-गिरीन्द्र प्रताप सिंह
इस धरती के भविष्य में मूलभूत प्रश्न यह ढूंढना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का जीडीपी 100 ट्रिलियन डॉलर कैसे और किसके द्वारा पहुंचाया जाएगा। इस प्रश्न में हमारी भारत की अर्थव्यवस्था के 5 ट्रिलियन डॉलर के जीडीपी के आंकड़े तक जल्द से जल्द पहुंचने का संभावित उपाय हो सकता है। महत्वपूर्ण यह भी है कि भारत की उस 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश और तमिलनाडु की 1 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का कैसे योगदान होगा। इस 100 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी में जेट्टा-फ्लॉप्स की कम्प्यूटिंग, योट्टा-बाइटों की मेमोरीज और टेरा बाइट प्रति सेकंड की संचार कड़ी का बड़ा योगदान होगा। अंतरिक्ष के उपग्रह इस जेट्टा-योट्टा टेरा क्रांति में इंजीनियरिंग की महत्वपूर्ण कड़ी हैं।
एक तथ्य यह भी है कि करीब 5,400 उपग्रह निरंतर इस धरती को चौबीसों घंटे अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वो सारे-के-सारे उपग्रह सौर ऊर्जा और अपने प्रोपेलेंट टैंक के ईंधन पर आधारित हैं। जिस दिन यह टैंक खाली हो जाता है, उस दिन उपग्रह की जिंदगी खत्म हो जाती है और वो कचरा बन जाता है। वो करोड़ों का उपग्रह जिसकी सूचना संचार की मिनट-दर-मिनट क्षमता लाखों की बिकती है, वो ईंधन खत्म होने पर जीरो मूल्य के कचरे में तब्दील होकर दूसरे उपग्रहों के लिए खतरा बन जाता है और फिर उसको ऑर्बिट नाम के अंतरिक्ष के रोड से हटाना पड़ता है। धरती के आसपास अंतरिक्ष में बहुत कचरा है और उसकी भीड़ लगातार बढ़ रही है। अंतरिक्ष में न्यूनतम 10 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से 13 करोड़ वस्तुएं अंतरिक्ष में घूम रही हैं। बहुत सारी चीजें मिलीमीटर में हैं और कुछ सेंटीमीटर में और कुछ उससे ज्यादा। यूरोपियन स्पेस एजेंसी में दी गई फोटो के अनुसार हमारी धरती ऐसी दिखती है।
विभिन्न देशों के इन 5,400 उपग्रहों के द्वारा हमारी जिंदगी सुरक्षित, सुखी, समृद्ध और मनोरंजक बनाई जाती है। आज हमारे शहरों की प्लानिंग लो ऑर्बिट उपग्रहों में होती है और हमारे मौसम के अनुमान या हमारे डिश एंटेना के क्रिकेट मैच उपग्रह की डिश से देशभर में प्रसारित होते हैं। हम सोच सकते हैं कि अगर कोई 1 सेंटीमीटर आकार की कचरा समान वस्तु अगर 10 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से किसी भी एक उपग्रह पर टकराएगी तो कम्पोजिट मटेरियल से बने उपग्रह का क्या होगा और फिर उसके ईंधन से भरे टैंक में क्या होगा? यह तुलना हम एके-47 की गोली की स्पीड से कर सकते हैं, जो कि मात्र 0.715 किलोमीटर प्रति सेकंड की मजल स्पीड से दागी जाती है। आज धरती दिवस पर इस अंतरिक्ष में मनुष्य द्वारा बनाए गए प्रदूषण से बचने और उसको निवारण करने के बारे में विचार जरूरी है।
आज जब मैंने भारत के भूस्थिर उपग्रहों के भूतपूर्व प्रोग्रामी डायरेक्टर और ईएमआई/ईएमसी क्षेत्र में इसरो के जाने-माने भूतपूर्व वैज्ञानिक और अपने प्रथम बॉस माननीय पद्मश्री वादिराज कट्टी सर से अपनी इस टिप्पणी को व्हॉट्सएप पर भेजा तो उन्होंने कहा कि इस कचरे की आबादी तो बढ़ने ही वाली है। उपग्रह के ऑर्बिट के अनुसार उस ऑर्बिट का प्रबंधन बहुत जरूरी है। माननीय वादिराज कट्टी सर का कहना है कि कुछ विशिष्ट ऑर्बिट में भीड़ होना बहुत गंभीर है। धरती से अंतरिक्ष की निगरानी के बारे में माननीय इसरो चेयरमैन श्री एस. सोमनाथ सर कहते हैं कि 'अपनी अंतरिक्ष संपत्तियों की रक्षा के लिए, हमें अपनी क्षमताओं को बढ़ाने की जरूरत है। वर्तमान में, हमारे पास श्रीहरिकोटा रेंज में एक मल्टी ऑब्जेक्ट ट्रैकिंग रडार है, लेकिन इसकी एक सीमित सीमा है। हमारी योजना है कि स्थानिक विविधता के लिए 1,000 किमी के अलावा दो ऐसे रडार तैनात किए जाएं'। भारत सरकार की नेत्र परियोजना 'Network For space Object Tracking and Analysis- Netra' एक बहुत दूरदर्शिता का कदम है जिसमें कि भारत अब अंतरिक्ष निरीक्षण के क्षेत्र में सुदृढ़ हो रहा है।
अगर हम सिंपल भाषा में समझें तो अंतरिक्ष में ट्रैफिक बहुत होने लगा है। धरती पर इंसान और जानवर तो पैदल ही चलते आए हैं और पैदल चल पगडंडी अपने आप ही बन जाती है। लेकिन मेगा रोड और मेगा हाईवे के लिए बड़ी इंजीनियरिंग के बाद बहुत सारी ट्रैफिक पुलिस और ट्रैफिक सिग्नल्स की जरूरत होती है और एक्सीडेंट की हालत में एम्बुलेंस की जरूरत होती है। इसी तरह जबसे जेम्स वॉट ने 1769 से स्टीम इंजन बनाया है, तब से रेल लाइन का ट्रैफिक भी बढ़ता जा रहा है। उस ट्रैफिक को सभी देशों की रेलवे संस्थाएं संचालित करती हैं। फिर भी कितनी ही सावधानी बरतने के बाद भी एक्सीडेंट तो होते ही हैं। इसी तरह पूरे विश्व में हवा और इसके वातावरण में एक समय में करीब-करीब 17,000-18,000 हवाई जहाज रहते हैं जिनको रेगुलेटिंग संस्थाएं अपने समन्वय से उड़वाती रहती हैं।
अंतरिक्ष में धरती के आसपास न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम से वस्तुएं चलती हैं और ग्रहों के बीच केप्लर के नियमों से। हम अंतरिक्ष में 3 हाईवे मान सकते हैं। पहला, जो कि धरती के करीब है 400-500 किलोमीटर की श्रेणी में। दूसरा, जो 20,000 किलोमीटर की श्रेणी में। और तीसरा, जो 36,000 किलोमीटर की श्रेणी में, जो कि शायद विश्व की सबसे महंगी रियल एस्टेट है। वर्ष 1964 में पहला भूस्थिर ऑर्बिट उपग्रह सिंक्रॉन-3 स्थापित किया गया था जिसने जापान से लेकर अमेरिका तक गर्मी के ओलंपिक खेलों का प्रसारण किया था। अंतरिक्ष संसाधनों में फ्रीक्वेंसी निर्धारण और ऑर्बिटल स्लॉट बहुत महत्वपूर्ण हैं। रेडियो स्पेक्ट्रम के नाम के प्राकृतिक संसाधन को सब जानते हैं- 2g, 3g, 4g, 5g और 6g।
रिलायंस जियो 4g पर चल रहा है, नोकिआ 5g को व्यावसायिक कर रहा है और 6g अनुसंधान और विकास की गुप्त अवस्था में है। दूसरा प्राकृतिक संसाधन ऑर्बिटल स्लॉट है जिसमें भारत के पास भी कुछ स्लॉट हैं, जो कि कोलोकेशन के साथ हमारे वर्तमान भविष्य के लिए काफी हैं। भू स्थिर ऑर्बिट का ऑर्बिटल स्लॉट के नाम का प्राकृतिक संसाधन आजकल ऑक्शन भी होता है और शायद उसकी लीजिंग और रेटिंग भी होती है। भूस्थिर ऑर्बिट की इस व्यवस्था के बाद धरती के बिलकुल करीब के ऑर्बिट की आजकल मांग बहुत बढ़ गई है।
मेगाकॉन्स्टेलशन, क्यूबसैट, नैनोसेट और ए-सेट के साथ स्पेस जंक छोटे होते जा रहे हैं और सभी अंतरिक्ष क्षमता वाले देशों की संस्थाएं प्राइवेट लोगों को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं, चाहे वो नासा हो या इसरो। और जैसे ही मांग बढ़ेगी, वैसे ही नीति और राजनीति बढ़ेगी।
अंतरिक्ष में जबसे स्पूतनिक उपग्रह की पहली लांच 1957 से हुई है तब से अब 2022 तक 6,200 रॉकेट सफलतापूर्वक लांच किए जा चुके हैं। इन रॉकेटों के 12,980 उपग्रह अंतरिक्ष किए हैं। उनमें से 8,300 अभी अंतरिक्ष में ही हैं और 5400 अभी तक काम कर रहे हैं, लेकिन जो वह 2,900 उपग्रह काम नहीं कर रहे हैं, उनका क्या हुआ?
अब अंतरिक्ष में रोड तो है नहीं, न ही उपग्रह में ड्राइवर है, न ही ट्रैफिक सिग्नल्स हैं और न ही ट्रैफिक पुलिस के अधिकारी/कर्मचारी हैं, जो उपग्रहों की भीड़ का प्रबंधन करें। ऐसे में एक्सीडेंट तो होना तय है। कुछ एक्सीडेंट हो चुके हैं, जैसे कि 2009 का इरीडियम और कॉस्मॉस 2251 की टक्कर। यह जो ऑर्बिटल स्लॉट नाम के ऑर्बिटल रोड हैं, उनके ट्रैफिक को भांपने के लिए, उनके ट्रैफिक की सूचना लेने के सेंसर्स या उनके ट्रैफिक के एक्सीडेंट को रोकने के लिए देने जाने वाली सूचना का बहुत व्यवसायीकरण हुआ है। हमारे बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों की और हमारे तेजस्वी स्टार्टअप फॉउंडरों की व्यावसायिक जिम्मेदारी बनती है कि इस व्यवसायीकरण में अपनी क्षमता का परिचय दें।
इस अंतरिक्ष के कचरे की लगभग सारी वस्तुएं ट्रैक हो रही हैं। अंतरिक्ष संचालकों को इस पूर्व चेतावनी प्रणाली की बहुत ज्यादा आवश्यकता है जिसकी तकनीकी गुप्त रखी जाती है। अगर अंतरिक्ष का व्यवसायीकरण हो रहा है तो इस पूर्व चेतावनी प्रणाली का भी व्यवसायीकरण हो रहा है। जब इसरो इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है तो हमारे आईआईटी और इंजीनियरिंग कॉलेजों को भी इसमें व्यावसायिक भूमिका निभानी चाहिए। भारत की वर्तमान ट्रिलियन डॉलर भी आकांक्षात्मक राजनीति में अंतरिक्ष व्यवसायीकरण के द्वारा हमारे व्यवसायियों को भी उत्तरदायी तरीके से उतरना चाहिए।
भारत सरकार स्टार्टअप के लिए बहुत गंभीर है और अंतरिक्ष व्यवसायीकरण का यह क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें अंतरिक्ष की उन चीजों की सूचना ही अपने आप में संपत्ति है। चाहे वह सूचना की संपत्ति केप्लर के नियम लगाके बनाई जाए या फिर वह संपत्ति अपने गणितीय मॉडल को सुपर कम्प्यूटर पर सिमुलेट करके बनाई जाए या फिर वह संपत्ति अंतरिक्ष की रीयल टाइम सूचना से अपने गणितीय मॉडल को सम्पुष्ट करके बनाई जाए। अंतरिक्ष के क्षेत्र में हार्डवेयर बनाना बहुत कठिन और महंगा कार्य है, क्यूंकि सच्ची टेक्नोलॉजी वही है, जो गुप्त है। जैसे ही वह सभी के सम्मुख आती है, वह कमोडिटी बन जाती है।
विकसित कंपनियां या विकसित देश हमें कभी अपनी वर्तमान के समय की सच्ची टेक्नोलॉजी नहीं देगा, क्यूंकि ऐसा करके उसका भाव कम हो जाएगा। वो विभिन्न तरह के पेटेंट या ट्रेड सीक्रेट से सुरक्षित है। यह माना जा सकता है कि सूचना टेक्नोलॉजी के हार्डवेयर का विकास करना कठिन कार्य है लेकिन अन्वेषण करके गुप्त सूचना तो निकाली ही जा सकती है। आधी-अधूरी सूचना तो हमारी संपत्ति है और उसको प्रोसेस करके हम कुछ-न-कुछ तो अल्गोरिथम बना सकते हैं। गूगल की तरह पेज रैंकिंग एवं इंडेक्सिंग अल्गोरिथम भले ही न बन पाए लेकिन अन्वेषण करना तो हमारी जिम्मेदारी है।
इसरो अपना कार्य कर रहा है, लेकिन हमारे इंजीनियरिंग कॉलेजों को भी अंतरिक्ष के कचरे के लिए स्मार्ट अल्गोरिथम बनाने की जरूरत है। आज धरती दिवस पर हम सभी को यह प्रण लेना होगा कि हम अंतरिक्ष के इस कचरे के लिए कुछ अल्गोरिथम्स का विकास करें और चाहे वो स्टार्टअप से हो या फिर इंजीनियरिंग कॉलेजों से। हमें पद्मविभूषण माननीय डॉ. विक्रम साराभाई के शब्द नहीं भूलना चाहिए कि 'मनुष्य और समाज की वास्तविक समस्याओं के लिए उन्नत तकनीकों के अनुप्रयोग में हमें किसी से पीछे नहीं होना चाहिए।' (लेखक भारतीय राजस्व सेवा में अतिरिक्त आयकर आयुक्त के पद पर वाराणसी में नियुक्त हैं और मूलत: बुंदेलखंड के छतरपुर जिले के निवासी हैं। इन्होंने लगभग 8 वर्ष इसरो में वैज्ञानिक के तौर पर प्रमुखतया उपग्रह केंद्र बेंगलुरु में कार्य किया जिसमें अहमदाबाद, त्रिवेंद्रम, तिरुपति जिले की श्रीहरिकोटा एवं इसराइल के वैज्ञानिकों के साथ भी कार्य किया।)