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दर-दर की ठोकरें खा रही है तीन तलाक पीड़िता

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मुस्तफा हुसैन

मध्यप्रदेश के नीमच में तीन तलाक का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक पर रोक लगाए जाने के बावजूद पत्नी इंसाफ के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही है। उसकी कोई सुनने वाला नहीं है। एक मासूम औरत बिलखते हुए न्याय की गुहार लगा रही है।
 
 
नीमच की स्कीम नंबर 36 में सैयद सुहैल रहमान का घर और घर के दरवाजे पर रोती-बिलखती उसकी पत्नी सायरा बानो जो टीकमगढ़ की रहने वाली है, जिसकी तीन साल पहले नीमच में शादी हुई थी। उसके बाद ये रिश्ता पारिवारिक झगड़े और मारपीट की भेंट चढ़ गया और सुहैल ने तीन तलाक का सहारा लेकर सायरा को घर से चलता कर दिया। उनका कानूनी तलाक नहीं हुआ था।
 
सायरा ने बताया कि उसको टीकमगढ़ में जैसे ही पता चला कि उसका पति दूसरी शादी करने वाला है, तो वह सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर रात बारह बजे नीमच पहुंची, लेकिन उसके आने की खबर सुनकर उसके ससुराल वाले घर पर ताला जड़कर निकल लिए। तब से सुबह 12 बजे तक सायरा भूखी-प्यासी वहीं बैठी रही।
पीड़ित सायरा ने यह भी बताया कि उसके पति ने तलाक उसके सामने नहीं दिया। तलाक कहने के बाद पति ने ही कोर्ट में आवेदन लगाया, लेकिन वह अपना पक्ष रखने कोर्ट इसलिए नहीं गई कि कहीं कोर्ट में वह तीन बार तलाक न कह दे और अब में जब यहां आई हूं तो सभी घर बंद कर भाग गए हैं।
 
 
मीडिया से बात करते हुए सायरा रो रही थी, बिलख रही थी, वह बोली मेरे मां-बाप ने कर्ज़ा करके मेरी शादी की थी। सब कुछ बर्बाद हो गया में कहीं नहीं जाऊंगी, यही दम तोड़ दूंगी। वह मुल्ला-मौलवियों से बोली ये कैसा इंसाफ है। 
 
इस दौरान सायरा को ससुराल के कुछ लोगों ने धमकाया भी और जान से मारने की धौंस भी दी, लेकिन वह नहीं गई। इसी बीच महिला थान इंचार्ज श्रीमती पुष्पा राठौड़ के साथ पुलिस वहां पहुंची और सायरा को कार्रवाई का भरोसा दिलाकर थाने ले गईं, लेकिन थाने जाकर पुलिस के सुर बदल गए और इंचार्ज श्रीमती पुष्पा बोलीं कि जब मामला कोर्ट में पेंडिंग है तो पुलिस क्या करेगी। हम तो समझाइश दे सकते हैं, कार्रवाई नहीं कर सकते। 
 
इस मामले में महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली नीमच की जिला पंचायत सदस्य श्रीमती मधु बंसल कहती हैं कि सरकार लाख क़ानून बनाए, लेकिन वो ज़मीन पर दम तोड़ते दिखते हैं। डंके की चोट तीन तलाक कहने के बावजूद पुलिस पति के खिलाफ कार्रवाई करने को तैयार नहीं है। ऐसे में साफ दिखता है कि कानून बनाने का कोई फायदा नहीं, केवल राजनीतिक लाभ लिया जा सकता है, इंसाफ नहीं।

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