आत्महत्या के किसी भी कारण को मैं जायज़ नहीं मानता, लेकिन संकट से गुजरते हुए जिन क्षणों में आत्महत्या रचने की योजना मैं बना रहा हूं उस क्षण कोई मेरे पास आए और मुझे उस संकट से बाहर निकाले, जिस संकट की वजह से मैं आत्महत्या करने की सोच रहा हूं।
मेरे पास वो आए या कोई और आए और मुझे जीने की वाज़िब वजह बताएं। मुझे नहीं मरने का कारण बताएं। मैं वादा करता हूं, मैं नहीं मरूंगा। मैं जियूंगा और अंत तक जियूंगा।
लेकिन इसके विरुद्ध तुम सभी ने मुझे आत्महत्या का मोटिव दिया, मरने के एक सबसे बड़े कारण में धीमें- धीमें बहुत सारे छोटे- छोटे दूसरे कारण भी शामिल होते चले गए। बहुत सारी निराशाओं, उपेक्षाओं, तिरस्कार, अवसाद, तनाव और अकेलेपन ने मुझे घेर लिया, क्योंकि मेरे आसपास बहुत सी जगह खाली हो चुकी थी, मेरे पास कोई नहीं था, इसलिए बहुत जगह खाली थी। मेरे कमरे में जगह थी, मेरा दिल भी बहुत खाली था।
मेरी आत्मा सूखकर पेड़ का पत्ता हो रही थी। मैं जहां भी जाता, कमरे में, बगीचे में, छत पर सभी जगह सूनापन पसरा था। कहीं कोई आवाज नहीं थी। वहां सभी जगह ढेर सारी उदासियां रहने लगी। मेरी रातभर की करवटों से बिस्तर पर उभर आई सिलवटों को दुरुस्त करने कभी कोई नहीं आया। किसी आहट ने मेरी कोई मदद नहीं की, न कोई साया आया मदद को मेरी।
कभी किसी ने पूछा नहीं मुझसे कि तुम कहां खोये-खोये हुए रहते हो। कहां गुम रहते हो आजकल। तुम्हारी आंखें इतनी सूनी- सूनी सी क्यों हैं इन दिनों।
कितने दिनों से मेरा दिल बेतरतीब तरीके से धड़क रहा था। कभी सांस बहुत तेज़ी से चलने लगती थी, कभी-कभी तो रुक सी जाती थी। कितनी बार मेरा हलक ऊपर नीचे हुआ। कितनी रातों में मैं बैचेन रहा। आधी रात को उठा, जागा और फिर नहीं सो पाया। कितनी दफ़ा चलते-चलते मेरे कदम उलझ गए, लड़खड़ा गए। नींद भी धोखा देने लगी थी। कई दिनों या मुमकिन है बहुत महीनों तक नहीं सो पाने के कारण मेरी आंखें सूज गई थी, आंखों के नीचे डार्क सर्कल्स उभर आए थे। जगराते के काले गहरे धब्बे मैं रात में घरवालों से छुपकर आईने में देखता रहा। कितने घण्टों तक मैं अपने बाथरूम में और बेडरुम में बैठे हुए अपने तकलीफों के शून्य को ताकता रहा। एकटक देखता रहा। लेकिन मुझे किसी ने नहीं देखा। न जीते हुए न मरते हुए। और न ही घुटते हुए अपनी ही जिंदगी में।
किसी ने नहीं देखा, उन्होंने भी नहीं जो सुबह से शाम तक मेरी चापलूसी करते रहे। हज़ार चापलूसों की फ़ौज को भी मेरा मन नज़र नहीं आया। मेरी आंखें नहीं देख सके। मैं दुनिया के सबसे इंटेलएक्चुअल प्रोफेशन में काम करता था। वो जगह कोई लेबर मिल, कोई फैक्टरी या कारखाना नहीं था। वहां मेरे आसपास सब पढ़े-लिखे लोग थे। जो भाषा से खेलते थे। छोटी इ और बड़ी ई की मात्रा को भी समझते थे, जानते थे। उन्हें पता था कि कहां बिंदी लगेगी और कहां रफा। वो जानते थे कि कितने सेंटीमीटर में लिखना है और कितना स्पेस खाली छोड़ना है, लेकिन उन्हें मेरे भीतर का खाली स्पेस नज़र नहीं आया। वो ये भी जानते थे कि अखबार के जाने की डेडलाइन क्या है, लेकिन वे यह नहीं जान सके कि मेरी डेडलाइन क्या है।
आप तकलीफ में नहीं हो, इसलिए आप समाधान के बारे में नहीं सोच रहे हो। मैं तकलीफ में था, इसलिए मैंने उससे मुक्ति के बारे में सोचा। ऐसा नहीं कि संकट आते ही अगले ही क्षण मैं ऊंची इमारत की छत से कूद गया। या पंखे से लटकर मैंने अपना गला घोंट दिया। मैंने बहुत लंबे समय तक इस मुक्ति के बारे में भी सोचा। हल खोजा बहुत दिनों तक। क्योंकि कोई मेरी मदद नहीं कर रहा था। मैं खाली था, और मेरे आसपास कहीं कोई जगह नहीं थी।
एक बेतहाशा भीड़ मेरे आसपास रही, लेकिन किसी ने मुझे जीने के लिए नहीं कहा। किसी ने मुझसे जिंदगी के बारे में बात तक नहीं की। मुझे जिंदगी के लिए कोई कन्विंस नहीं कर सका। मुझे सभी ने मौत के लिए, आत्महत्या के लिए उकसाया।
बहुत सोचने और सर खपाने के बाद मुझे इतना ही हल नजर आया कि मेरे घर में इतनी भी जगह नहीं बची थी कि मैं वहां आत्महत्या कर सकूं।
इसलिए मरने के लिए भी मुझे अपने ऑफिस की छत को चुनना पड़ा। अपने किराऐ के कमरे को चुनना पडा।
फिर एक दिन मुझे लगा कि 'सुसाइड इज़ द मोस्ट सिन्सियर फॉर्म ऑफ सेल्फ़' / यह मेरे द्वारा लिया गया इतना ईमानदार फैसला था कि इस फ़ैसले को लेने के बाद पश्चाताप के लिए भी मेरे पास गुंजाइश नहीं थी। क्योंकि शवों के हक में सिर्फ आग होती है, आग या पश्चताप की आग में जलकर मरना नहीं।
दरअसल, आत्महत्या करने वाला कायर नहीं है, जो जिंदा थे वे कायर थे, क्योंकि वे एक आदमी को जीते हुए देख नहीं सके और उसे मरते हुए भी बचा नहीं सके।
मैं आत्महत्या का समर्थक हूं जब तक कि मुझे जिंदगी के लिए कन्विंस करने वाला कोई मिल नहीं जाता।
(नोट: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अभिव्यक्ति है। वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।