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नई स्वास्थ्य नीति का स्वागत कीजिए

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अवधेश कुमार

नरेंद्र मोदी सरकार की नई स्वास्थ्य नीति का पहली नजर में स्वागत किया जाना चाहिए। हालांकि इस स्वास्थ्य नीति में कई ऐसी बातें हैं जिनमें ज्यादा स्पष्टता जरुरी है, लेकिन इस नीति में सरकार की यह आत्मस्वीकृति कि लोगों को मुफ्त उचित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करना तथा लोग बीमार न पड़ें, ऐसा वातावरण बनाना सरकार की जिम्मेदारी है। 

स्वास्थ्य किसी भी देश की प्राथमिकता में होनी चाहिए। जिस देश के लोग जितने स्वस्थ होंगे वह देश उतना ही सक्षम होगा। एक रोगमुक्त और स्वस्थ देश ही दुनिया के साथ प्रतिस्पर्धा कर आगे निकल सकता है। बीमार और रोगियों से भरी आबादी वाला देश कहां से प्रतिस्पर्धा कर सकता है। दुर्भाग्य से भारत में स्वास्थ्य कभी प्राथमिकता में नहीं रहा। स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने संसद में नई स्वास्थ्य नीति का मसौदा रखते वक्त जो वक्तव्य दिया तथा मसौदे में जितने विन्दु डाले गए हैं उनकी ध्वनि यही है कि भारत ने स्वास्थ्य को प्राथमिकता में लेने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। यह एप्रोच महत्वपूर्ण है और शेष पहलू बाद में आते हैं। हालांकि हमारे यहां स्वास्थ्य राज्यों का विषय है और केंद्र कोई नीति बनाती है तो उसे लागू करने की अनिवार्यता राज्यों की नहीं होती। इस नीति में यह साफ किया गया है कि राज्यों को इसे स्वीकार करने के लिए विवश नहीं किया जाएगा। उन्हें एक मॉडल के रुप में इसे दिया जाएगा और यह उन पर निर्भर है कि इसे लागू करें या नहीं।
 
किंतु एक बार राष्ट्रीय स्तर पर कोई नीति बने और उसे सरकार क्रियान्वित करने लगे, तो आलसी और पलायनवादी राज्यों के पास भी इसे या इसी तरह की नीतियां अपनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। वास्तव में भारत को एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की बड़ी आवश्यकता थी। इसके पूर्व 2002 में एक स्वास्थ्य नीति आई थी। यानी यह नीति 15 वर्षों बाद आई है। इसे मंत्रिमंडल द्वारा हरि झंडी मिलने के पहले सार्वजनिक कर लोगों का सुझाव मांगा गया था। जे. पी. नड्डा की मानें तो जितने सुझाव आए उन सबका अध्ययन कर जितना संभव हुआ, इसमें समाहित करने की कोशिश की गई है। इस तरह यह एक प्रकार से राष्ट्रीय सहमति से तैयार नीति है। हालांकि नीति में स्वास्थ्य को सूचना अथवा भोजन के अधिकार की तरह अधिकार बनाने को लेकर चर्चा नहीं है और इससे उन लोगों को निराशा हो सकती है जो इसे मौलिक अधिकार बनाने की मांग कर रहे थे। लेकिन प्रस्ताव में स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करने का प्रावधान है और यह उसके निकट जाता है। 
 
इस नीति का उद्देश्य सभी लोगों विशेषकर अल्पसेवित और उपेक्षित लोगों को सुनिश्चित स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराना है और यह सिद्धांत बिल्कुल उचित है।  इसमें देशभर के सरकारी अस्पतालों में दवाइयां और रोंगों की जांच के सभी साधन की उपलब्धता सुनिश्चित करने की बात है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में डिजिटलाइजेशन पर भी जोर दिया जाएगा। हमने देखा है कि जिन अस्पतालों का डिजिटलाइजेशन हुआ है वहां मरीजों के लिए डॉक्टर से समय लेना पहले से ज्यादा आसान हो गया है। सरकार पहले से ही इस नीति पर काम कर रही है तथा अनेक अस्पताल डिजिटलाइजेशन के दायरे में आ रहे हैं। डिजिटलाइजेशन का मतलब है ऐसी स्थिति जिसमें मरीज जहां चाहे अपने जांच व इलाज का पूरा विवरण कम्प्युटर या मोबाइल पर ऑन लाइन देख सके। 
 
नई स्वास्थ्य नीति के तहत कहा गया है कि हर किसी को सरकारी इलाज की सुविधा मिलेगी और मरीज को इलाज के लिए मना नहीं किया जा सकेगा। नीति में मरीजों के लिए बीमा का प्रावधान है। अब मरीजों को विशेषज्ञों से इलाज के लिए सरकारी या निजी अस्पताल में जाने की छूट होगी। स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत निजी अस्पतालों को ऐसे इलाज के लिए तय रकम दी जाएगी। यानी नए अस्पताल बनाने में लगने वाले धन को सीधे इलाज पर खर्च किया जा सकेगा। ध्यान रखिए, इस समय देश में 80 प्रतिशत मरीज इलाज के लिए निजी डॉक्टरों के पास जाते हैं तथा करीब 60 प्रतिशत निजी अस्पताल में ही भर्ती होते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि निजी क्षेत्र भारत में स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने में सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों से काफी आगे हैं।
 
सरकार का मानना है कि इसे पूरी तरह सरकारी क्षेत्र में ले आने की कल्पना अव्यवहारिक होगा। साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं की जितनी आवश्यकताएं हैं उतना सरकारी ढांचा खड़ा करना भी संभव नहीं है। इसलिए व्यावहारिक विकल्प यही है कि निजी क्षेत्र को भी सरकारी सेवा में शामिल किया जाए एवं उनका भुगतान किया जाए। इस पहलू की भी वे लोग आलोचना कर रहे हैं, जो निजी क्षेत्र के विरोधी हैं। लेकिन कम से कम निजी डॉक्टरों या अस्पतालों में जाने वाले लोगों की जेब पर इसका असर कम होगा और इस नाते यह अच्छा कदम है। जैसा हमने उपर कहा सरकार की योजना बीमा राशि से भुगतान कराने को लेकर है। देखना होगा यह कितना सफल होता है, क्योंकि इसके तहत सभी व्यक्तियों का स्वास्थ्य बीमा कराना होगा। 
 
अगर गहराई से देखें तो यह स्वास्थ्य क्षेत्र में आमूल नहीं तो व्यापक बदलाव की नीति अवश्य है। पहला, इस नीति के तहत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) का दायरा बढ़ा दिया गया है। अभी तक पीएचसी के तहत प्रतिरक्षण, जन्म से पूर्व की जांच और कुछ अन्य जांच ही शामिल थीं। नई नीति के अंतर्गत इसमें इसके अलावा अनेक रोगों की जांच शामिल किया गया है जो गैर संचारी है। वास्तव में एक बड़े नीतिगत परितर्वन के तहत यह नीति प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का स्तर एवं दायरे में आने वाले क्षेत्रों के फलक को बढ़ाती है और एक विस्तृत फलक सामने रखती है। दूसरे, इसमें जिला अस्पतालों के उन्नयन पर ज्यादा ध्यान देने की बात है। इसमें जिला अस्पताल और इससे ऊपर के अस्पतालों को सरकारी नियंत्रण से अलग करके पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) यानी निजी सार्वजनिक भागीदारी से चलाया जाएगा। इस तरह सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में निजी क्षेत्र के प्रवेश की नीति को नीचे तक ले जाने का कदम सरकार उठाने जा रही है। इसका परिणाम क्या होगा यह आने वाले समय में पता चलेगा। किंतु सरकार ने इस समय स्वास्थ्य संरचना को देखते हुए यह निर्णय लिया है। 
 
यह काफी विस्तृत नीति है जिसको देखने से ऐसा लगता है इसमें स्वास्थ्य से जुड़े ज्यादातर या कुछ मायनों में सारे पहलुओं को शामिल किया गया है। नड्डा ने संसद में इसे पस्तुत करत समय कहा कि यह नीति बदलते सामाजिक-आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और महामारी-विज्ञान परिदृश्य में मौजूदा और उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए अस्तित्व में लाया गया है। वास्तव में थोड़े शब्दों में कहना हो तो नीति में स्वास्थ्य के सभी आयामों - स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश, स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का प्रबंधन और वित्त-पोषण, विभिन्न क्षेत्रीय कार्रवाई के जरिए रोगों की रोकथाम और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, चिकित्सा प्रौद्योगिकियां उपलब्ध कराने, मानव संसाधन का विकास,चिकित्सा बहुलवाद को प्रोत्साहित करने, बेहतर स्वास्थ्य के लिए अपेक्षित ज्ञान आधार बनाने, वित्तीय सुरक्षा कार्यनीतियां बनाने तथा स्वास्थ्य के विनियमन और  स्वास्थ्य प्रणालियों को आकार देने में सरकार की भूमिका और प्राथमिकताओं को अपने में समेटे हुए है। 
 
अगर यह स्वास्थ्य नीति पूरी तरह अमल में आ गया तो हमारे यहां स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च सकल राष्ट्रीय उत्पाद का 2.5 प्रतिशत हो जाएगा। अभी यह 1.04 प्रतिशत है। तो खर्च के मामले में यह लंबी छलांग होगी। इसमें अनेक बीमारियों के उन्मूलन की समय सीमा तय की गई है। उदाहरण के लिए 2018 तक कुष्ठ रोग, 2017 तक कालाजार तथा 2017 तक लिम्फेटिक फिलारिएसिस का उन्मूलन करना तथा इस स्थिति को स्थायी रुप से बनाए रखना शामिल है। इसी तरह इसमें टीबी यानी क्षयरोग के रोगियों में 85 प्रतिशत से अधिक की इलाज दर को प्राप्त करना और उसे बनाए रखना तथा नए मामलों की व्याप्तता में कमी लाना ताकि 2025 तक इसके उन्मूलन की स्थिति प्राप्त करने की बात की गई है। यही नहीं 2025 तक दृष्टिहीनता की व्याप्तता को घटाकर 25/1000 करना तथा रोगियों की संख्या को वर्तमान स्तर से घटाकर एक-तिहाई करना भी इसमें शामिल है। इसके अनुसार हृदवाहिका रोग, कैंसर, मधुमेह या सांस के पुराने रोगों से होने वाली अकाल मृत्यु को 2025 तक घटाकर 25 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य निर्धारित है। साथ ही 2025 तक पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में मृत्यु दर को कम करके 23, नवजात शिशु मृत्यु दर को घटाकर 16 तथा मृत जन्म लेने वाले बच्चों की दर को 2025 तक घटाकर एक अंक में लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 
 
इस तरह कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि नई स्वास्थ्य नीति एक समग्र नीति है। उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार इस नीति को पूरी तरह अमल में लाएगी तथा इसकी प्रस्तावना के अनुरुप उस वर्ग को इसका संपूर्ण लाभ मिलेगा जिनके लिए आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंचना संभव नहीं है।

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