अगर आप किसी इमारत को मजबूत करना चाहते हैं तो इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले उसकी नींव को मजबूत किया जाए। नींव को मजबूत किए बिना एक मजबूत इमारत का निर्माण संभव नहीं है।
ऐसे ही किसी भी देश के विकास और उत्थान के लिए वहां की नींव उनके बच्चे हैं, जिनके सर्वांगीण विकास के बिना राष्ट्र निर्माण की इबारत लिखना असंभव है।
अगर हमारी वर्तमान पीढ़ी उनके विकास में गतिरोध पैदा करने वाली सामाजिक बुराइयों जैसे गरीबी और असमानता को हराने में नाकाम रहती है, तो हम अपने बच्चों को एक ऐसे रास्ते की ओर धकेल रहे हैं जो अंधकारमय है। इनसे ही बाल श्रम जैसी सामाजिक बुराई जन्म लेती है। कोरोनाकाल में बाल श्रम से जुड़े जो आंकड़े सामने आए हैं वो चिंताजनक हैं।
आईएलओ और यूनिसेफ की एक रिपोर्ट बताती है कि दुनियाभर में अब बाल श्रमिकों की संख्या 16 करोड़ को पार कर गई है। यहां एक बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि जब दुनियाभर में वैश्विक महामारी में हर 17 घंटे में एक नया अरबपति बनाने के लिए पर्याप्त पैसा है तो 74 प्रतिशत बच्चे अभी भी किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा से दूर क्यों हैं?
सामाजिक सुरक्षा एक मानव अधिकार है। हरेक बच्चे को जन्म से ही सामाजिक सुरक्षा नीतियों और कार्यक्रमों के दायरे में आने का अधिकार है। अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन वर्ष में यह एक ऐतिहासिक अवसर है कि विश्व के नेता महामारी को ध्यान में रखते हुए हर जगह सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को सुनिश्चित करने के लिए सहमत हों।
विशेष रूप से बच्चों और युवाओं की सुरक्षा के लिए। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि दुनिया के सबसे गरीब देश और समुदाय कोविड-19 के कारण अभूतपूर्व गरीबी और असमानता का सामना कर रहे हैं और बच्चे इसके इससे सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
सामाजिक सुरक्षा नीतियों और कार्यक्रमों का एक संयोजन है, जिसका उद्देश्य गरीबी को कम करना और रोकना है। यह नकद हस्तांतरण, जैसे बच्चों को लाभ और अनुदान,स्कूल फीडिंग प्रोग्राम और सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच (जैसे स्वास्थ्य बीमा) के लाभ के रूप में हो सकता है। किसी भी देश में इसे सामाजिक सुरक्षा,पारिवारिक ऋण,सामाजिक लाभ या कल्याण के रूप में सम्बोधित किया जा सकता है।
सामाजिक सुरक्षा एक ऐसा शब्द है जो बहुत सारी नीतियों को शामिल करता है लेकिन दुनिया के सबसे अमीर देशों के कई लोग इसके महत्त्व को नहीं समझते हैं।
उदाहरण के लिए, यदि आपके देश में मजदूरी के लिए न्यूनतम दर तय है, तो यह सामाजिक सुरक्षा है। यदि आप अस्वस्थ हैं या काम करने में सक्षम नहीं हैं और आपको भत्ता मिले तो यह सामाजिक सुरक्षा है। अगर आप बेरोजगार हों और सरकार से आपको कोई पैसा मिलता है, तो वह सामाजिक सुरक्षा है। इसीलिए यदि विश्व के नेता मजबूत सामाजिक सुरक्षा प्रणाली और वैश्विक प्रतिबद्धता को प्राथमिकता दें, तो सामाजिक सुरक्षा बाल अधिकारों की दुर्गति को रोक और उलट सकती है।
एक चौंकाने वाला आंकड़ा बताता है कि वर्ष 2015-2019 के बीच, वैश्विक संपत्ति में 10 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का इजाफा हुआ, लेकिन वहीं दूसरी ओर प्रत्येक दिन 5-11 आयु वर्ग के 10 हजार बच्चे बाल श्रम करने के लिए मजबूर किए जा रहे हैं।
सामाजिक सुरक्षा उन सभी के लिए उपलब्ध होनी चाहिए, जिन्हें इसकी आवश्यकता है, लेकिन विशेष रूप से सबसे कमजोर, हाशिए पर या सामाजिक रूप से बहिष्कृत समुदाय के लिए यह बेहद जरूरी है। जब परिवारों के पास उनकी बुनियादी जरूरतों (जैसे भोजन और स्वास्थ्य देखभाल) के लिए कोई सहारा नहीं होता और उनकी आय बहुत कम होती है, तब बच्चों को बाल श्रम के लिए मजबूर किया जाता है। इस सामाजिक विषमता और अन्याय को रोकने के लिए परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा साबित हो सकती है।
बात भारत की करें तो बच्चों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ने कुछ कदम जरूर उठाए हैं, जिनमें शिक्षा का अधिकार अत्यंत महत्वपूर्ण है जो 6 से 14 साल की उम्र के हरेक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है। राज्य और केंद्र दोनों स्तर पर बच्चों से संबंधित कई योजनाओं को लागू किया गया है। लेकिन अगर हम वाकई अपने बच्चों को सही मायने में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना चाहते हैं तो उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त करना पड़ेगा।
ऐसे परिवारों को चिन्हित करना होगा जो अपनी आजीविका चलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करने होंगे। अगर बच्चों के अभिभावकों के पास उचित रोजगार होगा तो वे अपने बच्चों को कभी भी बाल-श्रम के दलदल में नहीं धकेलेंगे। फिर भी सामाजिक सुरक्षा के लिए बच्चों के खातों मे डाइरेक्ट कैश ट्रान्सफर एक उपयोगी कदम साबित हो सकता है। माता-पिता को इसके लिए बाध्य किया जाना चाहिए कि यह पैसा बच्चों के प्रगति कार्य में खर्च किया जाए।
ब्राज़ील में डाइरेक्ट कैश ट्रान्सफर से क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। ब्राज़ील की सशर्त नकद हस्तांतरण योजना, बोल्सा फ़मिलिया, ने 2003 से 3 करोड़ 60 लाख लोगों को अत्यधिक गरीबी से उबारने में मदद की है। बोल्सा फ़मिलिया के माध्यम से, देश के सबसे गरीब परिवारों को इस शर्त पर 22 डालर का मासिक नकद दिया जाता है ताकि उनके बच्चे स्कूल जाएं और नियमित स्वास्थ्य जांच कराएं।
ऐसे ही भारत के उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बाल श्रमिक विद्या योजना 2021 के तहत राज्य सरकार लड़कों को 1000 रुपये और लड़कियों को 1200 रुपये महीने की आर्थिक सहायता प्रदान करती है। इस योजना का उद्देश्य श्रमिकों के बच्चों को बाल श्रमिक बनने से रोकना है। सरकार उन्हें मासिक वित्तीय सहायता प्रदान करती है जिससे बच्चे अपना सारा ध्यान शिक्षा पर केन्द्रित कर पाएं।
इस तरह से अगर पूरी दुनिया में सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाता है तो कोई कारण नहीं कि बाल श्रम और शोषण को नहीं रोका जाए। सामाजिक सुरक्षा हरेक बच्चे और कमजोर लोगों का प्राकृतिक अधिकार भी होना चाहिए।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)