Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

लाइट, कैमरा, एक्शन और 'एक चीख' : ये है बॉम्बे मेरी जान

हमें फॉलो करें लाइट, कैमरा, एक्शन और 'एक चीख' : ये है बॉम्बे मेरी जान
webdunia

स्मृति आदित्य

बॉलीवुड में फिल्में तो बन रही हैं, वेब सीरिज, थियेटर, नाटक, ड्रामा,तमाशे सब चल रहे हैं लेकिन पूरा देश इस समय सिर्फ एक ही फिल्म देख रहा है, फिल्म जो खतरनाक है, फिल्म जो डरावनी है, फिल्म जो हर दिन एक नए रहस्य के साथ जल्दी जल्दी मोड़ ले रही है। सस्पेंस, थ्रिल, मर्डर, ड्रग, ब्यूटी, रोमांस, जेल, जासूसी, ट्रैंफिकिंग... सब के सब मसाले हैं यहां.... लेकिन रूकिए, थोड़ा सम्भलिए, समझिए और फिर आगे बढ़िए... 
 
ये जो खूबसूरत शहर है, ये जो सुगंधित नगर है, ये जो ग्लैमर से चौंधियाती सिटी है...और इसकी ये जो फिल्म हम देख रहे हैं.... इसका काला सच धारावी जैसी कई-कई झुग्गी बस्तियों से शुरु होता है। 
 
बॉलीवुड के आलीशान गलीचे के नीचे इन्हीं बस्तियों के लाखों काले-मैले-कुचेले बच्चे (यह शब्द लिखने के लिए क्षमा चाहती हूं) कीड़े-मकोड़ों की तरह बिलबिला रहे हैं, छटपटा रहे हैं...यह घिनौना सच कोई जानना और सुनना नहीं चाहता है। 
 
आत्महत्या, हत्या, नेपोटिज्म, मनी लॉन्ड्रिंग, करोड़ों के घोटाले, छल, छद्म, धोखे, राजनीति, जिस्म और ड्रग से होती हुई ये सूई अब चाइल्ड ट्रैफिंकिंग पर जा कर थम रही है।
 
 'फिल्म' के इस हिस्से पर हमें भी कुछ देर रूकना होगा और समझना होगा कि दरिंदगी की किस हद तक ये चिकने-चमकदार चेहरे पंहुच चुके हैं और अब पतन की सीमारेखा समाप्त प्राय है... कच्चे और कोमल बच्चों के बचपन को लूटने, खसोटने, नोंचने और रौंदने के बाद अब क्या बचा है....‍जिसके आगे बात की जाए.... 
 
बॉलीवुड का हिस्सा रहे युवा साथियों, पत्रकारों की बात पर भरोसा करें या न करें.. पर जब उनके मुंह से सच की बयानी सामने आती है तो खून जम जाता है...सांस रूक जाती है, इंसान होने पर शर्म आने लगती है... चंद वाक्य जो बातचीत से सामने आए उनका छोटा सा नमूना काफी है.... 
 
''बहुत छोटे-छोटे बच्चे नशे की गर्त में धकेले जाते हैं, उनका ना जाने कितने गंदे तरीकों से यूज किया जाता है। यहां तक कि उनकी त्वचा तक का सौदा होता है, बाद में जब ये किसी काम के नहीं रहते तब इन्हें बेगर इंडस्ट्री(?) की तरफ धकेल दिया जाता है, चौराहे पर छोड़ दिया जाता है...हाथ-पैर काट कर... कोलकाता की सोनागाछी से लेकर नालासोपारा तक इतनी गंदगी बह रही है कि सुनकर ही उबकाई आ जाएगी... '' 
  
''हम लोग सोच सकते हैं कि वो बच्‍चे कैसे महंगा नशा कर सकते हैं जिनके पास खाने को भी पैसा नहीं होता। पर नशे के लिए सिर्फ मादक पदार्थों की ही जरुरत नहीं होती, व्‍हाइटनर, नेल पॉलिश, पेट्रोल की गंध, ब्रेड के साथ विक्स और झंडु बाम का सेवन जैसे नशे भी किए जाते हैं, जो अत्यंत घातक होते हैं।'' 
 
''हां, लाखों गरीब बच्चों को नशे का शिकार बना कर उनके जिस्म, उनकी त्वचा, उनके अंग, उनके बचपन का शर्मनाक सौदा किया जा रहा है। ये सब कुछ इतना विभत्स और डरावना है कि आप आंख मुंद लेते हैं और अपनी खोह में वापिस लौट जाते हैं क्योंकि आपकी हिम्मत नहीं है इनके भीतर जाने की, इन्हें टटोलने की, इनका सामना करने की...इनसे आंखें मिलाने की...  
 
यहां लाइट, कैमरा, एक्शन नहीं है, यहां स्क्रिप्ट, डायलॉग, म्यूजिक, लिरिक्स और भव्य सेट नहीं है.... यहां ‍चीत्कार है, चीखें हैं, आंसू हैं, रूदन है, विलाप है, गरीबी है, भूख है, लाचारी है, यौन शोषण है, अपहरण की अंतहीन दास्तां है...सिर्फ 1 माह के लॉकडाउन में लगभग 26 सौ बच्चे अकेले मुंबई से लापता हुए हैं, कहां गए वो, किस हाल में हैं, कोई नहीं जानता... जानना चाहता भी नहीं क्योंकि ये उन 'काले-मैले-कुचैले' बच्चों का मामला है जिन्हें देखकर हम कार के शीशे चढ़ा लेते हैं.... 
 
लेकिन अब आपको सोचना इसलिए है कि बच्चों को लूटने की ये हवस अब इन मटमैले बच्चों से नहीं मिट रही है अब लाए और उठाए जा रहे हैं छोटे शहर और गांव के मध्यमवर्ग से लेकर संभ्रांत परिवारों के सुकोमल बच्चे...वे बच्चे जिन्हें छुने में और जिनका मुंह दबाने में इन चमकते लोगों के हाथ गंदे न हो... 
 
उफ, ये है बॉम्बे मेरी जान... और सिर्फ बॉम्बे नहीं ये गंदे गटर का पानी छोटे शहर के छोटे इलाकों तक बहकर आ चुका है....जया मैडम, जया आंटी, जया महोदया, आपने अपने संसद में पढ़े भाषण में यह आंकड़ा तो पढ़ दिया कि कितने लोगों को बॉलीवुड प्रतिदिन रोजगार देता है,आपदा में कितनी मदद करता है, कितना टैक्स चुकाता है लेकिन क्या आप अपनी टीम से इन अपहरण किए गए बच्चों को लेकर कोई आंकड़ा तलाश करवा सकती हैं????
 
बहरहाल इस फिल्म की शुरूआत सुशांत और दिशा के अंत से अवश्य हुई है लेकिन इसका The End समाज के पर्दे पर कैसा होगा ये अब हम जनता तय करेंगी...कानून की अदालत और भगवान की अदालत के साथ इस बार जनता की अदालत में भी इस मेगा फिल्म का मुकदमा चल रहा है...
 
फैसला चाहे जो हो पर दुनिया में हर वर्ग, हर जाति, हर रंग, हर रूप के और हर मां के बच्चे जिंदा रहें... आज अपने बच्चों के सिर पर हाथ रखकर नशे में लिप्त शोषित उन बच्चों के हक में दुआ कीजिए.... 


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Benefit Of Multigrain : मल्टीग्रेन आटे में छिपा है सेहत का खजाना घर पर करें तैयार