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गैजेट्‍स से न बिगड़ें रिश्ते!

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- विशाल मिश्र

सुविधा के नाम पर घर में आए मोबाइल और लैपटॉप ने कब अपनी एक व्यक्तिगत पहचान बना ली, किसी को पता ही नहीं चला।‍ दिन-ब-दिन बढ़ रहे इसके फीचर्स आदि पति-पत्नी के रिश्ते भी प्रभावित कर देंगे शायद ही किसी ने सोचा हो।

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हरेक इंसान आरामदायक जीवन जीने की ख्‍वाहिश रखता है। महँगा मोबाइल, लैपटॉप, आईपॉड आदि आधुनिक सुविधाओं के बगैर इंसान को ज़िंदगी में कुछ कमी सी लगती है। देवेश और आयशा ने एक-एक कर गृहस्थी में यह सामान जुटा तो लिया लेकिन अब यह दोनों में तकरार का कारण बनता जा रहा है।

देवेश और आयशा दोनों नौकरीपेशा हैं और इनकी एक बेटी है। ऑफिस से जब घर लौटते हैं तो ऑफिस का कामकाज भी अपने साथ ले आते हैं। देर रात तक भी जागते रहेंगे तो इन्हीं के सहारे।

इन्हें अब टीवी और डीवीडी प्लेयर से भी काम कम ही पड़ता है। दुनिया की हर सुविधा इनके लिए अब मोबाइल पर अँगूठा चलाकर या माउस की क्लिक पर मिल जाती है।

कभी आप अकेले में बैठकर सोचें तो पाएँगे कि आप अपने जीवनसाथी और बच्चों से ज्यादा समय अपने मोबाइल पर या तो बातचीत करते हुए बिता रहे हैं या फिर उस पर गेम खेलकर या नेट सर्फिंग में। आपके फोन पर आने वाले कॉल्स के मिनट काउंट करें, या सोचें कि आप खाली समय में क्या करते हैं? तो पाएँगे कि इन साधनों के बगैर आपके 10 मिनट भी नहीं निकलते चाहे आप घर में हों या किसी रेस्टोरेंट में कॉफी पीने गए हों।

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बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से ध्यान हटने पर इन्हें अहसास हुआ कि आखिर हमारा समय तो इन चीजों में ही खप रहा है। बेटी पर भी ध्यान नहीं। कब आखिरी बार उससे बैठकर उसकी बातें सुनी थी। इन्हें ठीक-ठीक याद नहीं। उसकी प्रॉब्लम्स सुनते भी हैं तो लैपटॉप पर चैट जारी रहती है। उसकी बातों को सुनी-अनसुनी कर जब स्कूल से कम्प्लेन्स आती हैं तो पति-पत्नी एक-दूसरे पर प्रत्यारोप शुरू कर देते थे।

अब वे भी समझ गए कि शहर से दूर रहने पर जहाँ ये गैजेट्‍स हमारे लिए सुविधाजनक हैं वहीं घर में रहते हुए इनका अनावश्यक उपयोग रिश्तों के‍ लिए बेहद खराब है।

ध्यान रखें -
1. आप अपनी निजी बातें एक दूसरे से शेयर नहीं कर पा रहे हैं।

2. आप दोनों एक-दूसरे से झल्लाकर बात करने लगे हैं।

3. रिश्तों में संवाद होना जरूरी है। यदि ये सुविधाएँ संवाद बढ़ाने के बजाय उसे कम करने लगें तो इनका उपयोग सीमित करें।

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