महाभारत युद्ध जीतने के बाद युधिष्ठिर के समक्ष वेश बदलकर प्रकट हुआ एक राक्षस

अनिरुद्ध जोशी
पांडवों ने महाभारत का युद्ध जीत लिया था लेकिन यह जीत उनको उतनी खुशी नहीं दे पाई, क्योंकि इस युद्ध में द्रौपदी सहित उनकी अन्य पत्नियों के पुत्र भी मारे गए थे। बचा था तो बस अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का एक पुत्र परीक्षित। युधिष्ठिर ने एक ओर जहां युद्धभूमि पर ही वीरगति को प्राप्त योद्धाओं का दाह-संस्कार किया वहीं उन्होंने दोनों ही पक्षों के अपने परिजनों का अंत्येष्टि कर्म करने के बाद उनका श्राद्ध-तर्पण आदि का कर्म भी किया। इसके बाद युधिष्ठिर का राज्यभिषेका जब होने वाला था तो वहां पर एक राक्षस वेश बदलकर पहुंचा।
 
 
कहते हैं कि युद्ध में जीतने के बाद पांडवों ने ऋषि-मुनियों की बात मानकर हस्तिनापुर में प्रवेश किया। जिस समय युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हो रहा था, उसी समय चार्वाक नाम का एक राक्षस ब्राह्मण के वेश में आया और युधिष्ठिर से कहने लगा कि तुमने अपने बंधु-बांधवों की हत्या कर यह राज्य प्राप्त किया है इसलिए तुम पापी हो। ब्राह्मण के मुंह से ऐसी बात सुनकर युधिष्ठिर बहुत डर गए। ये देखकर दूसरे ब्राह्मणों ने युधिष्ठिर से कहा कि हम तो आपको आशीर्वाद देने आए हैं। यह ब्राह्मण हमारे साथ नहीं है।
 
महात्माओं ने अपनी दिव्य दृष्टि से उस ब्राह्मण का रूप धरे राक्षस को पहचान लिया और कहा कि यह तो दुर्योधन का मित्र राक्षस चार्वाक है। ये यहां पर शुभ कार्य में बाधा डालने के उद्देश्य से आया है। इतना कहकर उन महात्माओं ने अपनी दिव्य दृष्टि से उस राक्षस को भस्म कर दिया। यह देख युधिष्ठिर ने उन सभी महात्माओं की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया।
 
इसके बाद ऋषि-मुनियों की उपस्थिति में युधिष्ठिर का राज्याभिषेक विधि-विधान से हुआ। सभा में सुंदर सिंहासनों पर श्रीकृष्ण, सुधर्मा, विदुर, धौम्य, धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती, द्रौपदी, युयुत्सु, संजय, नकुल, सहदेव, भीम और अर्जुन आदि सभी विराजमान थे। महाराज युधिष्ठिर ने अपने बड़े से सुंदर मणियों जड़ित सिंहासन पर बैठकर श्वेत पुष्प, अक्षत, भूमि, सुवर्ण, रजत और मणियों को स्पर्श किया।
 
इसके बाद विधि-विधानपूर्वक उनका राज्याभिषेक हुआ। इस दौरान उन्होंने प्रजाओं द्वारा भेंट स्वीकार की और उन्होंने ब्राह्मणों से स्वस्ति वाचन कराकर दक्षिणा में उन्हें हजारों मुद्राएं दीं। फिर युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र को पिता मानकर उनकी प्रशंसा की। इसके बाद युधिष्ठिर ने अन्य लोगों को उनके सामर्थ्य के अनुसार अलग-अलग कार्य सौंप दिए।
 
राज्याभिषेक होने के बाद युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को अलग-अलग कार्य सौंपे। अर्जुन को शत्रु के देश पर चढ़ाई करने तथा दुष्टों को दंड देने का काम सौंपा, तो भीम को युवराज के पद पर नियुक्त किया। नकुल को सेना की गणना करने व उसे भोजन और वेतन देने का काम सौंपा तो सहदेव को युधिष्ठिर ने अपने साथ रखा, क्योंकि सहदेव त्रिकालज्ञ थे। उनको सब समय राजा की रक्षा का कार्य सौंपा गया।
 
दूसरी ओर उन्होंने महान नितिज्ञ विदुरजी को राजकाज संबंधी सलाह देने का निश्चय करने तथा संधि, विग्रह, प्रस्थान, स्थिति, आश्रय और द्वैधीभाव- इन 6 बातों का निर्णय लेने का अधिकार दिया। क्या कार्य करना एवं क्या नहीं करना है? इसका विचार और आय-व्यय का निश्चय करने का कार्य उन्होंने संजय को सौंपा। ब्राह्मण और देवताओं के काम तथा पुरोहिती के दूसरे कामों पर महर्षि धौम्य को नियुक्त किया गया।
 
संदर्भ : महाभारत शांतिपर्व

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Shraddha Paksha 2024: पितृ पक्ष में यदि अनुचित जगह पर श्राद्ध कर्म किया तो उसका नहीं मिलेगा फल

गुजरात के 10 प्रमुख धार्मिक स्थलों पर जाना न भूलें

Sukra Gochar : शुक्र का तुला राशि में गोचर, 4 राशियों के जीवन में बढ़ जाएंगी सुख-सुविधाएं

Vastu Tips for Balcony: वास्तु के अनुसार कैसे सजाएं आप अपनी बालकनी

सितंबर 2024 : यह महीना क्या लाया है 12 राशियों के लिए, जानें Monthly Rashifal

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal: क्या लाया है आज का दिन आपके लिए, पढ़ें 21 सितंबर का दैनिक भविष्यफल

16 shradh paksha 2024: श्राद्ध पक्ष पितृपक्ष में महाभरणी का है खास महत्व, गया श्राद्ध का मिलता है फल

21 सितंबर 2024 : आपका जन्मदिन

21 सितंबर 2024, शनिवार के शुभ मुहूर्त

16 shradh paksha 2024: पितृ पक्ष का पांचवां दिन : जानिए चतुर्थी श्राद्ध तिथि पर क्या करें, क्या न करें

अगला लेख
More