भोपाल। विश्व की सबसे भीषणतम औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैस कांड के रविवार को 33 साल पूरे होने के बाद भी इसकी जहरीली गैस से प्रभावित अब भी उचित इलाज और पर्याप्त मुआवजे की लड़ाई लड़ रहे हैं।
सरकार द्वारा दिसंबर 2010 में और अधिक मुआवजा देने की मांग को लेकर दाखिल की गई सुधारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटिशन) की सुनवाई शुरू करने की अपील करते हुए गैस त्रासदी के प्रभावितों द्वारा अब एक याचिका पर हस्ताक्षर किए जा रहे हैं। इसे शीर्ष अदालत को भेजा जाएगा।
प्रदेश सरकार के एक मंत्री ने बताया कि भोपाल स्थित इस कारखाने में 1984 में जहरीली गैस का रिसाव हुआ था जिसका अमेरिका से ताल्लुक रखने वाली मालिकान कंपनी ने अब तक प्रभावितों को उचित मुआवजा नहीं दिया है। प्रदेश सरकार के भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग के मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी के प्रभावितों को अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (यूसीसी) (अब डॉव कैमिकल) ने अब तक उचित मुआवजा नहीं दिया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि तत्कालीन केंद्र और प्रदेश की दोनों कांग्रेस सरकारों ने उस वक्त के यूसीसी के चेयरमैन वारेन एंडरसन की मदद की थी। एंडरसन त्रासदी के तुरंत बाद भोपाल आए थे और बाद में सरकार की मदद से यहां से निकलकर अमेरिका चले गए। उन्होंने बताया कि याचिका में पीड़ितों के कल्याण के लिए यूसीसी (अब डॉव द्वारा अधिगृहीत) से 1,000 करोड़ रुपए से अधिक की मांग की गई है।
गैस पीड़ितों के हितों के लिए पिछले 3 दशकों से काम करने वाले भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने कहा कि यूसीसी ने भोपाल गैस पीड़ितों को मुआवजे के तौर पर 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर (715 करोड़ रुपए) दिए थे।
मालूम हो कि 2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को यूनियन कार्बाइड के भोपाल स्थित कारखाने से रिसी जहरीली गैस मिक (मिथाइल आइसोसाइनाइट) से 3,000 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 1.02 लाख लोग प्रभावित हुए थे।
जब्बार ने कहा कि हमने इस थोड़े से मुआवजे को शीर्ष अदालत में चुनौती दी और कहा कि पीड़ितों की संख्या 'बहुत अधिक' है और यूनियन कार्बाइड द्वारा 1989 में दिया गया मुआवजा 'बेहद कम' है। भोपाल में दावा अदालतों ने वर्ष 1990 से 2005 तक कार्य किया। इन अदालतों द्वारा त्रासदी के 15,274 मृतकों के परिजन और 5.74 लाख प्रभावितों को 715 करोड़ रुपए मुआवजे के तौर पर दिए गए।
जब्बार ने कहा कि हमने पुन: 2005 में उच्चतम न्यायालय में अपील की है और कहा कि गैस त्रासदी से पीड़ितों की संख्या 5 गुना तक अधिक है। जब्बार ने कहा कि दिसंबर 2010 में केंद्र और राज्य सरकार ने यूसीसी से पीड़ितों को और अधिक मुआवजा दिलाने की मांग करने वाली सुधारात्मक याचिका दायर की है, लेकिन इसके बाद कुछ नहीं हुआ है इसलिए अब त्रासदी प्रभावित लोग याचिका दायर कर शीर्ष अदालत से अपील करने जा रहे हैं कि क्यूरेटिव पिटिशन की सुनवाई कर इस मामले में शीघ्र निर्णय किया जाए।
उन्होंने कहा कि 3 दशक पहले हुई गैस त्रासदी की जहरीली गैस से प्रभावित लोग अब भी कैंसर, ट्यूमर, सांस और फेफड़ों की समस्या जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं। प्रभावितों के पास पैसा नहीं होने के कारण उन्हें उचित इलाज भी नहीं मिल पा रहा है। जब्बार ने संप्रग सरकार और राजग सरकार पर आरोप लगाया कि दोनों ने एंडरसन को गिरफ्तार करने के लिए कुछ अधिक नहीं किया। उन्होंने दावा किया कि 1984 में अमेरिका के दबाव में केंद्र की कांग्रेस सरकार झुक गई और एंडरसन देश से निकलकर अमेरिका चला गया और जब वर्ष 2002 में केंद्र में राजग सरकार थी, तब सीबीआई ने एंडरसन के खिलाफ आरोपों को क्षीण करने की कोशिश की जिसके चलते अमेरिकी नागरिक के तौर पर एंडरसन का प्रत्यर्पण मुश्किल हो गया।
गैस त्रासदी के संबंध में 7 जून 2010 को भोपाल की एक अदालत ने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के 7 कार्यकारी अधिकारियों को दोषी करार देते हुए 2 वर्ष की सजा से दंडित किया था। एंडरसन इस मामले में मुख्य आरोपी था लेकिन वह अदालत में कभी हाजिर नहीं हुआ। एक फरवरी 1992 को भोपाल की सीजेएम अदालत ने उसे फरार घोषित कर दिया। भोपाल की अदालतों ने एंडरसन के खिलाफ 1992 और 2009 में गैरजमानती वारंट जारी किया था। एंडरसन की मौत सितंबर 2014 में अमेरिका में हो गई। (भाषा)