Mahabharat: कर्ण के कवच कुंडल यहां छुपा कर रखे गए हैं, क्या यह सही है?

WD Feature Desk
मंगलवार, 23 जुलाई 2024 (15:07 IST)
The Mystery of Kavach Kundal: सूर्य पुत्र कर्ण के पास ऐसे कवच कुंडल थे कि यदि महाभारत के युद्ध में भी ये कवच कुंडल होते तो वह अजेय योद्धा होता और उसे तब कोई मार नहीं सकता था। यह कवच कुंडल उसे जन्म से ही सूर्यदेव से प्राप्त हुए थे। लेकिन एक युक्ति से उसके कवच कुंडलों को दान में मांग लिया गया और फिर उस कवच कुंडल को कहीं छुपा कर रख दिया गया। आखिर यह किस तरह हुआ और कहां छुपाकर रखा गया जानिए संपूर्ण कथा।ALSO READ: महाभारत के युद्ध में जब हनुमानजी को आया गुस्सा, कर्ण मरते-मरते बचा
 
भगवान कृष्ण यह भली-भांति जानते थे कि जब तक कर्ण के पास उसका कवच और कुंडल है, तब तक उसे कोई नहीं मार सकता। ऐसे में अर्जुन की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं। उधर, देवराज इन्द्र भी चिंतित थे, क्योंकि अर्जुन उनका पुत्र था। भगवान कृष्ण और देवराज इन्द्र दोनों जानते थे कि जब तक कर्ण के पास पैदाइश कवच और कुंडल है, वह युद्ध में अजेय रहेगा। 
 
दोनों ने मिलकर योजना बनाई और इंद्र एक विप्र के वेश में कर्ण के पास पहुंच गए और उनसे दान मांगने लगे। कर्ण ने कहा मांगों। विप्र बने इंद्र ने कहा, नहीं पहले आपको वचन देना होगा कि मैं जो मांगूगा आप वो दे देंगे। कर्ण ने तैश में आकर जल हाथ में लेकर कहा- हम प्रण करते हैं विप्रवर! अब तुरंत मांगिए। तब क्षद्म इन्द्र ने कहा- राजन! आपके शरीर के कवच और कुंडल हमें दान स्वरूप चाहिए।ALSO READ: दुर्योधन नहीं ये योद्धा था कर्ण का सबसे खास मित्र, दोनों ने कोहराम मचा दिया था महाभारत में
 
एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। कर्ण ने इन्द्र की आंखों में झांका और फिर दानवीर कर्ण ने बिना एक क्षण भी गंवाएं अपने कवच और कुंडल अपने शरीर से खंजर की सहायता से अलग किए और विप्रवर को सौंप दिए। इन्द्र ने तुंरत वहां से दौड़ ही लगा दी और दूर खड़े रथ पर सवार होकर स्वर्ग की ओर भागने लगे। लेकिन कुछ मील जाकर इन्द्र का रथ नीचे उतरकर भूमि में धंस गया। तभी आकाशवाणी हुई, 'देवराज इन्द्र, तुमने बड़ा पाप किया है। अपने पुत्र अर्जुन की जान बचाने के लिए तूने छलपूर्वक कर्ण की जान खतरे में डाल दी है। अब यह रथ यहीं धंसा रहेगा और तू भी यहीं धंस जाएगा। जब तक की इस छल की भरपाई नहीं करता है।
 
यह सुनकर इंद्र पुन: कर्ण के पास गए और वे कर्ण को कवच कुंडल देने लगे। कर्ण ने कहा कि दान में दी हुई चीज वापस नहीं लेता। तब इंद्र ने कहा कि तुमने अपनी सबसे बड़ी सुरक्षा को दिया है। इसलिए मैं तुम्हें कवच कुंडल के बदले एक अमोघ अस्त्र देता हूं जो तू किसी पर भी चलाएगा तो यह खाली नहीं जाएगा। उसकी मौत तय है। लेकिन तू इसका उपयोग एक बार ही कर सकता है दूसरी बार नहीं। कर्ण ने उसे ले लिया।ALSO READ: Mahabharat : विदुर ने भीष्म और श्रीकृष्‍ण ने कर्ण को ऐसा रहस्य बताया कि बदल गई महाभारत
 
इसके बाद इंद्रदेव उस कवच कुंडल को स्वर्ग नहीं ले जा पाए क्योंकि उन्होंने इसे झूठ से प्राप्त किया था। ऐसे में उन्होंने इस कवच कुंडल को किसी समुद्र के किनारे छुपा दिया। इंद्र को छुपाते हुए चंद्रदेव ने देख लिया। बाद में चंद्रदेव उस कवच कुंडल को निकालकर भागने लगे लेकिन समुद्र देव ने उन्हें रोक दिया और कहा कि यह मेरी सुरक्षा में है। तभी से वह कवच कुंडल समुद्र देव और सूर्यदेव की सुरक्षा में है।
 
कहा जाता है कि इस कवच और कुंडल को ओडिशा के पुरी के पास स्थित कोणार्क के समुद्र के पास कहीं छिपाया गया है। कोई भी यहां तक पहुंच नहीं सकता है क्योंकि अगर किसी ने इस कवच और कुंडल को ढूंढ लिया तो वह उसका गलत फायदा उठा सकता है।ALSO READ: कर्ण और अश्वत्‍थामा में से कौन था सबसे शक्तिशाली?

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Dev Diwali 2024: देव दिवाली पर यदि कर लिए ये 10 काम तो पूरा वर्ष रहेगा शुभ

Shani margi 2024: शनि के कुंभ राशि में मार्गी होने से किसे होगा फायदा और किसे नुकसान?

Tulsi vivah 2024: देवउठनी एकादशी पर तुलसी के साथ शालिग्राम का विवाह क्यों करते हैं?

Dev uthani ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 11 काम, वरना पछ्ताएंगे

शुक्र के धनु राशि में गोचर से 4 राशियों को होगा जबरदस्त फायदा

सभी देखें

धर्म संसार

Kartik Purnima 2024: कार्तिक पूर्णिमा के दिन करना चाहिए ये 9 अचूक उपाय, होगी धन की वर्षा

12 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

12 नवंबर 2024, मंगलवार के शुभ मुहूर्त

Dev uthani ekadashi 2024 date: देव उठनी एकादशी की पूजा के शुभ मुहूर्त, तुलसी विवाह की विधि मंत्रों सहित

शमी के वृक्ष की पूजा करने के हैं 7 चमत्कारी फायदे, जानकर चौंक जाएंगे

अगला लेख
More