यह नहीं कहा की हिंदू या क्रिस्चियन के लिए यह वर्जित है, मेरी बनाई हवा का उपयोग ये लोग नहीं कर सकते। कहीं नहीं लिखा ना ऐसा ? और यदि इसा मसीह ने हवा बनाई है, तो उन्होंने भी कहीं नहीं कहा कि हिन्दू या मुस्लिम मेरी बनाई हवा का उपयोग नहीं कर सकते ..इसी तरह से पानी के लिए भी आप सोच सकते हैं। भगवान, खुदा, ईसा मसीह ने यह नहीं कहा की यह सिर्फ मुझे मानने वालों के लिए है।
चलो एक बार यह मान भी लिया जाए कि सबके भगवान अलग-अलग होते हैं, तो सोचिए की यदि भगवान अलग हैं तो उन्होंने पूरी दुनिया के लिए एक ही व्यवस्था क्यों रखी? यदि भगवान अलग होते, खुदा अलग होते, ईसा-मसीह अलग होते, तो वो अपने लोगों के लिए अलग हवा, अलग पानी, अलग ही जीवन-शैली बनाते। सबके शरीर जिस लहू की वजह से चलते हैं, आज दुनिया में वो लहू या तो सिर्फ भगवान ने दिया होता अपने हिन्दुओं के लिए या फिर खुदा ने बनाया होता सिर्फ अपने-अपनों के लिए। हिंदुओं के शरीर में कुछ और होता जिससे उनका जीवन चलता न ? और क्रिश्चियन भाई-बहनों के शरीर में और कुछ होता। पर सोचिए जरा, कि भगवान, खुदा या मसीहा सब एक दिव्य सत्ता हैं, अलौकिक सत्ता हैं, जिसकी नजरों में कोई भेदभाव नहीं है। उन्होंने सबके लिए एक ही हवा, एक ही तरह का पानी और एक ही लहू दिया और संसार को बताया है कि मैं एक हूं। दुनिया में कई रंगबिरंगे फूल बनाए हैं, किसी फूल पर यह कभी कहीं लिखा नहीं मिला कि यह फूल सिर्फ मेरे बंदे के लिए मैंने बनाया है, क्योंकि मैं भगवान हूं तो हिंदुओं का, क्योंकि मैं खुदा हूं तो ये फूल सिर्फ मुस्लिम के लिए है और क्योंकि मैं गॉड हूं तो ये क्रिश्चियन का है।
जिनके लिए हम सभी मानव उनके बच्चों के समान हैं, हम सब उसी दिव्या सत्ता के, अलौकिक सत्ता के अंश हैं। हम सिर्फ मानव हैं, इंसान हैं। जरुरत है तो उस सर्वोच्च सत्ता को समझने की और उनकी बनाई सृष्टि को, संकुचितता त्यागकर व्यापक दृष्टि से निहारने की। पर उस दिव्य और अलौकिक सत्ता के हम इंसानों ने अनेक नाम रख दिए, धर्म बना दिए। यहां तक तो ठीक था, पर धर्म के नाम पर उसी खुदा के बनाए बंदों को, उसी भगवान के बनाए बंदों को, उसी ईसा मसीह के बनाए बंदों को हम क्यों जात-पांत के भेदभाव के नाम पर, धर्म के नाम पर कुचल रहे हैं? ऐसे अत्याचार से सोचिए, हमारा भगवान, हमारा खुदा हमारा ईशु खुश होगा? जरा सोचिए कितना दुख होता होगा उस दिव्य आलौकिक सत्ता को, जिसे हम भगवान, खुदा या मसीहा कहते हैं और हम उन्हें पूजते हैं।
सभी धर्म अच्छी अच्छी बातें ही सिखाते हैं। कोई धर्म, कोई भगवान झूठ बोलना नहीं सिखाता। हरेक धार्मिक पुस्तक ग्रंथ हम इंसानों को सच्चाई और अच्छे से जीने का संदेश देती है, तो क्यों न हम अपना दृष्टिकोण बदलें? और गहराई से ईश्वरीय सत्ता के आव्हान को समझें, सुनें और जीवन में उतारें ?
आज जब-जब कोई समाचार पत्र यह खबर देता है कि दंगों की वजह से हजारों जानें गई...कई लोग मौत के घाट उतारे गए... देखकर- सुनकर दिल दहल जाता है और एक ख्याल आता है मन में, कि हममें यह ताकत है कि हम एक इंसान बनाएं? फिर जिन्हें हम आपना सर्वोपरि मानते हैं उनकी मेहनत को क्यों अनंत की आगोश में भेज देते हैं? इंसानी करुणा का अंत हो रहा है आज, बेवजह कई घर बर्बाद हो रहे हैं, कई बच्चे अनाथ और कई मां-बाप बेऔलाद हो रहे हैं। आखिर क्यों ?? आखिर क्यों ??? जबकि सर्वोच्च सत्ता तो सिर्फ एक है। उस दर्द को काश आत्मदाह करके दूसरों का जीवन लेने वाले समझ सकते...काश इंसानों में सिर्फ इंसानियत रहती... काश हमने दुनिया का सिर्फ एक धर्म रखा होता और वो धर्म होता सिर्फ और सिर्फ इंसानियत, तो आज कोई बच्चा अनाथ न होता, कोई मां-बाप बेऔलाद न होते और कोई औरत बेवा न होती, किसी का घर न उजड़ता...।
हम इंसान अपने दिलों में सिर्फ सबके लिए स्नेह नहीं रख पाते? यदि नफरत का स्थान स्नेह ले ले तो सोचिए यह दुनिया कितनी सुंदर बन जाती न? जहां सिर्फ खुशियां और सुख होते, हंसी की फुहारें होती, कोई आंसू न होता, कोई दिल दहलाने वाली कहानियां न बनती। प्यार से जीने के लिए ही यूं भी उम्र छोटी है, तो क्यों इतने प्यारे जीवन को नफरत की आग में हम झोंक रहें हैं ?
जब-जब ऐसी वारदातें होती हैं, तब-तब मन बेहद दुखी हो जाता है और ऐसी चार लाइन लिखकर मन मना लेती हूं। पर एक बात जरूर कहना चाहूंगी कि मासूम और बेकसूर लोगों की हत्या के बाद उनके अपनों की जो हालत होती है, उसी जगह ये दंगाई खुद को रखें और इस दर्द को महसूस करें। समझें कि कितना दर्द होता है, जीवन बर्बाद हो जाते हैं। तब जाने वाले तो चले जाते हैं पर पीछे बचे लोगों को नारकीय जीवन जीना पड़ता है। क्योंकि अपनों का विरह जीवन का सबसे बड़ा दुःख है और सिर्फ धर्म के नाम पर आज दुनिया में सबसे ज्यादा हत्याएं होती हैं। जबकि उसी धर्म को बनाने वाला तो समदर्शी है और उसके लिए कोई बेगाना नहीं, सब अपने हैं..फिर उसे चाहे भगवान कहा जाए, चाहे खुदा कहा जाए, चाहे ईसा मसीह कहा जाए...।
आपका कोई गुनाह नहीं होगा यदि आप हर धर्म के नियंता को एक ही मानें, समदर्शी बनें उनकी तरह ही, तब आप सच्चे जागरूक धर्मिष्ठ कहलाएंगे।