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कांग्रेस की 1991 के बाद की सबसे बड़ी वापसी

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नई दिल्ली (भाषा) , शनिवार, 23 मई 2009 (11:43 IST)
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने भारतीय राजनीति के कैनवास पर सीटों की संख्या के मामले में 1991 के बाद एक बार फिर अपनी जोरदार मौजूदगी दर्ज कराई है और चार लोकसभा चुनाव के बाद उसने 200 सीटों के आँकड़े को पार किया है।

कांग्रेस ने पिछली बार 1991 में 10वीं लोकसभा के चुनाव में 232 सीटें जीती थीं, लेकिन इसके बाद उसे 200 के आँकड़े को छूने में 18 साल इंतजार करना पड़ा। इस बार उसने कुल 206 सीटों पर जीत दर्ज की है। करीब नौ राज्यों में उसे 40 फीसदी से अधिक वोट हासिल हुए हैं। दक्षिण के राज्यों आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाड़ु में उसे कुल 60 सीटें मिली हैं।

14वीं लोकसभा के 2004 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने 145 सीटें जीतीं थीं और उसे 26.53 फीसदी वोट हासिल हुए थे। वहीं इस बार पार्टी ने 61 सीटें ज्यादा हासिल कर अपने वोटों का प्रतिशत भी बढ़ाकर 28.55 फीसदी कर लिया है।

वर्ष 2004 के आम चुनाव के मुकाबले अधिक सीटें मिलने के बारे में कांग्रेस प्रवक्ता और पार्टी महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि शायद यह पहला चुनाव है जब किसी गठबंधन सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर ने काम नहीं किया। देश ने कांग्रेस और संप्रग सरकार के ऊपर जो विश्वास व्यक्त किया वह पिछले चुनावों से कई मायनों में अलग है।

15वीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस ने 401 उम्मीदवार खड़े कर 206 सीटें जीती हैं। वर्ष 1991 के बाद हुए चार लोकसभा चुनावों में कांग्रेस 150 सीटों के आँकड़े को भी पार नहीं कर सकी थी। वर्ष 1996 के आम चुनाव में उसने 140 सीटें (28.80 फीसदी वोट), 1998 में 12वीं लोकसभा के चुनाव में 141 सीटें (25.82 फीसदी वोट), 1999 में महज 114 सीटें (28.30 फीसदी वोट) और 2004 में 145 सीटें (26.53 फीसदी वोट) जीती थीं।

पिछले आम चुनाव में कांग्रेस की सफलता की दर 34.43 प्रतिशत थी। इस आम चुनाव में उसके आधे से अधिक प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल रहे और कामयाबी की दर बढ़कर 51.12 प्रतिशत हो गई।

15वीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस ने कई राज्यों में 40 फीसदी से अधिक वोट हासिल किए हैं। इनमें दिल्ली 57.11 फीसदी वोट (सभी सात सीटों पर जीत), राजस्थान 47.19 फीसदी (25 में से 20 सीटें), गुजरात 46.52 फीसदी (26 में से 11 सीटें), हिमाचल प्रदेश 45.61 फीसदी (चार में से एक सीट), पंजाब 45.23 फीसदी (13 में से आठ सीटें), उत्तराखंड 43.13 फीसदी (सभी पाँच सीटें), हरियाणा 41.77 फीसदी (10 में से नौ सीटें), मध्यप्रदेश 40.14 फीसदी (29 में से 12 सीटें) और केरल 40.13 फीसदी (20 में से 13 सीटें) शामिल हैं।

सीटों के लिहाज से कांग्रेस का प्रदर्शन उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश, केरल, राजस्थान, मध्यप्रदेश और पंजाब में अच्छा रहा है। राजस्थान में 2004 के आम चुनाव में कांग्रेस को 25 में से चार सीटें मिली थीं और अब उसका 20 सीटों पर कब्जा है। सियासत के गढ़ उत्तरप्रदेश में उसने पिछली बार 80 में से नौ सीटें जीती थीं जो अब बढ़कर 21 हो गई हैं।

केरल में पिछली बार उसे 20 में से एक भी सीट हासिल नहीं हुई जबकि इस बार उसने 13 सीटें जीतीं। मध्यप्रदेश में 2004 में 29 में से चार सीटों के मुकाबले में अब उसके पास 12 सांसद हैं। आंध्रप्रदेश में उसने पिछले आम चुनाव में 42 में से 29 सीटें जीती थीं जबकि अबकी बार उसने 33 सीटें जीती हैं।

पंजाब में पिछली बार उसे कुल 13 सीटों में से दो ही सीटें मिली थीं जबकि इस चुनाव में उसने आठ सीटें जीती हैं। आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाड़ु को मिलाकर कांग्रेस ने कुल 60 सीटें जीती हैं।

कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा मतों के प्रतिशत और सीटों का रिकॉर्ड 1984 में बना था, जब इंदिरा गाँधी के निधन के बाद सहानुभूति की लहर पर सवार होकर उसने 491 उम्मीदवार मैदान में उतारे और रिकॉर्ड 404 सीटें हासिल की। तब उसकी सफलता का प्रतिशत 51.80 और उसे हासिल हुए वोटों का प्रतिशत 49.10 था।

वर्ष 1989 में उसने गोता खाया और उसे हासिल सीटों की संख्या महज 197 रह गई। इससे पहले 1977 में इंदिरा गाँधी के लगाए आपातकाल के बाद हुए छठी लोकसभा के चुनाव में भी उसे 154 सीटें ही हासिल हुई थीं लेकिन वर्ष 1991 में 10वीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस ने फिर अच्छा प्रदर्शन किया और सीटों के आँकड़े को 232 पर पहुँचाया। तब उसे हासिल हुए मतों का प्रतिशत 36.26 था।

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