उज्जैन। लोगों में अस्पताल के बिल का 'खौफ' कितना होता है, इसका उदाहरण उज्जैन में उस समय देखने को मिला जब माता-पिता 7 माह की मासूम को आईसीयू (ICU) में ही छोड़कर भाग गए। हालांकि बाद में पुलिस के मदद से बच्ची के माता-पिता को खोज लिया गया और बच्ची उन्हें सौंप दी गई।
दरअसल, 5 अक्टूबर को बच्ची को उज्जैन के सरकारी अस्पताल चरक भवन में भर्ती कराया गया था। बच्ची आईसीयू में भर्ती थी। 8 अक्टूबर के पश्चात से उसके माता-पिता का कोई पता नहीं चल रहा था।
इस बीच, अस्पताल प्रबंधन को भी चिंता हुई। इस पूरे मामले की जानकारी पुलिस को दी गई। वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर कोतवाली पुलिस ने अस्पताल में दर्ज कराए गए पते के आधार पर झाबुआ पुलिस की मदद मांगी।
पुलिस पेटलावद के गांव पहुंची एवं वहां सरपंच के साथ मिलकर 24 घंटे के भीतर बच्ची के माता-पिता को ढूंढकर वापस चरक भवन लाया गया। बच्ची के मां-बाप ने बताया कि डॉक्टरों के अनुसार बच्ची बहुत कमजोर थी तथा आईसीयू में उसे भर्ती कर दिया था। हमें डर था कि भारी भरकम बिल बनेगा। गरीबी के चलते परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं है। इसी डर से हम अपनी बच्ची को छोड़कर चले गए थे।
पुलिस ने बच्ची के माता-पिता को बताया कि चूंकि यह अस्पताल सरकारी है, अत: आपका यहां पर कोई खर्चा नहीं लगेगा। जब बच्ची को सौंपा तो माता-पिता की आंखें भर आईं। इससे एक बात और सामने आई है कि गरीब हो या मध्यम में हर किसी के मन में अस्पताल के भारी बिल की चिंता रहती है। कोरोना काल में लोगों ने परिजनों के इलाज के लिए लाखों रुपए के बिल चुकाए हैं। कई लोगों को तो अपना घर तक बेचना पड़ गया।