भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान अब कभी भी हो सकता है। चुनाव की तारीखों के एलान से पहले सोमवार (2 अक्टूबर)को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ग्वालियर आ रहे है जहां वह एक जनसभा को संबोधित करेंगे। पिछले दिनों ग्वालियर में गुर्जरों के हिंसक प्रदर्शन के बाद पीएम मोदी की रैली को लेकर सुरक्षा के तगड़े इंतजाम किए जा रहे है।
ग्वालियर-चंबल भाजपा की कमजोर कड़ी-चुनाव की तारीखों के एलान से पहले पीएम मोदी के ग्वालियर में होने वाली रैली के कई सियासी मयाने है। दरअसल विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल भाजपा की सबसे कमजोर कड़ी माना जा रहा है और भाजपा हाईकमान भी इस बात से अच्छी तरह रूबरू है, यहीं कारण है मोदी कैबिनेट के दिग्गज मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को मुरैना के दिमनी विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतार दिया गया है। वहीं दूसरे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के भी अंचल की किसी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने की अटकलें काफी तेज है।
दरअल 2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल की 34 विधानसभा सीटों में से भाजपा मात्र 7 सीटों पर सिमट गई थी और उसको सत्ता से बाहर होना पड़ा था। 2018 के विधानसभा चुनाव में मुरैना जिले की सभी छह सीटें कांग्रेस के खाते में गई थी वहीं भिंड जिले की पांच में से तीन सीटें कांग्रेस ने जीती थी। वहीं भाजपा के गढ़ कहे जाने वाले ग्वालियर के छह सीटों में से पांच सीट कांग्रेस ने हथिया ली थी। जबकि भाजपा एक मात्र सीट ग्वालियर ग्रामीण बचाने में सफल रही थी। वहीं शिवपुरी की पांच में से तीन सीटें कांग्रेस को मिली थी। ऐसे में अब भाजपा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पीएम मोदी की रैली के जरिए माहौल बदलने की कोशिश कर रही है।
दांव पर भाजपा दिग्गजों की प्रतिष्ठा-विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल में भाजपा के कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। 2018 में कांग्रेस ने जिस ज्योतिरादित्य सिंधिया के चेहरे पर ग्वालियर चंबल की 34 सीटों मे से 27 सीटों पर जीत हासिल की थी वह ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा के साथ है। वहीं मध्यप्रदेश भाजपा की चुनाव अभियान समिति के संयोजक नरेंद्र सिंह तोमर जो इस अंचल से आते है उनके कंधों पर इस बार भाजपा को सत्ता में वापस लाने की जिम्मेदारी है। ऐसे में इस बार विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ पूरी भाजपा की प्रतिष्ठा ग्वालियर-चंबल के साथ ग्वालियर में दांव पर लगी है।
भाजपा के सामने एकजुटता की चुनौती?-ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद सबसे अधिक ग्वालियर-चंबल की राजनीति प्रभावित हुई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद पार्टी ग्वालियर-चंबल में पार्टी दो गुटों में बंटती हुई दिख रही है। बात चाहे पंचायत चुनाव की हो या नगरीय निकाय चुनाव में उम्मीदवारों के चयन की नई भाजपा और पुरानी भाजपा के नेताओं में टकराव साफ देखा गया था। ग्वालियर नगर निगम के महापौर में भाजपा उम्मीदवार के टिकट को फाइनल करने को लेकर ग्वालियर से लेकर भोपाल तक और भोपाल से लेकर दिल्ली तक जोर अजमाइश देखी गई थी और सबसे आखिरी दौर में टिकट फाइनल हो पाया था।
ग्वालियर नगर निगम में महापौर चुनाव में 57 साल बाद भाजपा की हार को भी नई और पुरानी भाजपा की खेमेबाजी का परिणाम बताया जाता है। गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा की महापौर उम्मीदवार को सिंधिया खेमे के मंत्री के क्षेत्र से बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। इतना ही नहीं पंचायत चुनाव में ग्वालियर के साथ-साथ डबरा और भितरवार में जनपद पंचायत अध्यक्ष पद पर अपने समर्थकों को बैठाने के लिए महाराज समर्थक पूर्व मंत्री इमरती देवी और भाजपा के कई दिग्गज मंत्री आमने सामने आ गए थे। पंचायत चुनाव में दोनों ही गुटों ने अपना वर्चस्व दिखाने के लिए खुलकर शक्ति प्रदर्शन भी किया था।
वहीं विधानसभा चुनाव में भी टिकट की दावेदारी को लेकर अंचल की कई सीटों पर नई और पुरानी भाजपा के दावेदार आमने सामने है। भाजपा की ओर से उम्मीदवारों की जो दूसरी सूची जारी की गई, उसमें ग्वालियर जिले की 6 विधानसभा सीटों में से दो पर सिंधिया समर्थक डबरा से इमरती देवी और भितरवार से मोहन सिंह राठौड़ के टिकट मिलने से सिंधिया समर्थकों के हौंसले काफी बुलंद है और वह टिकट के लिए खुलकर दावेदारी कर रही है। इनमें कई सिंधिया समर्थक ऐसे है जो पिछले कई चुनाव हार चुके है।